किराए की दुकानों में रख लिए किराएदार

किराए की दुकानों में रख लिए किराएदार

चित्रकूट। नगर पालिका परिषद ने आय बढ़ाने के लिए नगर में सैकड़ों दुकानों का निर्माण कराया है। लेकिन, बहुत सी दुकानें जिन किराएदारों को आवंटित की गई थीं, उन्होंने अपने स्तर से दुकानों में किराएदार रख दिए हैं।
वहीं, नगर पालिका इन सिकमी किराएदारों को सत्यापन नहीं करा सकी है, जिससे विभाग के पास इनका कोई रिकार्ड नहीं है।

नगर पालिका के पास सैकड़ो दुकानें हैं। यह दुकानें किराए पर लगी हैं, जिससे इनका किराया आता है। इन दुकानों को बने व नीलाम हुए कई दशक बीत चुके हैं। दुकानों का बनाने के पीछे पालिका का उद्देश्य विभाग की आय के साधन बढ़ाना, गरीब व छोटे दुकानदारों के लिए स्थायी दुकान उपलब्ध कराना था।

लेकिन, नगर के कुछ नागरिकों ने इन दुकानों को अपना धंधा बना लिया है। यह लोग नगर पालिका की दुकानों को नीलाम में खरीद लेते हैं व व्यवसाय के लिए दुकान तलाश रहे लोगों को कई गुने दामों में बेच देते हैं। अथवा प्राइवेट दरों पर किराए पर दे देते हैं।
नगर पालिका की ओर से अब तक इन सिकमी किराएदारों को लेकर कोई जांच अथवा सत्यापन नहीं कराया गया है,
जिससे नगर पालिका को लाखों रुपये राजस्व की प्रति माह छति पहुंच रही है।

नगरपालिका के कुछ ही दूरी मोबाइल मार्केट पर किराए की दुकानों पर एग्रीमेंट

नगर पालिका की के कुछ दूरी पर मोबाइल मार्किट में नगर पालिका की दुकानों को किराएदारों ने एग्रीमेंट कर बेच दिया है। यदि इन दुकानों की हम बात करे तो यह दुकानें छोटे दुकानदारों को ध्यान में रखकर बनाई गई थीं,

लेकिन कुछ बड़े दुकानदारों ने इन दुकानों को नियम विरुद्ध खरीद कर दुकानों के बीच की दीवारों को तोड़कर अन्य दुकानों से मिला लिया है। जबकि, नियम है कि किसी भी स्थिति में बिना नगर पालिका की इजाजत के दुकान में सीमेंट भी नहीं लगाया जा सकता है।

इन्हें कहते है सिकमी किरायेदार
किसी सरकारी विभाग ने अपनी दुकानें जिस दुकानदार को नीलामी के बाद किराए पर दी हैं, अगर वह व्यक्ति किसी अन्य दुकानदार को नियम विरुद्ध तरीके से किराए पर देता है, तो वह सिकमी किराएदार कहलाता है।
जान लीजिए यह है नियम फिर भी आखिर कार्यवाही क्यो नही
सरकारी दुकानों में सिकमी किरायेदारों की प्रथा को रोकने के लिए शासन ने नियम बनाया है कि यदि कोई दुकानदार किसी अन्य व्यक्ति को सरकारी दुकान किराए पर देता है तो मूल दुकानदार की दुकान निरस्त कर दी जाएगी। जिस व्यक्ति के नाम दुकान नीलाम हुई, वही व्यक्ति दुकान का संचालन कर सकता है। यदि वह दुकानदार उक्त दुकान में कोई व्यवसाय नहीं करना चाहता है तो वह दुकान किसी अन्य व्यक्ति को स्थानांतरित हो जाएगी।

इसके लिए दूसरे व्यक्ति को भी दुकान की प्रीमियम राशि करीब एक लाख रुपये जमा करनी होगी। इतना ही नहीं, कई बार प्रीमियम राशि का निर्धारण नगर पालिका की बोर्ड बैठक में है। उसके अलावा दुकान के किराए में भी 25 प्रतिशत से 50 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की जाती है।
लेकिन यहाँ तो सबसे बड़ा घोटाला है किरायेदारों के द्वारा सालों से एक-एक दुकानों बाकायदा एग्रीमेंट करके बेच दिया गया लेकिन नगरपालिका के अधिकारियों को पता होने के बाद भी कुम्भकर्णी नींद सो रहा है या यूं कहें कि नगरपालिका के अधिकारियों की मिलीभगत से किराए की दुकानों को किराए पर दिया गया है। जानकारी के अनुसार आपको बता दे एक-एक दुकानों की कीमत 20 हजार से 30 हजार प्रतिमाह वसूला जा रहा है,जबकि नियम व कानून के विरूद्ध है फिर कोई कार्यवाही नही हो रही है,आखिर क्यों ..?