गोपीनाथ कविराज के व्यक्तित्व पर विद्वानों ने रखे विचार

चित्रकूट 11 सितंबर:(डेस्क)पं. गोपीनाथ कविराज का योगदान भारतीय ज्ञान परंपरा में

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पृष्ठभूमि
पं. गोपीनाथ कविराज (1887-1976) एक प्रसिद्ध भारतीय दार्शनिक और योग विद्वान थे। उन्होंने अखंड महायोग, शैव और शाक्त दर्शन पर गहन अध्ययन किया और इन विषयों पर कई महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे। उनके विचारों ने भारतीय दर्शन और योग की समझ को गहराई प्रदान की।

अखंड महायोग
कविराज जी का मुख्य योगदान अखंड महायोग के क्षेत्र में रहा। उन्होंने अखंड महायोग को भोग और योग की साम्य अवस्था के रूप में परिभाषित किया, जिसमें योगी सृष्टि के हर पदार्थ में परम तत्व का प्रत्यक्षीकरण करता है। उन्होंने कहा कि जैसे ही जीव और परा चेतना के बीच का आवरण हट जाता है, भास्वर और शाश्वत रूप से अपने अस्तित्व के प्रति सचेत आनंदमय विशुद्ध चैतन्य व्यक्त हो जाता है, जिसमें इसके दोनों पक्ष चिरंतन माधुरी से अवित होकर समवेत हो जाते हैं। यही योग है।

शैव और शाक्त दर्शन
कविराज जी ने शैव और शाक्त दर्शन पर भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने शक्ति को चित शक्ति के रूप में परिभाषित किया, जिसका प्रकाश अंश अंबिका और विमर्श अंश शांता कहलाता है। अंबिका के वामा, जेष्ठा और रौद्र ये तीन रूप हैं, जबकि शांता के इच्छा, ज्ञान और क्रिया ये तीन रूप हैं। समष्टि रूप में अंबिका और शांता एक हैं, जबकि विष्टि रूप में ये त्रिविध बिंदु बनते हैं।

योग दर्शन
कविराज जी ने योग को परिभाषित करते हुए कहा कि जैसे ही परा चेतना तथा जीव के बीच का आवरण हट जाता है, भास्वर तथा शाश्वत रूप से अपने अस्तित्व के प्रति सचेत आनंदमय विशुद्ध चैतन्य व्यक्त हो जाता है, जिसमें इसके दोनों पक्ष चिरंतन माधुरी से अवित होकर समवेत हो जाते हैं। यही योग है।

अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी
पं. गोपीनाथ कविराज के योगदान को मान्यता देते हुए, जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय, चित्रकूट और आईसीपीआर, नई दिल्ली ने संयुक्त रूप से एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। इस संगोष्ठी में कविराज जी के विचारों और उनके योगदान पर विस्तार से चर्चा की गई।

निष्कर्ष
पं. गोपीनाथ कविराज का योगदान भारतीय दर्शन और योग के क्षेत्र में अतुलनीय है। उन्होंने अखंड महायोग, शैव और शाक्त दर्शन पर गहन अध्ययन किया और इन विषयों पर कई महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे। उनके विचारों ने भारतीय दर्शन और योग की समझ को गहराई प्रदान की। उनके योगदान को मान्यता देते हुए, जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय और आईसीपीआर ने संयुक्त रूप से एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया, जिसमें उनके विचारों और योगदान पर विस्तार से चर्चा की गई।