क्या वाकई चांद पर कब्जा करना चाहता है चीन ?

in #china2 years ago

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हाल ही में चीन के द्वारा एक कृत्रिम सूरज बनाने की खबर सामने आई थी। और अब जानकारी मिल रही है कि चीन पूरे चांद पर ही अपनी दावेदारी ठोंकने की कोशिश कर रहा है। ऐसा हम नही कह रहे हैं बल्कि ये कहना है अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का।

नासा के अधिकारी ने यह दावा किया है कि चीन चांद पर दावा कर सकता है उसके बाद कई गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। हालांकि नासा के अधिकारी बिल नेल्सन के बयान पर चीन ने पलटवार किया है। चीन की ओर से कहा गया है कि नेल्सन ने यह काल्पनिक बयान दिया है और वह जानबूझकर चीन को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं।लेकिन दिलचस्प बात यह है कि चीन ने कभी भी इस बयान को खारिज नहीं किया कि वह भविष्य में पूरे चीन पर अपना दावा कर सकता है। चीन ने अमेरिका, नासा पर निशाना साधते हुए कहा कि आपको शीतयुद्ध वाली मानसिकता से बाहर आना चाहिए और चीन को बदनाम नहीं करना चाहिए। लेकिन चीन की ओर से यह स्पष्ट तौर पर बिल्कुल नहीं कहा कहम कभी भी चांद पर अपनी दावेदारी नहीं करेंगे। ऐसे में क्या सच में चीन चांद पर कब्जा कर सकता है और इसके लिए वह किस रणनीति को अपना सकता है।

बता दें कि इंटरनेशनल स्पेस लॉ के अनुसार चांद पर उपनिवेश स्थापित करना गैरकानूनी है। कोई भी एक देश यह दावा नहीं कर सकता है कि चांद उसका है। लेकिन चांद पर अमेरिका और चीन की प्रतिस्पर्धा चल रही है। दोनों देशों के बीच मिशन चांद प्रतिष्ठा का विषय बना हुआ है। चांद पर खनन को लेकर आने वाले समय में दोनों देशों के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है। संभव है कि आने वाले समय में दोनों देशों के बीच इसको लेकर टकराव देखने को मिले। लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह है कि चांद को लेकर सिर्फ अमेरिका और चीन के बीच ही टकराव नहीं चल रहा है

चीन ने हाल ही में रूस के साथ स्पेस प्रोग्राम समझौता किया है, जिसके तहत दोनों देशों की योजना है कि वह चांद पर एक बेस बनाएंगे। चीन-रूस की योजना है कि 2036 तक दोनों देशों का अपना एक बेस होना चाहिए जहां पर दोनों देशों के नागरिक रहेंगे। ऐसे में उस वक्त सीमा के बंटवारे का सवाल खड़ा होगा। 2036 के बाद चीन-रूस की योजना है कि यहां पर दोनों देशों के एस्ट्रोनॉट रहेंगे। ऐसे में अगर चीन-रूस को एक या दो साल के लिए अमेरिका से ज्यादा इस मिशन में सफलता मिलती और किसी वजह से अमेरिका का आर्टेमिस प्रोग्राम फेल हुआ तो चीन और रूस के पास जरूर यह मौका होगा कि वह पूरे चांद पर अपना दावा ठोक सकता है। यहां गौर करने वाली बात है कि चीन का मून मिशन सैन्य मिशन है, जबकि अमेरिका का अर्टेमिस मिशन सैन्य मिशन नहीं है, इसमे कई देश मिलकर काम कर रहे हैं।

अमेरिका ने यह आरोप भी लगाया है कि चीन अपने मून मिशन के नतीजों को साझा नहीं करता है। चीन यह नहीं चाहता है कि मून मिशन में वह जो भी उपलब्धि हासिल कर रहा है वह लोगों को पता चले। वहीं चीन का कहना है कि हम दो बार यूएन में 2008 और 2014 में अंतरिक्ष का सैन्यीकरण ना हो इसको लेकर प्रस्ताव ला चुके हैं लेकिन अमेरिका ने इसमे साथ नहीं दिया,लिहाजा अमेरिका खुद भविष्य में इस तरह की योजना को आगे बढा सकता है। अगर अमेरिका यह कह दे कि वह स्पेस में कभी हथियार का इस्तेमाल नहीं करेगा तो विवाद खत्म हो सकता है लेकिन अमेरिका ऐसा करने को तैयार नहीं है।

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Hi
Vikas ji aap ki 7 din ki sabi post like kr di h, aap bhi meri post like kijiye