सिकल सेल ग्रसित माता पिता से बच्चे भी होते है सिकल सेल पीडि़त

in #children3 months ago

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  • सिकल सेल की रोकथाम में जेनेटिक कार्ड की अहम भूमिका
  • सिकल सेल ग्रसित माता पिता से बच्चे भी होते है सिकल सेल पीडि़त
  • मलेरिया प्रभावित क्षेत्रों में सिकल सेल का अधिक खतरा
  • जिले में अब तक सिकलसेल के मिले 1712 पॉजीटिव

मंडला. सिकल सेल एनीमिया एक आनुवंशिक स्वास्थ्य समस्या है जो भारतीय आबादी में व्यापक रूप से फैली हुई है। यह हीमोग्लोबिनोपैथी में से एक है। यह समरूप स्थिति में घातक है। समरूप स्थिति वाले बच्चे शायद ही प्रजनन आयु तक जीवित रहते हैं, लेकिन चिकित्सा स्वास्थ्य देखभाल में उनकी उम्र बढ़ जाती है और उनमें से कुछ 30-40 वर्ष की आयु तक कई जटिलताओं के साथ जीवित रह सकते हैं। बताया गया कि सिकल सेल की समस्या अधिकत्तर मलेरिया प्रभावित क्षेत्रों में अधिक है। जिसके कारण यहां लोग इस बीमारी से ग्रसित है। इस समस्या से निपटने के लिए स्वास्थ्य अमला मैदानी स्तर पर कार्य कर रहा है। जिससे लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरूक करने के साथ इस बीमारी से निजात दिला सके।

जानकारी अनुसार मंडला जिले में सिकल सेल एक महामारी का रूप लेती जा रही है। यहां मलेरिया प्रभावित क्षेत्र समेत अन्य वनांचल ग्रामीण क्षेत्रों में इस बीमारी से अधिकत्तर व्यक्ति और बच्चे ग्रसित है। इस बीमारी का कोई स्थाई इलाज नहीं है, सिर्फ जागरूकता और स्क्रीनिंग से इस बीमारी को आगे बढऩे से रोका जा सकता है, लेकिन आदिवासी बाहुल्य जिला मंडला के वनांचल क्षेत्र के लोग इस बीमारी को सामाजिक बुराई मानकर छुपाते है। जिससे इसकी रोकथाम में अड़चने आ रही है। यदि लोग इस बीमारी को छिपाए ना तो इससे मुक्त होने में सफलता मिल सकती है।

  • ब्लड बैंक से सिकल सेल व थैलेसीमिया को नि:शुल्क मिलता है ब्लड :
    सिकल सेल व थैलेसीमिया के मरीजों को जिला अस्पताल में स्थित ब्लड बैंक से नि:शुल्क ब्लड उपलब्ध कराया जाता है। वहीं शहर व आसपास के युवाओं, सामाजिक व अन्य संस्थाएं समय-समय पर रक्तदान शिविर लगाकर ब्लड बैंक में रक्त उपलब्ध कराती है। जिससे यहां रक्त की कमी ना बने और ब्लड को जरूरतमंद मरीजों को मिल सके। बता दे कि सिकलसेल व थैलेसीमिया के जिला अस्पताल ऐसे कई मरीजों को महीने में कम से कम दो से तीन बार ब्लड चढ़वाना होता है। मरीज ब्लड की व्यवस्था नहीं कर पाते। ऐसे में जिला चिकित्सालय मंडला में स्थित ब्लड बैंक द्वारा इन मरीजों को नि:शुल्क ब्लड दिलाने में भूमिका निभाता है। बताया गया कि जनवरी 2023 से दिसंबर 2023 तक सिकल सेल के 809 मरीज और थैलेसीमिया के 116 मरीजों को ब्लड बैंक से नि:शुल्क ब्लड उपलब्ध कराया गया था। वहीं इस वर्ष जनवरी 2024 से मई 2024 तक सिकल सेल के 252 मरीज और थैलेसीमिया के 48 मरीजों को नि:शुल्क ब्लड दिया गया।

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  • आनुवांशिक बीमारी है सिकल सेल:
    सीएमएचओ डॉ. केसी सरोते ने बताया कि सिकल सेल बीमारी के लिए भारत सरकार और राज्य सरकार काम कर रही हैं। सिकलसेल पीडि़त को खून की कमी होती है। रोगों से लडऩे की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। आनुवांशिक बीमारी का इलाज करने के लिए लोगों में जागरूकता की आवश्यकता है। इस बीमारी से बचाव के लिए लोगों की स्क्रीनिंग कर रोगी की जानकारी एकत्र की जाती है। इस बीमारी को समाप्त करने के लिए मरीजों की स्क्रीनिंग जरूरी है। इस बीमारी में सिकल सेल रोगी और एक वाहक होता है। वाहक को कोई इलाज की जरूरत नहीं होती है। लेकिन उसे काउंसिलिंग की जरूरत पड़ती है। सिकल सेल पीडि़त को दवाएं हमेशा लेनी पड़ती है।

  • आरबीसी में बदलाव के कारण सिकल सेल :
    सिविल सर्जन डॉ. विजय धुर्वे ने बताया कि यह हीमोग्लोबिनोपैथी हीमोग्लोबन से संबंधित विकार है। ब्लड में तीन प्रकार की सेल होती है। रेड ब्लड सेल (आरबीसी), वाइट ब्लड सेल (डब्ल्यूबीसी) और प्लेटलेट्स। आरबीसी में हीमोग्लोबिन होता है। हीमोग्लोबिन शरीर में ऑक्सीजन का परिवहन करता है। आरबीसी में थैलेसीमिया, हीमोग्लोबिन-ई, सिकल सेल समेत कई बीमारियां होती है। आरबीसी का आकर गोल होता है। सिकल सेल की बीमारी के कारण आरबीसी का आकर हंसिए की तरह हो जाता है। जिससे सिकल सेल जल्दी नष्ट हो जाते है। आरबीसी की कमी से शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। इसके अलावा सिकल सेल थक्का बनाती है। जिससे शरीर में खून का प्रवाह रुकने लगता है। इससे गंभीर दर्द, इंफेक्शन, सीने में दर्द और स्ट्रोक जैसी बीमारियां होने का खतरा बना रहता है।

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  • ग्रामीण क्षेत्र ज्यादा प्रभावित :
    मंडला जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है, यहां रहने वाले वनांचल के लोगों में अभी भी जागरूकता की कमी है। यह सिकल सेल बीमारी जिले के अधिकत्तर मलेरिया प्रभावित क्षेत्रों के लोगों में मिलती है। वनांचल क्षेत्र वाली जगहों पर मच्छर की वजह से मलेरिया होता है। इसके पैरासाइट रेड ब्लड सेल्स (आरबीसी) को ही प्रभावित करते हैं। जानकारी मुताबिक जंगलों में रहने वाले जनजातीय लोगों के शरीर में मलेरिया से बचने के लिए प्रकृति ने आरबीसी का आकार ही बदल दिया है। गोल आकार से वह हंसिए के आकार में हो गए है, जिसके कारण उनको मलेरिया तो नहीं होता और ये सिकल सेल से पीडि़त हो जाते है।

  • ये है सिकल सेल बीमारी के प्रकार :
    सिकल सेल मुख्यत दो प्रकार की होती है। एक रोगी और एक रोग वाहक। सिकल सेल रोगी में दोनों जीन खराब होते है। जबकि रोग वाहक सिकल सेल में सिर्फ एक जीन में ही खराबी होती है। यदि माता-पिता दोनों सिकल सेल रोगी है, तो उनके सभी बच्चे सिकल सेल रोगी पैदा होगे। वहीं माता-पिता में से किसी एक से सिकल सेल और दूसरे से नार्मल जीन मिलता है। इन्हें सिकल सेल ट्रेट या वाहक कहते हैं। इसमें बीमारी का बिना जांच के पता नहीं चल पाता। इसमें परेशानी नहीं होती।

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  • ऐसे बढ़ जाती है बीमारी की संभावना :
    सिकल सेल जेनेटिक बीमारी है। सिकल सेल ट्रेट या वाहक माता-पिता के बच्चे में सिकल सेल रोगी होने की संभावना 25 प्रतिशत होती है। मतलब जन्म के समय ही बीमारी मौजूद रहती है। बच्चों में बीमारी का पता लगभग 6 माह में लग जाता है। बच्चा बार-बार बीमार होने लगता है। इंफेक्शन, सीने में दर्द, जोड़ों में दर्द जैसी कई दिक्कतें होने लगती है। बताया गया कि इस बीमारी की रोकथाम 100 प्रतिशत की जा सकती है। जरूरत है जनजागरूकता की। इसमें सिकल सेल वाहक या रोगी यदि सामान्य व्यक्ति से शादी करेंगा तो इस रोग की रोकथाम की जा सकती है। मतलब दो रोगी या वाहक व्यक्ति से होने वाली संतान में सिकल सेल होने की संभावना ज्यादा होती है। इसके लिए जेनेटिक काउंसलिंग कॉर्ड से पहचान की जाती है। वहीं इससे पीडि़त को हाइड्रोक्सीयूरिया की टेबलेट दी जाती है। जिससे खून की थक्के कम बनते है। इसके साथ ही इस व्यक्ति को बार-बार ब्ल्ड ट्रांसफ्यूजन की भी जरूरत पड़ती है।

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  • अब तक हो चुकी साढ़े तीन लाख लोगों की स्क्रीनिंग :
    मंडला जिला में वर्ष 2022-23 में 27 हजार 01 व्यक्तियों का पंजीयन किया गया। जिसमें 26 हजार 645 लोगों की स्क्रीनिंग की गई। जिसमें 23 हजार 589 लोग नेगेटिव निकले। स्क्रीनिंग के बाद जांच में 267 लोग सिकल सेल पॉजीटिव निकले और 1991 लोग इसके वाहक निकले। वहीं अब सरकार ने इस बीमारी को समाप्त करने जागरूकता और स्क्रीनिंग पर जोर देना शुरू किया। जिसके बाद लोगों की स्क्रीनिंग की संख्या विगत डेढ़ वर्ष में बढ़ गई। वर्ष 2022 से 17 जून 2024 तक 03 लाख 53 हजार 164 व्यक्तियों के पंजीयन किये गए है। जिसमें 03 लाख 44 हजार 104 लोगों की स्क्रीनिंग की गई है। स्क्रीनिंग में 03 लाख 24 हजार 918 लोग नेगेटिव निकले है। स्क्रीनिंग के बाद जांच में अब तक 1713 लोग सिकल सेल पॉजीटिव निकले है और 14 हजार 659 लोग इसके वाहक निकले है।

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  • जिले में बन रहे रोगी व वाहक के जेनेटिक काउंसिल कार्ड :
    लोगों की स्क्रीनिंग और जांच के बाद सिकल सेल रोगी और वाहक की पहचान होने पर उन्हें एक विशेष रूप से बनाया गया कार्ड दिया जा रहा है। जिससे वह शादी से पहले जिससे शादी कर रहा है उसके कार्ड से मिलान करने पर कार्ड तुरंत बता देंगा कि उनके होने वाले बच्चों में रोग के होने की संभावना कितनी है। साथ ही शादी शुदा सिकल सेल जोड़ा अपने अगले आने वाले बच्चे में रोग की संभावना का भी पता लगा सकता है। यह रोकथाम में एक अहम भूमिका निभाएंगा। बनाए जा रहे कार्ड में नाम, उम्र, रजिस्ट्रेशन नंबर अंकित होता है। इसके साथ ही बच्चों में रोग के होने की संभावनाओं के बारे में भी जानकारी मिल जाती है। इसमें रोगी, वाहक और सामान्य व्यक्ति के बच्चों में रोग होने की अलग-अलग संभावना लिखी होती है। इसके साथ ही कलर कोड के माध्यम से अशिक्षित लोगों के लिए सिम्बॉल के माध्यम से इसमें दर्शा कर जानकारी दी गई है।

  • आज विश्व सिकिल सेल दिवस पर होंगे आयोजन
    विश्व सिकिल सेल दिवस 19 जून को नगरपालिका टाउन हाल मण्डला में सिकल सेल दिवस का आयोजन किया जाएगा। इस कार्यक्रम में पीएचई मंत्री सम्पतिया उइके शामिल होंगी। कलेक्टर डॉ. सलोनी सिडाना के मार्गदर्शन में शिविर का आयोजन प्रात: 9 बजे से किया जायेगा। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ने केसी सरौते ने बताया कि इस शिविर के दौरान सिकिल सेल एनीमिया के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए टेलीकास्ट के माध्यम से जानकारी दी जायेगी। साथ ही 40 वर्ष के व्यक्तियों की स्क्रीनिंग एवं जांच कर मरीजों को दवाईयां दी जाएंगी। इसके अलावा सिकिल सेल एनीमिया से पीडि़त मरीजों को शिविर में एकत्रित कर स्क्रीनिंग की महत्ता, परामर्श एवं वंशानुगत बीमारी से अवगत कराकर जनजागरूकता की जाएगी।

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