इलेक्ट्रोहोम्योपैथी से गम्भीर बीमारियों का उपचार संभव

in #bulandshahr2 years ago

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चिकित्सकों ने किया साइडइफेक्ट न होने का दावा

बुलंदशहर। जनपद में यूपीईडीएमए के सौजन्य से दरियापुर के निकट एक होटल में इलेक्ट्रोहोम्योपैथी उपचार हेतु प्रदेश स्तर से आये डॉक्टरों की मीटिंग आयोजित की गई। जिसमें मरीजों के उपचार हेतु इस चिकित्सा पद्धति से जुड़े वरिष्ठ चिकित्सकों ने अपने अनुभव मीटिंग में एक दूसरे से साझा करते हुए इसकी विशेषताओं के बारे में बताया। ईटली के काउंट सीजर मेटी ने सन 1865 में इलेक्ट्रोपैथी चिकित्सा पद्धति का आविष्कार किया था। इस पद्धति से जुड़े चिकित्सकों का कहना है कि एलोपैथिक दवाओं के दौर में इस पद्धति को अधिक सफलता नहीं मिल पाई जबकि इस पद्धति से उपचार करने से साइडइफेक्ट भी होने की संभावना न के बराबर रहती है। इस पद्धति से असाध्य रोगों के उपचार के दावे भी चिकित्सकों ने किये।
मीटिंग में मौजूद अनुभवी चिकित्सकों ने इलेक्ट्रोपैथी की व्याख्या करते हुए बताया कि इलेक्ट्रो का अर्थ है- शरीर में पाए जाने वाली धनात्मक व ऋणात्मक शक्ति, होम्यो का अर्थ समानता एवं पैथी का अर्थ चिकित्सा व सिद्धांत से है। अत: इलेक्ट्रोहोम्योपैथी चिकित्सा पद्धति से मनुष्य में असामान्य शक्ति को पेड़-पौधों से प्राप्त रस में उपस्थित धनात्मक व ऋणात्मक शक्तियों के द्वारा समान किया जाता है। इसमें दवा बनाने का तरीका बिल्कुल अलग होता है। जिस पौधे का अर्क निकालना होता है उस पौधे को एक कांच के जार में पानी के साथ रख देते हैं। हर सप्ताह पुराने पौधों को निकाल दिया जाता है और दूसरा नया पौधा उसमें डाल देते हैं। यह प्रक्रिया करीब 35-40 दिन तक चलती है। फिर उस पानी को फिल्टर किया जाता है। इसे स्पेजरिक एसेंस कहते हैं। जरूरत के अनुसार इसको गाढ़ा या पतला कर दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। अभी करीब 114 पौधों की पहचान हो चुकी है जिनसे इलेक्ट्रोपैथी के लिए दवाइयां बनाई जा रही हैं। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता और ब्लड बढ़ाने के लिए भी इस पैथी का इस्तेमाल किया जाता है। कैंसर, शुगर, पथरी, लकवा, जोड़ो के दर्द, हड्डी सम्बन्धी, दौरे पड़ना, किडनी स्टोन, कब्ज, टॉन्सिलाइटिस, गठिया, पाइल्स, साइनोसाइटिस, चर्म रोग, ब्लड प्रेशर व दमा आदि में उपयोगी माना जाता है।इंसेट
पांच प्रकार से होती है रोगों की पहचान
इस पद्धति में पांच प्रकार से रोगों की परख की जाती है। इनमें वायु, पित्त, रस, रक्त और मिश्रित प्रकृति होती है। इसमें शरीर का तापमान भी देखा जाता है। इसके साथ ही इस पैथी में बीमारियों को दो वर्गों में बांटा गया है धनात्मक और ऋणात्मक बीमारियां। जिस बीमारी में परिवर्तन के बाद शरीर में अवयवों की मात्रा अधिक हो जाती है उसेे धनात्मक और जिसमें अवयवों की मात्रा घट जाती है उसे ऋणात्मक बीमारी कहते हैं। जैसे शरीर में शुगर का स्तर बढऩा धनात्मक और शुगर या ब्लड प्रेशर लेवल कम होना ऋणात्मक बीमारी की श्रेणी में आता है। एक्सपर्ट की मानें तो बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए इस पद्धति में इलाज किया जाता है। इलाज के दौरान मरीज को कुछ सावधानी भी बरतनी होती है। कार्यक्रम में डॉ वकील अहमद, शान अहमद, पूरन सिंह, राजेश, नौशाद, फुरकान व डॉ गौड़ आदि सहित सैकड़ो चिकित्सक मौजूद रहे।