आधुनिक मृत्यु भोज व डीजे साउंड का बहिष्कार

in #boycott2 months ago

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  • आधुनिक मृत्यु भोज व डीजे साउंड का बहिष्कार
  • नारायणगंज के चटरा डुंगरिया में नियम उल्लंघन पर लगेगा पांच हजार का दण्ड
  • मृत्यु भोज में बनेगा सिर्फ दाल, चांवल और कड़ी
  • परपंपराओं में प्रतिस्पर्धा के चलते कर्ज में दब रहा गरीब तबका
  • भारतीय आम नागरिक देश संघर्ष युवा संगठन के युवाओं की पहल

मंडला. हमारे समाज में समानता और विषमता है। जिसके चलते अलग-अलग समाज के लोग मृत्यु भोज, सामाजिक कार्यक्रम और शादी विवाह में बेजा खर्च करते है। समाज एक ओर इंसानियत का पाठ पढ़ाता है तो दूसरी ओर इन्हीं रूढ़ीवादी परंपरा में घिर जाता है। अब समाज आधुनिक रस्म, रिवाज के नाम पर कर्ज के बोझ तले दबता जा रहा है। पुरानी परंपराएं समाप्त होती जा रही है। मानवता सर्वोपरि होना चाहिए, इसी दिशा में भारतीय आम नागरिक देश संघर्ष युवा संगठन के युवाओं ने विकासखंड नारायणगंज के ग्राम चटरा डुंगरिया गांव के पंच, मुकदम, दीवान, बुजूर्ग समेत सभी ग्रामीणों के साथ एक बैठक कर इस रूढ़ीवादी विचारधारा के साथ मृत्यु भोज में आधुनिकता की परत को उतारने पर चर्चा की गई। युवा संगठन पहल करते हुए मिशाल पेश करने का प्रयास कर रही है। जिससे ग्राम के सभी वर्ग के लोग इस पुरानी पंरपरा को सहजने के साथ उसका निर्वाहन कर सके।

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जानकारी अनुसार भारतीय आम नागरिक देश संघर्ष युवा संगठन ने ग्राम के लोगों से चर्चा करते हुए सभी से सुझाव लिए, जिसमें मृत्यु भोज में पुरानी परंपरा अनुसार भोजन कराना और शादी विवाह में डीजे साउंड को पूर्णत: प्रतिबंधित करने पर विचार विमर्श किया गया। दुर्गेश सिंगरौरे ने ग्राम की बैठक में कहां कि हमेशा से सामाजिक कुरीतियों का बहिष्कार होता आ रहा है, लेकिन इस बार हम ग्राम चटरा डुंगरिया में मृत्यु भोज और शादी में डीजे साउंड प्रतिबंध को लेकर बात करेंगे। आज के आधुनिक समाज में शादी, विवाह में डीजे की परंपरा आम हो गई है, हम अपनी पुरानी पंरपराओं को पीछे छोड़ते जा रहे है। पहले डीजे साउंड की परंपरा चलन में नहीं थी, यह चलन आधुनिक है, जिसके कारण गरीब तबके का समाज कर्ज के बोझ में दब जाता है। आधुनिक परंपराओं का निर्वहन करने के कारण लोगों को कर्ज लेने मजबूर होना पड़ता है। डीजे के चलन से कई बार सामाजिक कार्यक्रमों में विवाद की स्थिति भी बनती है।

  • पूर्वजों की विरासत खत्म होने की कगार पर :
    ग्रामीणों को बताया कि शादी दो परिवारों को जोडऩे के साथ दो लोगों को अपने जीवन साथी चुनने की एक सामाजिक पंरपरा है। यह परंपरा हमारे पूर्वजों द्वारा बनाई गई है। जिसमें डीजे साउंड का कोई स्थान नहीं है। यह चलन सामाजिक कार्यक्रम के लिए एक खर्चीला है। जिससे गरीब और मध्यम वर्गीय परिवार पर बोझ बढ़ाता है। आधुनिकता की चढ़ी परत के कारण समाज का एक छोटा वर्ग दिखावा और प्रतिस्पर्धा के कारण अपनी पंरपराओं के निर्वाहन को पूरा करने कर्ज में दबता जा रहा है। समाज का मतलब पिछड़े, शोषित और वंचित वर्ग को मूलधारा से जोडऩा है। पूर्वजों ने संस्कृति और अपनी सभ्यता को विरासत के रूप में सहजने के लिए एक समाज का निर्माण किया। समाज ने सामाजिक कार्य के लिए कुछ नियम बनाए, जिससे पुरातन संस्कृति और सभ्यता बनी रहे, लेकिन अब इन पर आधुनिकता की छाप चढ़ गई है। सामाजिक कार्यो में आधुनिकता की परत से पूर्वजों की विरासत खत्म होने की कगार पर है। जिसे सहजकर रखना हम सभी युवाओं की जिम्मेदारी है।

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  • मृत्यु भोज पर आधुनिकता हाबी:
    संगठन के हेमराज पंद्रो ने दशगात्र की परंपरा पर अपनी बात रखते हुए कहां कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उस व्यक्ति की आत्म शांति और दुखी परिवार के इस दुख घड़ी में उसके साथ खड़े होकर दुख प्रगट करने की परंपरा है। ऐसे मौके पर उस परिवार का साथ देना समाज का कर्तव्य है। जिसके एक पूर्वजों ने दशगात्र की परंपरा बनाई थी, दशगात्र के दिन बना भोजन उस मृत आत्मा के प्रति भाव को प्रकट करता था लेकिन आज इस परपंरा पर भी आधुनिकता हाबी हो गई है। अब दशगात्र का मृत्यु भोज भी होटल के मेन्यू कार्ड की तरह हो गया है। आज सामाजिक दशगात्र कार्यक्रम में भी शादी, विवाह समेत अन्य सामाजिक कार्यक्रम जैसे भोज कराया जाने लगा है। पुरानी परंपराए समाप्त होते जा रही है। दशगात्र के मृत्यु भोज में भी आधुनिकता ने अपनी जगह बना ली है। जिसके कारण आज समाज का एक मध्यम व छोटे वर्ग के लोग इस दशगात्र जैसी परंपरा को बनाए रखने के लिए कर्ज लेने मजबूर है। जिस पर विचार करते हुए युवा संगठन के युवाओं ने नारायणगंज के ग्राम चटरा डुंगरिया में मृत्यु भोज पर पुरानी परंपरा अनुसार भोजन कराने की बात पूरे गांव के समाज के सामने रखी। जिस पर सभी ने सहमति दी। इसके साथ ही युवाओं ने कहां कि आगे हम प्रयास करेंगे कि दशगात्र की परंपरा का बहिष्कार करते हुए समाज के बीच उदाहरण पेश कर मृत्यु भोज को पूर्णत: बंद कराया जाएगा।

  • उच्च शिक्षा से आधुनिक कुरीतियों का अंत :
    संगठन के दुर्गेश उइके ने कहां कि हमारे समाज में अनेक कुरीतियां व्याप्त है। जिसके अंत से ही आने वाले पीढ़ी का भविष्य संवर सकता है। दुर्गेश ने कहां कि हमारे समाज में चल रही चोक प्रथा भी आधुनिक कुरीतियों की गिरफ्त में आ गई है। इस प्रथा में भी हम अपने बच्चों का चोक कार्यक्रम आयोजित करते है। जिसमें भी खूब रूपए खर्च किया जाता है। यदि चौक बरसा कार्यक्रम को साधारण रूप से मनाकर उसमें खर्च होने वाले पैसों से बच्चों का भविष्य भी संवार सकते है। यदि समाज बच्चों की खुशी में खर्च करने की जगह बच्चो को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में मदद कराने लगेगा तो, हमारा समाज इस आधुनिक कुरीतियों का अंत कर सकता है।

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  • गांव में बनाए नियम, दण्ड का भी प्रावधान लागू :
    नारायणगंज चटरा डुंगरिया गांव के पंच, मुकदम, दीवान और बुद्धिजीवियों ने कुछ सामाजिक नियम अब बना लिए है। गांव के मुखिया और पंचों ने युवाओं की बात समझ और सुना कर पूरा गांव सर्वसम्मति से इस नियम पर सहमति दे दी है। पूरे गांव के लिए बनाए गए नियम में कहां गया है कि गांव में होने वाले वैवाहिक समारोह बारात में डीजे साउंड पूर्णत: प्रतिबंध रहेगा। गांव में होने वाली शादी बिना डीजे साउंड के ही संपन्न होगी। इसके साथ ही दशगात्र जैसे समाजिक कार्यक्रम में मृत्यु भोज को पारंपरिक तरीके से कराया जाएगा, जैसे बुजूर्ग इस परंपरा को निर्वाहन करते आ रहे थे। मृत्यु भोज में सिर्फ दाल, चांवल और कड़ी ही बनाया जाएगा। इस नियम के लिए ग्राम का अमीर, गरीब सभी तबके के लोगों पर लागू होगा। बनाए गए इस सामाजिक नियम के विरूद्ध जाने वालों पर आर्थिक दण्ड का भी प्रावधान बनाया गया है। जिस पर भी सर्वसम्मति से सहमति दी गई है। नियमों का उल्लघंन करने वालों पर पांच हजार रूपए का दण्ड लगाया जाएगा। आयोजित बैठक को सफल बनाने में ग्राम के मुखिया, पंच रमा सिंग उइके, सुमरन यादव, बाबू लाल पंद्रो, सुरेश सुखिया, देवसिग पंद्रो, सुखदेव वरकड़े, पुन्नु लाल, मदन लाल यादव, रेवत पंद्रो, सुमेरा, प्रताप, देवी सिंग पंद्रो, पर्वत सिंग, रामकिशन उइके समेत ग्राम के सभी लोग मौजूद रहे।