अटल बिहारी वाजपेयी: ‘प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो’ - विवेचना
NEWS DESK: WORTHEUM, PUBLISHED BY, VAASUDEV KRISHNA, 31 MARCH 2022 ,12:10 PM IST
चालीस के दशक में भारत की आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले अधिकतर लोगों के निजी संबंध लकीर के फ़कीर नहीं थे.
गांधी खुलेआम ब्रह्मचर्य के साथ अपने प्रयोग कर रहे थे. कहा जाता है कि विधुर होते हुए भी जवाहरलाल नेहरू के एडवीना माउंटबेटन और पद्मजा नायडू के साथ संबंध थे.
समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ऐलानिया रमा मित्रा के साथ रह रहे थे जिनसे उन्होंने कभी विवाह नहीं किया.
उसी कड़ी में एक नाम अटल बिहारी वाजपेयी का भी है, जिनकी ज़िदगी में राजकुमारी कौल के लिए एक ख़ास जगह थी.
ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज (अब महारानी लक्ष्मीबाई कॉलेज) में पढ़ाई के दौरान वाजपेयी की मुलाक़ात राजकुमारी हक्सर से हुई जिनकी तरफ़ वो खिंचे चले गए.
हाल में प्रकाशित वाजपेयी की जीवनी की लेखिका मशहूर पत्रकार सागरिका घोष बताती हैं, "उस ज़माने में दोनों का व्यक्तित्व प्रभावित करने वाला हुआ करता था. राजकुमारी हक्सर बहुत सुंदर थीं, ख़ासतौर से उनकी आंखें. उन दिनों बहुत कम लड़कियां कॉलेज में पढ़ा करती थीं. वाजपेयी उनकी तरफ़ आकर्षित हो गए. राजकुमारी भी उन्हें पसंद करने लगीं."
वो बताती हैं, "पहले उनकी दोस्ती राजकुमारी के भाई चांद हक्सर से हुई. लेकिन जब शादी की बात आई तो राजकुमारी के परिवार ने शिंदे की छावनी में रहने वाले और आरएसएस की शाखा में रोज़ जाने वाले वाजपेयी को अपनी बेटी के लायक नहीं समझा. राजकुमारी हक्सर की शादी दिल्ली के रामजस कॉलेज में दर्शन शास्त्र पढ़ाने वाले ब्रज नारायण कौल से कर दी गई."
राजकुमारी कौल ने वाजपेयी के साथ अपने संबंधों को स्वीकारा
अटल बिहारी वाजपेयी के एक और जीवनीकार किंगशुक नाग अपनी क़िताब 'अटल बिहारी वाजपेयी द मैन फ़ॉर ऑल सीज़न्स' में लिखते हैं, "युवा अटल ने राजकुमारी के लिए लाइब्रेरी की एक क़िताब में एक प्रेम पत्र रख दिया था. लेकिन उन्हें उसका जवाब नहीं मिला. दरअसल राजकुमारी ने उस पत्र का जवाब दिया था लेकिन वो पत्र वाजपेयी तक नहीं पहुंच सका."
जब वाजपयी सांसद के रूप में दिल्ली आ गए तो राजकुमारी से मिलने का उनका सिलसिला फिर से शुरू हुआ.
भारतीय विदेश सेवा के वरिष्ठ अधिकारी और इस समय नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल के सदस्य हरदीप पुरी की अटल बिहारी वाजपेयी से पहली मुलाक़ात प्रोफ़ेसर ब्रज नारायण कौल के घर पर हुई थी जो उनके गुरू हुआ करते थे.
अस्सी के दशक में एक पत्रिका सैवी को दिए गए इंटरव्यू में राजकुमारी कौल ने स्वीकार किया था कि उनके और वाजपेयी के बीच परिपक्व संबंध थे, जिसे बहुत कम लोग समझ पाएंगे.
इस इंटरव्यू के अनुसार उन्होंने कहा था, "वाजपेयी और मुझे अपने पति को इस रिश्ते के बारे में कभी सफ़ाई नहीं देनी पड़ी. मेरे पति और मेरा, वाजपेयी के साथ रिश्ता बहुत मज़बूत था."
वाजपेयी के सबसे क़रीबी दोस्त अप्पा घटाटे ने सागरिका घोष को बताया था कि "मुझे नहीं मालूम कि उनके संबंध प्लेटोनिक थे या नहीं और वास्तव में इससे कोई फ़र्क भी नहीं पड़ता."
पूरी दुनिया इस संबंध को अपरंपरागत और अजीब ज़रूर मानती थी लेकिन वास्तव में ये दोनों के बीच उस दोस्ती का स्वाभाविक विस्तार था जो ग्वालियर में कॉलेज सहपाठियों के तौर पर शुरू हुई थी.
राजकुमारी कौल पति सहित वाजपेयी के घर शिफ़्ट हुईं
बाद में जब वाजपेयी को दिल्ली में बड़ा सरकारी घर मिला तो राजकुमारी कौल, उनके पति ब्रज नारायण कौल और उनकी बेटियां वाजपेयी के घर में शिफ़्ट कर गए. उनके घर में उन सबके अपने-अपने शयनकक्ष हुआ करते थे.
सागरिका घोष बताती है, "वाजपेयी के काफ़ी नज़दीक रहे बलबीर पुंज ने उन्हें बताया था कि जब वो पहली बार वाजपेयी के घर गए तो उन्हें कौल दंपत्ति को वहां रहते देख थोड़ा अजीब-सा लगा. लेकिन जब उन्होंने देखा कि उनके लिए ये सामान्य सी बात है तो उन्होंने भी इस बारे में सोचना छोड़ दिया."
"जब वाजपेयी के सबसे नज़दीकी दोस्त अप्पा घटाटे वाजपेयी को अपने यहां खाने पर बुलाते थे तो वाजपेयी, राजकुमारी कौल और ब्रज नारायण कौल तीनों साथ-साथ उनके यहां जाते थे. बलबीर पुंज कहते हैं कि वाजपेयी एक अध्यापक के रूप में बीएन कौल का बहुत आदर करते थे. ब्रज नारायण कौल ने न सिर्फ़ राजकुमारी और वाजपेयी के बीच दोस्ती को स्वीकार कर लिया था बल्कि वो वाजपेयी को बहुत पसंद करने लगे थे. वो अक्सर पूछते थे अटल ने खाना खाया या नहीं? उनका भाषण कैसा था? उनके भाषण में जोश था या नहीं?"
मिसेज़ कौल की सिफ़ारिश से करण थापर को मिला वाजपेयी का इंटरव्यू
मशहूर पत्रकार करण थापर एक बार वाजपेयी के इंटरव्यू के लिए उनसे संपर्क करना चाह रहे थे लेकिन बात बन नहीं पा रही थी.
करण थापर अपनी आत्मकथा 'डेविल्स एडवोकेट' में लिखते हैं, "मैंने थक हार कर वाजपेयी के रायसिना रोड वाले घर पर फ़ोन मिलाया. काफ़ी मशक्कत के बाद मिसेज़ कौल लाइन पर आईं. जब मैंने उन्हें अपनी परेशानी बताई तो उन्होंने कहा - मुझे उनसे बात करने दीजिए. इंटरव्यू हो जाना चाहिए. अगले दिन वाजपेयी इंटरव्यू देने के लिए तैयार हो गए. उनके पहले शब्द थे, आपने तो हाई कमांड से बात कर ली. अब मैं आपको कैसे मना कर सकता हूं."
'कुंवारा हूं ब्रह्मचारी नहीं'
कहानी मशहूर है कि साठ के दशक में मिसेज़ कौल अपने पति को तलाक देकर वाजपेयी से शादी करना चाहती थीं, लेकिन उनकी पार्टी और आरएसएस का मानना था कि अगर वाजपेयी ऐसा करते हैं तो इसका उनके राजनीतिक करियर पर प्रतिकूल असर पड़ेगा.
वाजपेयी ने ताउम्र शादी नहीं की लेकिन मिसेज़ कौल उनकी निजी ज़िदगी का एक अहम हिस्सा बनीं रहीं.
एक कार्यक्रम के दौरान वाजपेयी ने स्वीकार किया था, "मैं कुंवारा हूं ब्रह्मचारी नहीं."
वाजपेयी की जीवनी 'हार नहीं मानूंगा' में विजय त्रिवेदी लिखते हैं, "दोहरे मानदंडों वाली राजनीति में ये अलिखित प्रेम कहानी तक़रीबन पचास साल चली और जो छिपाई नहीं गई. लेकिन उसे कोई नाम भी नहीं मिला. हिंदुस्तान की राजनीति में शायद पहले कभी नहीं हुआ होगा कि प्रधानमंत्री के सरकारी आवास में ऐसी शख़्सियत रह रही हो जिसे प्रोटोकॉल में कोई जगह न दी गई हो, लेकिन जिसकी उपस्थिति सबको मंज़ूर हो."
आरएसएस ने एक विवाहित महिला के साथ वाजपेयी के संबंधों पर कभी मुहर नहीं लगाई.
लेकिन वो उनका कुछ बिगाड़ भी नहीं पाए, क्योंकि चुनावी राजनीति में वो उनके सबसे बड़े पोस्टर ब्वॉय थे जिनमें भीड़ जमा करने की क्षमता थी.
वाजपेयी और मिसेज़ कौल के संबंधों पर गुलज़ार का लिखा ख़ामोशी फ़िल्म का वो गाना बिल्कुल सटीक बैठता है -
"हमने देखी है उन आंखों की महकती ख़ुशबू
हाथ से छूके इसे रिश्तों का इल्ज़ाम न दो
सिर्फ़ एहसास है ये रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो"
मिसेज़ कौल के निधन पर सोनिया गांधी ने जताया शोक
वर्ष 2014 में जब राजकुमारी कौल का 86 वर्ष की आयु में निधन हुआ, तो उसके बाद जारी प्रेस रिलीज़ में कहा गया कि मिसेज़ कौल पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के परिवार की सदस्य थीं.
इंडियन एक्सप्रेस ने उन्हें वाजपेयी का सबसे 'अनजान अदर हाफ़' बताया.
हालांकि उस समय चुनाव प्रचार अपने चरम पर था, लेकिन सोनिया गांधी ने चुपचाप वाजपेयी के निवास पर जा कर उनके निधन पर अपनी संवेदना प्रकट की थी.
उनके अंतिम संस्कार में न सिर्फ़ चोटी के बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी, अमित शाह, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली मौजूद थे, बल्कि आरएसएस ने भी अपने दो वरिष्ठ प्रतिनिधियों सुरेश सोनी और राम लाल को वहां भेजा था.
2009 के बाद गंभीर रूप से बीमार हुए अटल बिहारी वाजपेयी राज कुमारी के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो पाए थे.
बाद में किंगशुक नाग ने लिखा, "राजकुमारी कौल के देहावसान के साथ भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी प्रेम कहानी हमेशा के लिए समाप्त हो गई. कई दशकों तक ये प्रेम कहानी पनपी लेकिन बहुत से लोग इससे अनजान ही रहे."
वाजपेयी की सभी ज़रूरतों का ध्यान रखती थीं मिसेज़ कौल
वाजपेयी हमेशा राजकुमारी को मिसेज़ कौल कह कर पुकारते थे. वाजपेयी का घर वो ही चलाती थीं. उनके खाने, दवाओं और रोज़मर्रा की ज़रूरतों की ज़िम्मेदारी मिसेज कौल की थी.
एक बार अटल बिहारी वाजपेयी ने याद किया था, जब वो राजेंद्र प्रसाद रोड पर रहा करते थे तो मिसेज़ कौल उनके घर आई थीं.
"वो ये देख कर दंग रह गई थीं कि वाजपेयी कपड़े धोने वाले साबुन का इस्तेमाल अपने शरीर को साफ़ करने में कर रहे थे."
सागरिका घोष एक किस्सा सुनाती हैं, "बलबीर पुंज ने उन्हें बताया था कि एक बार जब वो वाजपेयी के घर गए तो मिसेज़ कौल घर पर नहीं थी. मेज़ पर वाजपेयी के लिए खाना लगा हुआ था, सूखी रोटियां और एक सब्ज़ी. खाने को देख कर वाजपेयी ने मुंह बनाया और रसोई में खुद जा कर शुद्ध घी में पूड़ियां तलने लगे."
"जब मिसेज़ कौल वापस आईं तो उन्हें मेज़ पर पूड़ियां रखी दिखाई दीं. वो नाराज़ हो गईं और वाजपेयी से बोलीं- ये क्या है? आप तेल वाली पूड़ियां खा रहे हैं? आप शुद्ध घी की पूड़ियां कैसे खा सकते हैं? वाजपेयी, जिन्होंने अभी खाना शुरू नहीं किया था, तुनक कर जवाब दिया था- आप तो मुझे अशुद्ध खाना देने पर तुली हुई हैं."
राजकुमारी कौल
वाजपेयी की उमा शर्मा से दोस्ती
वाजपेयी को सुंदर महिलाओं का साथ बहुत पसंद था. उनकी महिला मित्रों में मशहूर कत्थक नृत्यांगना उमा शर्मा भी थीं.
जब सागरिका घोष ने उमा शर्मा से वाजपेयी के साथ उनके संबंधो के बारे में सवाल किया तो उन्होंने जवाब दिया, "वाजपेयी मेरा नृत्य पसंद करते थे. वो अक्सर मेरे शो में आते थे. हम दोनों के बीच बहुत हंसी-मज़ाक चलता था. वो कला प्रेमी थे. हम दोनों ग्वालियर धौलपुर के इलाक़े से आते थे. एक बार जब मैंने हरिवंशराय बच्चन की कविता मधुशाला और गोपाल दास नीरज की कविता पर नृत्य किया तो वाजपेयी ने मुझसे कहा था- 'हम पर भी कृपा कीजिए उमाजी.' तब मैंने उनकी कविता 'मृत्यु से ठन गई' पर नृत्य किया था'."
सागरिका घोष बताती हैं, "2001 में उमा शर्मा को पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया. समारोह के बाद हुई चाय पार्टी में वो काफ़ी देर तक सोनिया गांधी से बात करती रहीं. इस बीच वाजपेयी उनको लगातार देखते रहे. जब वो वाजपेयी के पास गईं तो उन्होंने उन्हें उलाहना दिया, उमाजी ग़ैरों से बात करती हो और हमसे पद्म भूषण लेती हो."
मशहूर कत्थक नृत्यांगना उमा शर्मा
खाने-पीने के शौकीन थे वाजपेयी
अपने शुरुआती दिनों में वाजपेयी वाइन और स्कॉच के शौकीन थे. वो ग्वालियर का चिवड़ा, चांदनी चौक की जलेबियां और लखनऊ की चाट और ठंडाई पसंद करते थे.
उनके पसंदीदा खानों में रसगुल्ला, मुर्गा, खीर, खिचड़ी और तले हुए झींगे और मछली थे.
वो अक्सर दिल्ली की शाहजहां रोड पर यूपीएससी के दफ़्तर के पास चाट खाने जाते थे.
जॉर्ज फ़र्नांडिस जब रक्षा मंत्री थे तो वो हर क्रिसमस पर बैंगलोर (आज का बंगलुरू) की बेकरी 'कोशीज़' से ख़ासतौर से वाजपेयी के लिए केक मंगवाते थे. कनॉट प्लेस के इंडियन कॉफ़ी हाउज़ में वाजपेयी अक्सर दोसा खाने के बाद कोल्ड कॉफ़ी पीते देखे जा सकते थे.
उन्हें चीनी खाना इस हद तक पसंद था कि 1979 में विदेश मंत्री के रूप में चीन जाने से पहले उन्होंने कई दिनों तक चॉप स्टिक से खाने का अभ्यास किया था.
विजय त्रिवेदी वाजपयी की जीवनी में लिखते हैं, "प्रकाश जावड़ेकर ने मुझे बताया था कि वाजपेयी को ठंडा कोकाकोला बहुत पसंद था. एक बार जावड़ेकर ने वाजपेयी से पूछा कि इतना ठंडा पीने से आपका गला नहीं बैठ जाता? वाजपेयी ने अपने अंदाज़ में जवाब दिया था- मेरा गला तो खुल जाता है इससे."
वर्ष 2000 में जब वाजपेयी इटली गए थे तो उनके प्रेस सलाहकार एच के दुआ ने उनसे पूछा था, वहां आपको कैसा खाना मिल रहा है तो उनका जवाब था, 'बैगन बहुत खाना पड़ रहा है.'
प्रधानमंत्री कार्यालय में सचिव रहे एन के सिंह अपनी आत्मकथा 'पोर्टरेट ऑफ़ पावर हाफ़ अ सेंचुरी ऑफ़ बींग एट रिंगसाइड' में लिखते हैं, "एक बार वाजपेयी के निवास पर बैठक रात के खाने के समय तक खिंच गई. उन्होंने हमारी तरफ़ देख कर कहा 'मुझे तो परहेज़ी खाना खाना पड़ रहा है, लेकिन इन लोगों का क्या होगा?' "
"उन्होंने अपने परिवार वालों से कहा कि इनके लिए खाने का इंतज़ाम करिए. तुरंत ही हम लोगों के लिए बेहतरीन खाने का इंतज़ाम किया गया."
वाजपेयी की दिनचर्या
जब वाजपेयी प्रधानमंत्री बन गए तो सुबह साढ़े छह बजे उठ जाया करते थे. उठते ही वो शहद और नींबू मिले गर्म पानी का एक गिलास पीते थे.
इसके बाद वो 8 बजे तक अख़बार पढ़ते थे. आठ से साढ़े आठ बजे तक या तो वो अपने ट्रेडमिल पर वॉक करते थे या फिर अपने कुत्तों बबली और लॉली के साथ वॉक पर जाते थे.
नाश्ते में वो एक अंडे का ऑमलेट, टोस्ट या इडली लिया करते थे. साथ में पपीता, अंगूर, तरबूज़ और संतरे हुआ करते थे.
सागरिका घोष बताती हैं, "वाजपेयी अपना दिन का खाना डेढ़ बजे खाते थे. दिन के भोजन में सब्ज़ियां, चपाती और रायता हुआ करता था. इसके बाद या तो वो खीर खाते थे या गुलाबजामुन. खाने के बाद वो 4 बजे तक आराम करते थे."
"इसके बाद उनके दिन का दूसरा हिस्सा शुरू होता था जो रात साढ़े आठ बजे तक चलता था. पांच बजे कॉकटेल समोसे, काजू या पापड़ी चाट के साथ चाय सर्व होती थी. रात के खाने में वो हल्का वेजेटेबिल सूप, चीनी तरीके से पकाए झींगे या चिकन खाते थे. मीठे में या तो कुल्फ़ी होती थी या आइसक्रीम."
डॉक्टरों की सलाह पर शराब छोड़ी
अपने शुरू के करियर में अपने दोस्त जसवंत सिंह की तरह वाजपेयी काफ़ी शराब पीते थे लेकिन अपने जीवन के आख़िरी सालों में ख़ासतौर से प्रधानमंत्री बनने के बाद वाजपेयी ने शराब पीनी छोड़ दी थी.
डॉक्टरों ने उनकी बीमारियों और घुटने के दर्द को देखते हुए उनके शराब पीने पर रोक लगा दी थी.
सागरिका घोष बताती है, "पवन वर्मा ने उन्हें बताया था कि एक बार साइप्रस यात्रा के दौरान जहां वो उन दिनों राजदूत थे उन्होंने वाजपयी के लिए वहां के एक मशहूर रेस्तरां में भोजन का इंतज़ाम किया था. वर्मा ने वाजपेयी से इसरार किया कि माहौल अच्छा है. आप क्यों नहीं एक छोटी ड्रिंक ले लेते? वाजपेयी की आंखों में चमक आ गई लेकिन तभी एसपीजी के अफ़सर जी टी लेपचा ने आगे बढ़ कर कहा, 'नो ड्रिंक प्लीज़. ओनली स्प्राइट.' वाजपेयी ने दिल मसोस कर अपने को रोक लिया."
अटल बिहारी वाजपेयी इंदिंरा गांधी के साथ
मंदिरों और धार्मिक कार्यक्रमों से दूर थे वाजपेयी
वाजपेयी के सचिव रहे शक्ति सिन्हा ने एक बार मुझे बताया था कि वो प्रैक्टिसिंग हिंदू नहीं थे.
सागरिका घोष बताती हैं, "वो मंदिर नहीं जाते थे और इस क़िताब के शोध के दौरान मुझे कोई सबूत नहीं मिला कि नित्य पूजा करना उनके रोज़ के रुटीन में शामिल था. 1995 में जब ख़बर फैली कि गणेश की मूर्तियां दूध पी रही हैं तो वाजपेयी ने उसकी खिल्ली उड़ाई थी. उनके दोस्त घटाटे ने मुझे बताया था कि उनकी किसी से कोई धार्मिक दुश्मनी नहीं थी. बहुत समय तक उनका ड्राइवर रहा मुजीब मुसलमान था."
"वर्ष 1980 में जब पाकिस्तान के उच्चायुक्त अब्दुल सत्तार उनके लिए राष्ट्रपति ज़िया उल हक़ की तरफ़ से पठानी सूट का तोहफ़ा लाए थे, तो उन्होंने बहुत शौक से उसे पहना था. इसकी जब कई लोगों ने आलोचना की तो वाजपेयी ने जवाब दिया था - 'मैं देश का गुलाम हूं, वेश का नहीं.' शिया नेता मौलाना कल्बे सादिक भी कहा करते थे कि वाजपेयी ने कभी हिंदुओं और मुसलमानों के बीच कोई भेद नहीं किया. अपने पूरे करियर के दौरान पाकिस्तान से संबंध सुधारने को उन्होंने हमेशा तरजीह दी'."
समावेशी नेता थे अटल बिहारी वाजपेयी
एक दक्षिणपंथी पार्टी के सदस्य होते हुए भी कम्युनिस्ट नेता हीरेन मुखर्जी, भूपेश गुप्ता और इंद्रजीत गुप्ता वाजपेयीके क़रीबी दोस्त हुआ करते थे.
उनको क़रीब से जानने वालों में सीएन अन्नादुराई, करुणानिधि के अलावा कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव भी हुआ करते थे जिनको वो अपना गुरू मानते थे.
पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के साथ अटल बिहारी वाजपेयी
मशहूर पत्रकार विनोद मेहता ने अपनी आत्मकथा 'लखनऊ ब्वॉय' में लिखा था, "मैं निजी रूप से अधिकतर राजनेताओं को पसंद नहीं करता, लेकिन वाजपेयी उन कुछ लोगों में से थे जिन्हें मैं पसंद करता था. मैं इस मामले में मशहूर न्यायविद फ़ाली नारीमन से पूरी तरह सहमत हूं जो कहा करते थे, 'डिसपाइट हिज़ इनकन्सिसटेंसीज़ आई लाइक द ओल्ड मैन' (उनकी असंगतियों के बावजूद मैं इस बूढ़े शख़्स को पसंद करता हूं.)"
सागारिका घोष उनका आकलन करते हुए कहती हैं, "नैतिकतावादी और अनुशासनशील संघ परिवार में वाजपेयी गोश्त खाने और शराब पीने वाले ग़ैर-परंपरावादी थे. उनके सबसे क़रीबी दोस्त ब्रजेश मिश्रा और जसवंत सिंह थे जिनका संघ परिवार से दूर-दूर का वास्ता नहीं था. वाजपेयी की शख़्सियत में कई परतें और विरोधाभास थे. लेकिन एक चीज़ उनमें हमेशा बनी रही, वो थी भारत पर अपना निशान छोड़ जाने की महत्वाकांक्षा."
:JSRIKRISHNA: