रोजा इफ्तार से मुहर्रम तक, धीरे-धीरे बढ़ी नीतीश की सेक्युलर राजनीति

in #bihar2 years ago

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पटना: राजनीति में कुछ भी बिना कारण नहीं होता। यहां हर कदम का एक विशेष राजनीतिक अर्थ होता है, जिसके जरिए लोगों के बीच विशेष संदेश देने की कोशिश की जाती है। इस नजरिये से देखें तो नीतीश कुमार ने बेहद सधे तरीके से काफी पहले ही यह संदेश देना शुरू कर दिया था कि भाजपा के साथ उनकी राजनीतिक पारी के अंत का समय करीब आ चुका है। आरजेडी की इफ्तार पार्टी पर पहुंचकर नीतीश कुमार ने जो सियासी बदलाव का संकेत दिया था, मुहर्रम के दिन वह अपनी मंजिल पर पहुंच चुका गया। राजनीतिक पंडित मानते हैं कि ‘इफ्तार’ और ‘मुहर्रम’ का दिन कोई संयोगमात्र नहीं है, बल्कि यह बहुत सोच-समझकर किया गया एक फैसला था। इसके जरिए प्रदेश में एक बार फिर ‘सेक्युलर राजनीति’ की वापसी के संदेश दिये गए हैं।

जातिगत जनगणना पर आए थे साथ

लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार जेपी आंदोलन और सोशलिस्ट विचारधारा के नेता रहे हैं। राजनीतिक हितों के परस्पर टकराव के कारण बीच-बीच में उनके रास्ते अलग भले ही रहे हों, लेकिन उनके बीच वैचारिक करीबी सदैव बनी रही। यही कारण है कि सत्ता से दूरी होने के बाद भी दोनों दलों के बीच एक राजनीतिक करीबी बनी रही। यही करीबी पहले भी जदयू को राजद के साथ लाने में सफल रही थी। कुछ समय पहले भी जातिगत जनगणना के मुद्दे पर दोनों दलों का साथ आना संयोग मात्र नहीं था। यह उनकी वैचारिक समझ का ही परिणाम था जो दोनों की राजनीतिक पारी को लंबे समय तक मजबूत धरातल प्रदान कर सकता है।
वहीं, माना जाता है कि भाजपा के साथ नीतीश कुमार का गठबंधन पूरी तरह सत्ता के लिए किया गया समझौता था। दोनों दलों के बीच वैचारिक आधार पर कभी कोई साम्यता नहीं थी। भाजपा कट्टर हिंदुत्व की समर्थक रही है। वह राम मंदिर आंदोलन के जरिए अपनी राजनीतिक यात्रा तय करती रही और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आने के बाद भी अपने उसी विचारधारा को लगातार आगे बढ़ाती हुई दिख रही है।

भाजपा के कई कदम नीतीश को रहे नापसंद

हाल ही में भाजपा के कई कदम अल्पसंख्यक समुदाय के विरूद्ध माने गए। इसमें पूरे देश में एनआरसी लाने का निर्णय भी शामिल था। ये सभी कदम नीतीश की राजनीति के विरुद्ध जाते थे, लेकिन इसके बाद भी सत्ता के लिए दोनों ही दलों ने एक-दूसरे की वैचारिक समझ को ढोने का ही काम किया। नीतीश कुमार का अल्पसंख्यक समुदाय के बीच एक बड़ा आधार रहा है। वे कभी मुस्लिम मतदाताओं की उपेक्षा नहीं कर सकते थे। लिहाजा जदयू और भाजपा के बीच गठबंधन पहले दिन से बेमेल और सत्ता के लिए किया गया गठबंधन माना जा रहा था जिसे एक दिन टूटना ही था। मुसलमानों के त्योहार मुहर्रम पर वह दिन आ गया।

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