बिहारः सूखे की आशंका के बीच नीतीश के मंत्री कर रहे 'ईश्वर से प्रार्थना'- ग्राउंड रिपोर्ट
नालंदा ज़िले के हरनौत प्रखंड से बहने वाली महाने नदी इन दिनों कुछ यूं सूखी दिखाई देती है, जैसी दशकों में कभी नहीं सूखी. लोग नदी की तलहटी में चहलकदमी करते देखे जा सकते हैं, जबकि उत्तर भारत में यह मॉनसून का मौसम है.
आमतौर पर बरसाती नदियां इन दिनों जल से लबालब रहा करती हैं. सिंचाई के लिए लोग इन नदियों पर निर्भर रहते हैं, लेकिन इस बार परिस्थितियां एकदम उलट हैं. ऐसा लग रहा है जैसे समूचा बिहार और उससे सटे राज्य जैसे झारखंड, पश्चिम बंगाल का अधिकांश हिस्सा और उत्तर प्रदेश का पूर्वी हिस्सा भारी सुखाड़ के जद में आ चुका है.
निमाकोल गांव की ही रहने वाली सुगनी देवी (65 वर्ष) आसमान की ओर देखते हुए कहती हैं, "अकाल घोषित हो गैलन, ना तs कउची करियन हमनी? कउची खाके किसान बचबन? बोरिंग में पानी जरी-जरी दे रहलन हs, बिजली जमा करियन कि आपन पेट पालियै? (अकाल घोषित हो जाए, नहीं तो हम क्या करेंगे? किसान क्या खाके बचेगा? बोरिंग से थोड़ा-थोड़ा पानी दे रहे हैं, बिजली बिल जमा करें कि अपना पेट पालें?)."
गांव के मुहाने पर ही हमारी मुलाकात नीतीश (35 वर्ष) से हुई. गांव से सटकर बहने वाली 'महाने' को दिखाते हुए वे कहते हैं, "ऐसी स्थिति तो कभी नहीं देखे. पानी कम ज़रूर हुआ था लेकिन इस बार ज्यादा कम है. उपजा हुआ फसल भी मर रहा है. किसान कैसे बचेगा? सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए."
वहीं सूबे में धान का कटोरा कहे जाने वाले इलाके (कैमूर) से ताल्लुक रखने वाले यमुना सिंह कहते हैं, "प्रकृति के रंज होने से किसानों को बहुत अधिक परेशानी है. चूंकि बिचड़ा (बीज) पड़ने के दो-ढाई महीने के बाद रोपनी हुई, तो उसका असर उपज तो पड़ेगा ही. बिजली मिल रही है लेकिन ग्राउंड वाटर का लेयर नहीं है."
"पम्पिंग सेट चल नहीं पा रहे. नदी में पानी नहीं है तो नहर भी वैसे नहीं चल पा रहे. जैसे जहां जमीन थोड़ा नीचे है वहां पानी है लेकिन बाकी जगहों पर भारी दिक्कत है. विगत वर्षों की तुलना में किसानों को 80 फीसदी परेशानी बढ़ गई है."