जब दिया रंज बुतों ने तो ख़ुदा याद आया

in #bihar2 years ago

फ़ज़ल इमाम मल्लिक

बिहार की सत्ता में शामिल राजद के लिए सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. गोपलगंज उपचुनाव में मिली हार से वह उबर नहीं पा रहा है. राजद के वोट बैंक में एआईएमआईएम की सेंधमारी के बाद राजद में मंथन चल रहा है. एआईएमआईएम के पांच विधायकों को तोड़ कर इतराने वाला राजद को गोपालगंज में उसी एमआईएमआईएम ने बड़ी चोट दी है. उसके उम्मीदवार ने बारह हजार से ज्यादा वोट लेकर राजद के एमवाई समीकरण में बड़ी सेंधमारी की. मुसलमानों की नाराजगी राजद पर भारी पड़ रही है इसलिए उसने अब फिर से मुसलमानों को साधने के लिए नई चाल चली है. राजद प्रदेश अध्यक्ष पद पर पुराने समाजवादी नेता और पूर्व मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी की ताजपोशी करने की सोच रहा है. दरअसल राजद के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह पार्टी से नाराज चल रहे हैं और ऐसा माना जा रहा है कि अब उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष पर बने रहने से इनकार कर दिया है. महीनों से वे पार्टी का कामकाज छोड़ कर अपने घर पर आराम कर रहे हैं. इसे देखते हुए अब्दुल बारी सिद्दीकी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की तैयारी की जा रही हैं. हालांकि ऐसा कहा जा रहा है कि लालू यादव जगदानंद सिंह को मनाने में लगे हैं. सिंगापुर जाने से पहले लालू यादव दोनों नेताओं से मिले और लंबी बातचीत की. इसके बाद ही कयास लगाए जा रहे हैं कि लालू यादव जगदानंद सिंह को मनाने में कामयाब हो गए हैं. अगर ऐसा होता है तो फिर सिद्दीकी को कार्यकारी अध्यक्ष पद का झुनझुना थमाया जा सकता है. दो अक्तूबर से जगदानंद सिंह ने पार्टी कार्यालय से दूरी बना ली थी. विधानसभा की दो सीटों पर हुए उपचुनाव में भी वे सक्रिय नहीं रहे थे.

दिल्ली में हुए राजद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी जगदानंद शामिल नहीं हुए. पार्टी सूत्रों का कहना है कि उनका टिकट बना हुआ था पर वे नहीं गए. पुत्र सुधाकर सिंह के इस्तीफे के बाद उनकी नारजगी की बात सामने आई थी. राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के समय यह बात सामने आई थी कि उन्होंने राजद के प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है.

वैसे अब्दुल बारी सिद्दीकी की बात करें तो लालू यादव और तेजस्वी यादव ने उन्हें राज्यसभा या विधान परिषद भेजने लायक तक नहीं समझा था. राजद के अंदर चल रहे खेल पर कई सवाल उठ रहे हैं. सबसे बड़ा सवाल यह है कि अब्दुल बारी सिद्दीकी को ही प्रदेश अध्यक्ष क्यों बनाया ज रहा है. दिलचस्प यह है कि खुद सिद्दीकी खुद अध्यक्ष बनने में बहुत रूचि नहीं ले रहे हैं. माना जा रहा है कि गोपालगंज में मिली हार के बाद राजद ने सिद्दीकी को अध्यक्ष बनाने का फैसला किया. राजद के एमवाई समीकरण के एम यानी मुसलमानों की नाराजगी को ध्यान में रख कर ही राजद न सिद्दीकी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का फैसला लिया है. गोपालगंज उपचुनाव में मुसलमानों की राजद से नाराजगी खुल कर सामने आई. गोपालगंज में मुसलमानों के वोट में सेंध लगा और अच्छा खासा वोट एआईएमआईएम को मिला. एआईएमआईएम उम्मीदवार अब्दुल सलाम को बारह हजार से ज्यादा वोट मिले थे. मुसलमानों ने यह जानते हुए भी कि अब्दुल सलाम नहीं जीतेंगे लेकिन फिर भी उन्हें मुसलमानों का साथ मिला. इस सीट पर राजद करीब सत्रह सौ वोट से पिट गया. यानी अगर मुसलमानों का वोट नहीं बटता तो राजद आसानी से यह सीट निकाल लेता.

वैसे बिहार में मुसलमानों का एक तबका अब किसी मुसलमान को उप मुख्यमंत्री बनाने की भी मांग कर रहा है. उनका कहना है कि राजद एम वाई समीकरण वाली पार्टी है औऱ बिहार में मुसलमान वोटरों की संख्या यादवों से ज्यादा है तो फिर मुसलमानों के साथ भेदभाव क्यों किया जा रहा है. यादव कोटे से तेजस्वी मुख्यमंत्री के उम्मीदवार हैं और अभी उप मुख्यमंत्री हैं. फिर किसी मुसलमान को उप मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाता है राजद. एनडीए सरकार में भाजपा ने दो उप मुख्यमंत्री बनाया था. राजद एक मुसलमान को इस कुर्सी पर बिठाकर दो उप मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाता है.

हालांकि यह भी सच है कि लालू औऱ तेजस्वी ने सिद्दीकी की खूब अनदेखी है और अब उन्हें प्रदेश अध्यक्ष के पद का लालीपाप थमाने पर विचार कर रहे हैं. दरअसल इसी साल राज्यसभा और विधान परिषद के चुनाव हुए. राजद ने अपने कोटे से एक मुसलमान को राज्यसभा भेजा. अब्दुल बारी सिद्दीकी पार्टी के सबसे सीनियर मुस्लिम नेता थे. लालू-तेजस्वी ने राज्यसभा के समय सिद्दीकी से बात करना भी बंद कर दिया था. मुस्लिम कोटे से फैयाज आलम को राज्यसभा भेज दिया गया. फैयाज आलम उसी मिथिलांचल इलाके से आते हैं जहां के सिद्दीकी हैं. फैयाज का पार्टी से नाता बहुत पुराना नहीं है जबकि सिद्दीकी राजद के बनने से पहले से लालू यादव के साथ राजनीति करते रहे हैं. लेकिन चर्चा इस बात की है कि राज्यसभा चुनाव में फैयाज आलम ने बेतरह पैसा खर्च किया. राज्यसभा तो जाने दें अब्दुल बारी सिद्दीकी को विधान परिषद चुनाव में भी नहीं पूछा गया. पार्टी ने इस चुनाव में कारी सोहेब जैसे दोयम दर्जे के नेता को उम्मीदवार बनाया. कारी सोहेब को लेकर चर्चा आम है कि वह लालू यादव-तेजस्वी यादव के पांव तक छूता है.

अब्दुल बारी सिद्दीकी विधानसभा का पिछला चुनाव हार गए थे. उन्होंने पार्टी नेतृत्व को साफ बताया था कि कैसे दरभंगा के राजद नेताओं ने ही उन्हें हराया. हराने वालों में राजद के यादव नेताओं की बड़ी भूमिका रही थी. राजद नेताओं का ऑडियो क्लीप भी सामने आया था. हार का षडयंत्र रचने का आरोप जिस नेता पर लगा उसे सरकार में मंत्री बना कर पुरस्कृत कर दिया गया है. अब देखना यह है कि सिद्दीकी प्रदेश अध्यक्ष बन पाते हैं या नहीं या फिर लालू यादव जगदा बाबू पर ही भरोसा जताते हैं. गोपालगंज ने राजद के लिए खतरे की घंटी तो बजा ही दी है. गोपालगंज में मिली हार के बाद लालू यादव और उनके कुंबे की परेशानी बढ़ी भी है क्योंकि आमतौर पर बिहार के मुसलमानों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की छवि बेहतर है. भाजपा के साथ की वजह से भले मुसलमान उनसे छिटके रहते थे लेकिन नीतीश के कामकाज पर मुसलमान उंगली नहीं उठाता है. मुसलमान लालू से नीतीश को बेहतर मानता है क्योंकि नीतीश के कार्यकाल में मुसलमानों के लिए सरकार ने काम किया, सिर्फ वादों और दिलासों का झुनझुना नहीं थमाया है. एआईएमआईएम के बढ़ते प्रभाव से राजद चिंतित है. ऐसा होना स्वाभाविक भी है. मुसलमानों की सुध लेने की बात राजद कर रहा है तो इसके पीछे वोट बैंक छिटकने का खतरा है. यानी जब दिया रंज बुतों ने तो राजद को खुदा याद आरहा है.