रेगिस्तान के इस पौधे में थी सोने को पिघलाने की ताकत, अब गिने-चुने ही बचे, सुनार खुद भूल गए

in #bhopalgarh4 months ago

रेगिस्तान के इस पौधे में थी सोने को पिघलाने की ताकत, अब गिने-चुने ही बचे, सुनार खुद भूल गएविश्व जैव विविधता दिवस आज- अकेशिया जेकमाेंटाई 99 प्रतिशत जलता था, प्रदूषण रहित धोरों की थी निशानी, 100 साल पहले रिपोर्ट हुआ मेकरेंथा पौधा अब तक वैज्ञानिकों को नहीं मिलागजेंद्र सिंह दहिया
Rajasthan News : जैव विविधता के मामले में थार का रेगिस्तान विश्व के सबसे टॉप मरुस्थल में शुमार है, लेकिन अब यहां की जैव विविधता खतरे में है। यहां कई पादप और जंतु विलुप्ति की कगार पर हैं। विशेष पौधों और झाड़ियों की ऐसी प्रजातियां अस्तित्व से जूझ रही हैं जो धोरों के लिए पहचानी जाती थी। बॉटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया (बीएसआई) की रिपोर्ट के मुताबिक अकेशिया जेकमोंटाई (भू भवल्या) धोरे के टॉप पर मिलता है। इसकी विशेषता यह है कि यह जहां पनपता है वहां प्रदूषण बिल्कुल नहीं होता है, इसलिए सुनार इसे सोना पिघलाने के लिए उपयोग में लेते थे, क्योंकि यह 99 प्रतिशत जल जाता और धुंआ बिल्कुल नहीं देता। अब पौधा खत्म होने लगा तो सुनार भी इसको भूल गए।पौधे का लाल रंग यानी धोरे का शिखर बिन्दू
टेफरोसिया फेल्सीपेरम को रतिबियानी कहते हैं। यह लाल रंग की झाड़ी है जो धोरों के शिखर पर मिलती है। खत्म होते धोरों के साथ यह झाड़ी भी विलुप्त हो रही है।
फारेसटिया मेकेरंथा बाड़मेर के चट्टानी क्षेत्र में था। इसे करीब 100 पहले रिपोर्ट किया गया था, जिसे अब तक वापस नहीं खोजा जा सका।
पशुओं की चराई के कारण औषधीय पौधा गूगल भी अस्तित्व से जूझ रहा है। अब केवल ओरणों में बचा है।
फोग (केलिगोनम पॉलीगोनोइडस),सहजन जैसा दिखने वाला सरगोड़ा (मोरिंगा कॉनकेनसिंस) और सेवण घास भी बहुत कम बची है। सरगोड़ा में 38 प्रतिशत क्रूड ऑयल होता है। यह मूलत: कोंकण तट का पौधा है।
खेजड़ी भी कम हो गई है। रोहिड़ा अधिक कम हुआ है। रोहिड़े की कटाई पर प्रतिबंध होने की वजह से किसान अब इसे लगाते ही नहीं हैं।
हिमालय की मछलियां आई
इंदिरा गांधी नहर के साथ हिमालय रीजन की कई मछलियां अब थार में मिलने लगी हैं। मछली की महाशेर, गारा जैसी प्रजातियां आसानी से मिल जाती हैं, जबकि यहां गोडावण सहित कई पशु रेड डाटा बुक की सूची में हैं।
थार की जैव विविधता
3.85 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला है थार मरुस्थल
9 वां विश्व का सबसे बड़ा मरुस्थल है थार
683 पादपों (फ्लोरा) की प्रजातियां मिलती हैं
1195 जंतु (फोना) की प्रजातियां हैं
492 तरह के पक्षी हैं
60 प्रतिशत पौधे हरबेशियस यानी तना रहित हैं
16 प्रतिशत झाड़ी और 14 प्रतिशत पेड़ हैं
विश्व जैव विविधता दिवस आज
जैविक विविधता को बचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र की ओर से हर साल 22 मई को जैव विविधता दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1992 में हुई। इस साल की थीम ‘योजना का हिस्सा बनो’ रखी गई है।
इनका कहना है
भूमि उपयोग में बदलाव, चराई, सिंचाई, जलवायु परिवर्तन से थार की जैव विविधता बदल रही है।
डॉ. जेपी सिंह, पूर्व पारिस्थितिकी वैज्ञानिक, काजरी, जोधपुर
इंदिरा गांधी नहर आने से कई नए जीवों की प्रजातियां थार पहुंच गई, लेकिन यहां की मूल प्रजातियां संकट से जूझ रही हैं।
डॉ. इंदू शर्मा, प्रभारी, भारतीय प्राणी सर्वेक्षण, जोधपुर
थार में पेड़-पौधों, जंतुओं और मनुष्यों के बीच अंर्तसंबंध है। पारििस्थतिकी में बदलाव से सभी प्रभावित होते हैं। आईआईटी इस पर शोध कर रही है।
प्रो मिताली मुखर्जी, बायोसाइंस एवं बायोइंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी जोधपुर
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