एक रिक्शा चलाने वाला 3 दिन से रोज दान देने की इच्छा से जाता था
#मर्म #स्पर्शी....
शहर में मंदिर बनाने का काम जोर शोर से चल रहा था! लाखों की तादाद में लोग समिति को दान दे रहे थे जिससे निर्माण कार्य में कोई रुकावट ना आ सके!
दोस्तो एक रिक्शा चलाने वाला 3 दिन से रोज दान देने की इच्छा से जाता था! और सोचता कि मैं भी कुछ दान करूँ "
पर वहाँ लोगों को हजारों और लाखों की पर्ची कटाते देख उसे हिचक होती और वह लौट आता!
आज मंदिर के लिए दान देने का आखिरी दिन था
क्योंकि मंदिर तैयार हो चुका था कल मूर्तियों की स्थापना होनी थी! रामसेवक से रहा नहीं गया उसने अपनी जेब से 50 रूपये निकाले और बोला..
भैया यह पैसे ईश्वर की सेवा में लग जाते तो..?
मंदिर समिति के कर्मचारी ने 50 रूपये देखकर मुंह बिचकाते हुए कहा - 50 रूपये मे क्या होगा..?
रामसेवक के बार बार कहने पर उसने वो 50 रूपये अपने कुर्ते की जेब मे डाल लिये और इतने छोटे से दान के लिये पर्ची काटने से मना कर दिया!
रामसेवक संतोष की सांस लेते हुए घर चला गया..
दूसरे दिन मंदिर में काफी भीड़ थी...ज्यादा दान करने वालों के नाम अलग से लिखे हुए थे! जिन्हें मूर्ति स्थापित होने के बाद सम्मानित किया जाना था! मंत्रोच्चार के साथ मुर्तिया लाल कपड़ों से ढकी मंदिर मे लाई गईं!
मूर्ति का मुकुट इतना ढीला था कि मूर्ति का चेहरा पूरा मुकुट से ढका हुआ था! लोग परेशान थे कि नया मुकुट बनाने में तो समय लगेगा और बिना मुकुट की मूर्ति स्थापित नहीं हो सकती!
तभी कारीगर को सलाह लेने के लिए बुलाया गया
कारीगर बोला कि मूर्ति में जरा सी टेक लगते ही मुकुट अपनी जगह स्थिर हो जाएगा! और मूर्ति का चेहरा सही से दिखने लगेगा...
और उसने टेक की कीमत 50 रूपये बताई...
मंदिर समिति के कर्मचारी ने अपने कुर्ते की जेब से रामसेवक द्वारा दान किए गए 50 रूपये निकालकर कारीगर को दे दिए! और कुछ देर में ही टेक लगते ही मुकुट स्थिर हो गया!
ऐसा लग रहा था मानो भगवान ने रामसेवक का दान स्वीकार करने के बाद ही सभी भक्तजनों को अपने मुखमंडल के दर्शन कराऐ!
दोस्तो समर्पण के भाव से किया गया छोटा सा दान दिखावटी करोड़ों के दान से कहीं श्रेष्ठ है!
बोलिये - बजरंगबली महाराज की जय 🚩
जय जय श्री राम 🚩🚩