उसको सोचकर भी दिल दहल जाता है...

in #bharat2 years ago (edited)

1962 में जिस तरह चीन ने भारत की पीठ में छुरा घोंपा,
उसका हम आज तक जवाब नहीं दे पाए हैं...
आप कभी उत्तराखंड के रानीखेत जाइए..
वहां कुमाऊं रेजिमेंट का म्यूजियम देखिए...
आपके रौंगटे खड़े हो जाएंगे...
मेजर शैतान सिंह किस तरह अपने 114 जवानों के साथ रिजांग ला पर 2 हजार से ज्यादा चीनी सैनिकों से लड़े...,
किस तरह नंवबर-दिसंबर की हाड़ गला देने वाली ठंड में भारतीय सैनिकों ने कामचलाऊ जूते और खस्ताहाल जैकेट पहनकर चीनी सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए,
उसको सोचकर भी दिल दहल जाता है...
ये वही मेजर शैतान सिंह थे...,
जिन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू के रिश्तेदार और सेना की उत्तर पूर्वी ब्रिगेड के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बी एम कौल का लड़ाई से पीछे हटने का आदेश ठुकरा दिया था, अंतिम दम तक लड़े और जब गोलियों से छलनी हो गए तब उनके दो साथी जवानों ने कहा सर आपको मेडकल यूनिट तक भेज देते हैं.
मेजर शैतान सिंह ने कहा- मुझे और मेरी मशीनगन को यहीं छोड़ दो...,
हाथ कट चुके थे, पेट औऱ जांघ में गोली लगी थी, मेजर ने पैर से मशीनगन का ट्रिगर दबाया और दुश्मन का अंतिम साँस तक सामना किया, लड़ते-लड़ते प्राण न्योछावर कर दिए लेकिन उस पोस्ट पर दिन भर चीनी सेना को इंच भर आगे नहीं बढ़ने दिया...
इस अदम्य साहस और वीरता के लिए मेजर शैतान सिंह को परमवीर चक्र मिला.
ये वही मेजर शैतान सिंह थे...,
जिनको लेकर कवि प्रदीप ने अमर गीत लिखा और लता मंगेशकर ने गाया...
"थी खून से लथपथ काया फिर भी बंदूक उठा ली... दस-दस को एक ने मारा, फिर अपनी जान गंवा दी’
ऐसे वीरो की वजह से हम लोग अपने घरो में सुरक्षित बेठे है
मेजर शैतान सिंह को शत शत नमन FB_IMG_1651928847915.jpg