विकसित भारत' का संकल्प...'भ्रष्टाचार-परिवारवाद' पर वार, पढ़ें 76वें स्वतंत्रता दिवस पर PM मोदी का भाषण

in #azadi2 years ago

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा- मैं विश्‍वभर में फैले हुए भारत प्रेमियों को, भारतीयों को आजादी के इस अमृत महोत्‍सव की बहुत-बहुत बधाई देता हूं. आज का यह दिवस ऐतिहासिक दिवस है. एक पुण्‍य पड़ाव, एक नई राह, एक नये संकल्‍प और नये सामर्थ्‍य के साथ कदम बढ़ाने का यह शुभ अवसर है.
आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर देशवासियों को अनेक-अनेक शुभकामनाएं. बहुत-बहुत बधाई. न सिर्फ हिन्‍दुस्‍तान का हर कोना, लेकिन दुनिया के हर कोने में आज किसी न किसी रूप में भारतीयों के द्वारा या भारत के प्रति अपार प्रेम रखने वालों के द्वारा विश्‍व के हर कोने में यह हमारा तिरंगा आन-बान-शान के साथ लहरा रहा है. मैं विश्‍वभर में फैले हुए भारत प्रेमियों को, भारतीयों को आजादी के इस अमृत महोत्‍सव की बहुत-बहुत बधाई देता हूं.आज का यह दिवस ऐतिहासिक दिवस है. एक पुण्‍य पड़ाव, एक नई राह, एक नये संकल्‍प और नये सामर्थ्‍य के साथ कदम बढ़ाने का यह शुभ अवसर है. आजादी के जंग में गुलामी का पूरा कालंखड संघर्ष में बीता है. हिन्‍दुस्‍तान का कोई कोना ऐसा नहीं था, कोई काल ऐसा नहीं था, जब देशवासियों ने सैकड़ों सालों तक गुलामी के खिलाफ जंग न किया हो. जीवन न खपाया हो, यातनाएं न झेली हो, आहूति न दी हो. आज हम सब देशवासियों के लिए ऐसे हर महापुरूष को, हर त्‍यागी को, हर बलिदानी को नमन करने का अवसर है. उनका ऋण स्‍वीकार करने का अवसर है और उनका स्‍मरण करते हुए उनके सपनों को जल्‍द से जल्‍द पूरा करने का संकल्‍प लेने का भी अवसर है. हम सभी देशवासी कृतज्ञ है, पूज्‍य बापू के, नेता जी सुभाष चंद्र बोस के, बाबा साहेब अम्‍बेडकर के, वीर सावरकर के, जिन्‍होंने कर्तव्‍य पथ पर जीवन को खपा दिया. कर्तव्‍य पथ ही उनका जीवन पथ रहा. यह देश कृतज्ञ है, मंगल पांडे, तात्‍या टोपे, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू, चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खां, राम प्रसाद बिस्मिल अनगिनत ऐसे हमारे क्रांति वीरों ने अंग्रेजों की हुकुमत की नींव हिला दी थी. यह राष्‍ट्र कृतज्ञ है, उन वीरांगनाओं के लिए, रानी लक्ष्‍मीबाई हो, झलकारी बाई, दुर्गा भाभी, रानी गाइदिन्ल्यू, रानी चेनम्‍मा, बेगम हजरत महल, वेलु नाच्चियार, भारत की नारी शक्ति क्‍या होती है.भारत की नारी शक्ति का संकल्‍प क्‍या होता है. भारत की नारी त्‍याग और बलिदान की क्‍या पराकाष्‍ठा कर सकती है, वैसी अनगिनत वीरांगनाओं का स्‍मरण करते हुए हर हिन्‍दुस्‍तानी गर्व से भर जाता है. आजादी का जंग भी लड़ने वाले और आजादी के बाद देश बनाने वाले डॉ. राजेन्‍द्र प्रसाद जी हों, नेहरू जी हों, सरदार वल्‍लभ भाई पटेल, श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी, लाल बहादुर शास्‍त्री, दीनदयाल उपाध्‍याय, जय प्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, आचार्य विनाबाभावे, नाना जी देशमुख, सुब्रह्मण्‍यमभारती, अनगिनत ऐसे महापुरुषों को आज नमन करने का अवसर है.
हम आजादी की जंग की चर्चा करते हैं तो हम उन जंगलों में जीने वाले हमारे आदिवासी समाज का भी गौरव करना हम नहीं भूल सकते हैं. भगवान बिरसा मुंडा, सिद्धू कान्हू, अल्लूरी सीताराम राजू, गोविंद गुरू, अनगिनत नाम हैं जिन्‍होंने आजादी के आंदोलन की आवाज बनकर के दूर-सदूर जंगलों में भी…. मेरे आदिवासी भाई-बहनों, मेरी माताओं, मेरे युवकों में मातृभूमि के लिए जीने-मरने के लिए प्रेरणा जगाई. ये देश का सौभाग्‍य रहा है कि आजादी की जंग के कई रूप रहे हैं और उसमें एक रूप वो भी था जिसमें नारायण गुरू हो, स्‍वामी विवेकानंद हो, महर्षि अरविंदो हो, गुरुदेव रविन्‍द्र नाथ टैगोर हो, ऐसे अनेक महापुरुष हिन्‍दुस्‍तान के हर कोने में, हर गांव में भारत की चेतना को जगाते रहे. भारत को चेतनमन बनाते रहे.अमृत महोत्‍सव के दौरान देश ने…. पूरे एक साल से हम देख रहे हैं. 2021 में दांढी यात्रा से प्रारंभ हुआ. स्‍मृति दिवस को संवरते हुए हिन्‍दुस्‍तान के हर जिले में, हर कोने में देशवासियों ने आजादी के अमृत महोत्‍सव के लक्ष्‍यावृद्धि कार्यक्रम किए. शायद इतिहास में इतना विशाल, व्‍यापक, लंबा एक ही मकसद का उत्‍सव मनाया गया हो वो शायद ये पहली घटना हुई है और हिन्‍दुस्‍तान के हर कोने में उन सभी महापुरुषों को याद करने का प्रयास किया गया जिनको किसी न किसी कारणवंश इतिहास में जगह ने मिली या उनको भूला दिया गया था. आज देश ने खोज-खोज करके हर कोने में ऐसे वीरों को, महापुरुषों को, त्‍यागियों को, बलिदानियों को सत्‍या‍वीरों को याद किया, नमन किया. अमृत महोत्‍सव के दरम्यिान इन सभी महापुरुषों को नमन करने अवसर रहा. कल 14 अगस्‍त को भारत ने विभाजन विभिषिका स्‍मृति दिवस भी बड़े भारी मन से हृदय के गहरे घावों को याद करते हुए उन कोटि-कोटि जनों ने बहुत कुछ सहन किया था, तिरंगे की शान के लिए सहन किया था. मातृभूमि की मिट्टी से मोहब्‍बत के कारण सहन किया था और धैर्य नहीं खोया था. भारत के प्रति प्रेम ने नई जिंदगी की शुरूआत करने का उनका संकल्‍प नमन करने योग्‍य है, प्रेरणा पाने योग्‍य है.आज जब हम आजादी का अमृत महोत्‍सव मना रहे हैं तो पिछले 75 साल में देश के लिए जीने मरने वाले, देश की सुरक्षा करने वाले, देश के संकल्‍पों को पूरा करने वाले; चाहे सेना के जवान हों, पुलिस के कर्मी हों, शासन में बैठे हुए ब्‍यूरोक्रेट्स हों, जनप्रतिनिधि हों, स्‍थानीय स्‍वराज की संस्‍थाओं के शासक-प्रशासक रहे हों, राज्‍यों के शासक-प्रशासक रहे हों, केंद्र के शासक-प्रशासक रहे हों; 75 साल में इन सबके योगदान को भी आज स्‍मरण करने का अवसर है और देश के कोटि-कोटि नागरिकों को भी, जिन्‍होंने 75 साल में अनेक प्रकार की कठिनाइयों के बीच भी देश को आगे बढ़ाने के लिए अपने से जो हो सका वो करने का प्रयास किया है.मेरे प्‍यारे देशवासियों,

75 साल की हमारी ये यात्रा अनेक उतार-चढ़ाव से भरी हुई है. सुख-दु:ख की छाया मंडराती रही है और इसके बीच भी हमारे देशवासियों ने उपलब्धियां की हैं, पुरुषार्थ किया है, हार नहीं मानी है. संकल्‍पों को ओझल नहीं होने दिया है. और इसलिए, और ये भी सच्‍चाई है कि सैंकड़ों सालों के गुलामी के कालखंड ने भारत के मन को, भारत के मानवी की भावनाओं को गहरे घाव दिए थे, गहरी चोटें पहुंचाई थीं, लेकिन उसके भीतर एक जिद भी थी, एक जिजीविषा भी थी, एक जुनून भी था, एक जोश भी था. और उसके कारण अभावों के बीच में भी, उपहास के बीच में भी और जब आजादी की जंग अंतिम चरण में था तो देश को डराने के लिए, निराश करने के लिए, हताश करने के लिए सारे उपाय किए गए थे. अगर आजादी आई अंग्रेज चले जाएंगे तो देश टूट जाएगा, बिखर जाएंगे, लोग अंदर-अंदर लड़ करके मर जाएंगे, कुछ नहीं बचेगा, अंधकार युग में भारत चला जाएगा, न जाने क्‍या—क्‍या आशंकाएं व्‍यक्‍त की गई थीं. लेकिन उनको पता नहीं था ये हिन्‍दुस्‍तान की मिट्टी है, इस मिट्टी में वो सामर्थ्‍य है जो शासकों से भी परे सामर्थ्‍य का एक अंतरप्रभाव लेकर जीता रहा है, सदियों तक जीता रहा है और उसी का परिणाम है, हमने क्‍या कुछ नहीं झेला है, कभी अन्‍न का संकट झेला, कभी युद्ध के शिकार हो गए.आंतकवाद ने डगर-डगर चुनौतियां पैदा कीं, निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया गया. छद्म युद्ध चलते रहे, प्राकृतिक आपदाएं आती रही, सफलता विफलता, आशा निराशा, न जाने कितने पड़ाव आए हैं. लेकिन इन पड़ाव के बीच भी भारत आगे बढ़ता रहा है. भारत की विविधता जो औरों को भारत के लिए बोझ लगती थी. वो भारत की विविधता ही भारत की अनमोल शक्ति है. शक्ति का एक अटूट प्रमाण है. दुनिया को पता नहीं था कि भारत के पास एक inherent सामर्थ्य है, एक संस्कार सरिता है, एक मन मस्तिष्क् का, विचारों का बंधन है. और वो है भारत लोकतंत्र की जननी है, Mother of Democracy है और जिनके जहन में लोकतंत्र होता है वे जब संकल्प कर के चल पड़ते हैं, वो सामर्थ्य दुनिया की बड़ी-बड़ी सल्तनतों के लिए भी संकट का काल लेकर के आती है. ये Mother of Democracy, ये लोकतंत्र की जननी, हमारे भारत ने सिद्ध कर दिया कि हमारे पास एक अनमोल सामर्थ्य है.मेरे प्यारे देशवासियों,

हिमालय की कन्दराएँ हो, हर कोने में महात्मा गांधी का जो सपना था आखिरी इंसान की चिंता करने का, महात्मा गांधी जी की जो आकांक्षा थी अंतिम छोर पर बैठे हुए व्यक्ति को समर्थ बनाने की, मैंने अपने आप को उसके लिए समर्पित किया है, और उन 8 साल का नतीजा और आजादी के इतने दशकों का अनुभव आज 75 साल के बाद जब अमृत काल की ओर कदम रख रहे हैं, अमृत काल की ये पहली प्रभात है तब मैं एक एैसे सामर्थ्य को देख रहा हूं. और जिससे में गर्व से भर जाता हूं.देशवासियों,

मैं आज देश का सबसे बड़ा सौभाग्य ये देख रहा हूं. कि भारत का जनमन आकांक्षित जनमन है. Aspirational Society किसी भी देश की बहुत बड़ी अमानत होती है. और हमें गर्व है कि आज हिन्दुस्तान के हर कोने में, हर समाज के हर वर्ग में, हर तबके में, आकांक्षाएं उफान पर हैं. देश का हर नागरिक चीजें बदलना चाहता है, बदलते देखना चाहता है, लेकिन इंतजार करने को तैयार नहीं है, अपनी आंखों के सामने देखना चाहता है, कर्तव्‍य से जुड़ कर करना चाहता है. वो गति चाहता है, प्रगति चाहता है. 75 साल में संजोय हुए सारे सपने अपनी ही आंखों के सामने पूरा करने के लिए वो लालयित है, उत्‍साहित है, उतावला भी है.कुछ लोगों को इसके कारण संकट हो सकता है. क्‍योंकि जब aspirational society होती है तब सरकारों को भी तलवार की धार पर चलना पड़ता है. सरकारों को भी समय के साथ दौड़ना पड़ता है और मुझे विश्‍वास है चाहे केन्‍द्र सरकार हो, राज्‍य सरकार हो, स्थानीय स्‍वराज्‍य की संस्‍थाएं हों, किसी भी प्रकार की शासन व्‍यवस्‍था क्‍यों न हो, हर किसी को इस aspirational society को address करना पड़ेगा, उनकी आकांक्षाओं के लिए हम ज्‍यादा इंतजार नहीं कर सकते. हमारे इस aspirational society ने लंबे अरसे तक इंतजार किया है. लेकिन अब वो अपनी आने वाली पीढ़ी को इंतजार में जीने के लिए मजबूर करने को तैयार नहीं हैं और इसलिए ये अमृत काल का पहला प्रभात हमें उस aspirational society के आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बहुत बड़ा सुनहरा अवसर लेकर के आई है.मेरे प्‍यारे देशवासियों

हमने पिछले दिनों देखा है एक और ताकत का हमने अनुभव किया है और वो है भारत में सामूहिक चेतना पुनर्जागरण हुआ है. एक सामूहिक चेतना का पुनर्जागरण आजादी के इतने संघर्ष में जो अमृत था, वो अब संजोया जा रहा है, संकलित हो रहा है. संकल्‍प में परिवर्तित हो रहा है, पुरुषार्थ की पराकाष्ठा जुड़ रही है और सिद्धि का मार्ग नजर आ रहा है. ये चेतना, मैं समझता हूं कि चेतना का जागरण ये पुनर्जागरण ये हमारी सबसे बड़ी अमानत है. और ये पुनर्जागरण देखिए 10 अगस्‍त तक लोगों को पता तक नहीं होगा शायद कि देश के भीतर कौन सी ताकत है. लेकिन पिछले तीन दिन से जिस प्रकार से तिरंगे झंडे को लेकर के तिरंगा की यात्रा को लेकर करके देश चल पड़ा है. बड़े-बड़े social science के experts वे भी शायद कल्‍पना नहीं कर सकते कि मेरे भीतर के अंदर कि मेरे देश के भीतर कितना बड़ा सामर्थ है, एक तिरंगे झंडे ने दिखा दिया है. ये पुनर्चेतना, पुनर्जागरण का पल है. ये लोग समझ नहीं पाएं हैं.जब देश जनता कर्फ्यू के लिए हिन्‍दुस्‍तान का हर कोना निकल पड़ता है, तब उस चेतना की अनुभूति होती है. जब देश ता‍ली, थाली बजाकर के corona warriors के साथ कंधे से कंधा मिलाकर के खड़ा को जाता है, तब चेतना की अनुभूति होती है. जब दीया जलाकर के corona warrior को शुभकामनाएं देने के लिए देश निकल पड़ता है, तब उस चेतना की अनुभूति होती है. दुनिया कोरोना के काल खंड में वैक्सिन लेना या न लेना, वैक्सिन काम की है या नहीं है, उस उलझन में जी रही थी. उस समय मेरे देश के गांव गरीब भी दो सौ करोड़ डोज दुनिया को चौंका देने वाला काम करके दिखा देते हैं. ये ही चेतना है, ये ही सामर्थ्य है इस सामर्थ्य ने आज देश को नई ताकत दी है.मेरे प्‍यारे भाइयों-बहनों

इस एक महत्‍वपूर्ण सामर्थ्य को मैं देख रहा हूं जैसे aspirational society, जैसे पुनर्जागरण वैसे ही आजादी के इतने दशकों के बाद पूरे विश्‍व का भारत की तरफ देखने का नजरिया बदल चुका है. विश्‍व भारत की तरफ गर्व से देख रहा है, अपेक्षा से देख रहा है. समस्‍याओं का समाधान भारत की धरती पर दुनिया खोजने लगी है दोस्‍तों. विश्‍व का यह बदलाव, विश्‍व की सोच में यह परिवर्तन 75 साल की हमारी अनुभव यात्रा का परिणाम है.हम जिस प्रकार से संकल्‍प को लेकर चल पड़े है दुनिया इसे देख रही है, और आखिरकार विश्‍व भी उम्‍मीदें लेकर जी रहा है. उम्‍मीदें पूरी करने का सामर्थ्‍य कहां पड़ा है वो उसे दिखने लगा है. मैं इसे स्‍त्री शक्ति के रूप में देखता हूं. तीन सामर्थ्‍य के रूप में देखता हूं, और यह त्रि-शक्ति है aspiration की, पुनर्जागणरण की और विश्‍व के उम्‍मीदों की और इसे पूरा करने के लिए हम जानते हैं दोस्‍तों आज दुनिया में एक विश्‍वास जगने में मेरे देशवासियों की बहुत बड़ी भूमिका है. 130 करोड़ देशवासियों ने कई दशकों के अनुभव के बाद स्थिर सरकार का महत्‍व क्‍या होता है, राजनीतिक स्थिरता का महत्‍व क्‍या होता है, political stability दुनिया में किस प्रकार की ताकत दिखा सकती है.नीतियों में कैसा सामर्थ्‍य होता है, उन नीतियों पर विश्‍व का कैसे भरोसा बनता है. यह भारत ने दिखाया है और दुनिया भी इसे समझ रही है. और अब जब राजनीतिक स्थिरता हो, नीतियों में गतिशीलता हो, निर्णयों में तेजी हो, सर्वव्‍यापकता हो, सर्वसमाजविश्‍वस्‍ता हो, तो विकास के लिए हर कोई भागीदार बनता है. हमने सबका साथ, सबका विकास का मंत्र लेकर हम चलें थे, लेकिन देखते ही देखते देशवासियों ने सब‍का विश्‍वास और सबके प्रयास से उसमें और रंग भर दिए हैं. और इसलिए हमने देखा है हमारी सामूहिक शक्ति को, हमारे सामूहिक सामर्थ्‍य को हमने देखा है. आजादी का अमृत महोत्‍सव जिस प्रकार से मनाया गया, जिस प्रकार से आज हर जिले में 75 अमृत सरोवर बनाने का अभियान चल रहा है, गांव-गांव के लोग जुड़ रहे हैं, कार्य सेवा कर रहे हैं. अपने प्रयत्‍नों से अपने गांव में जल संरक्षण के लिए बड़ा अभियान चला रहे हैं. और इसलिए भाईयों-बहनों, चाहे स्‍वच्‍छता का अभियान हो, चाहे गरीबों के कल्‍याण का काम हो, देश आज पूरी शक्ति से आगे बढ़ रहा है.लेकिन भाईयों-बहनों हम लोग आजादी के अमृतकाल में हमारी 75 साल की यात्रा को उसका गौरवगान ही करते रहेंगे, अपनी ही पीठ थपथपाते रहेंगे, तो हमारे सपने कहीं दूर चले जाएंगे. और इसलिए 75 साल का कालखंड कितना ही शानदार रहा हो, कितने ही संकटों वाला रहा हो, कितने ही चुनौतियों वाला रहा हो, कितने ही सपने अधूरे दिखते हो उसके बावजूद भी आज जब हम अमृतकाल में प्रवेश कर रहे हैं अगले 25 वर्ष हमारे देश के लिए अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है और इसलिए जब मैं आज मेरे सामने लाल किले पर से 130 करोड़ देशवासियों के सामर्थ्‍य का स्‍मरण करता हूं, उनके सपनों को देखता हूं, उनके संकल्‍प की अनुभूति करता हूं तो साथियों मुझे लगता है आने वाले 25 साल के लिए हमें उन पंचप्रण पर अपनी शक्ति को केंद्रित करनी होगा. अपने संकल्‍पों को केंद्रित करना होगा. अपने सामर्थ्‍य को केंद्रित करना होगा. और हमें उन पंचप्रण को लेकर के, 2047 जब आजादी के 100 साल होंगे आजादी के दिवानों के सारे सपने पूरे करने का जिम्‍मा उठा करके चलना होगा.जब मैं पंचप्रण की बात करता हूं तो पहला प्रण अब देश बड़े संकल्‍प लेकर ही चलेगा. बहुत बड़े संकल्‍प लेकर के चलना होगा. और वो बड़ा संकल्‍प है विकसित भारत, अब उससे कुछ कम नहीं होना चाहिए. बड़ा संकल्‍प- दूसरा प्रण है किसी भी कोने में हमारे मन के भीतर, हमारी आदतों के भीतर गुलामी का एक भी अंश अगर अभी भी कोई है तो उसको किसी भी हालत में बचने नहीं देना है. अब शत-प्रतिशत, शत-प्रतिशत सैंकड़ों साल की गुलामी ने जहां हमें जकड़ कर रखा है, हमें हमारे मनोभाव को बांध करके रखा हुआ है, हमारी सोच में विकृतियां पैदा करके रखी हैं. हमें गुलामी की छोटी से छोटी चीज भी कहीं नजर आती है, हमारे भीतर नजर आती है, हमारे आस-पास नजर आती है हमें उससे मुक्ति पानी ही होगी. ये हमारी दूसरी प्रण शक्ति है. तीसरी प्रण शक्ति, हमें हमारी विरासत पर गर्व होना चाहिए, हमारी विरासत के प्रति क्‍योंकि यही विरासत है जिसने कभी भारत को स्‍वर्णिम काल दिया था. और यही विरासत है जो समयानुकूल परिवर्तन करने आदत रखती है. यही विरासत है जो काल-बाह्य छोड़ती रही है. नित्‍य नूतन स्‍वीकारती रही है. और इसलिए इस विरासत के प्रति हमें गर्व होना चाहिए. चौथा प्रण वो भी उतना ही महत्‍वपूर्ण है और वो है एकता और एकजुटता. 130 करोड़ देश‍वासियों में एकता, न कोई अपना न कोई पराया, एकता की ताकत, ‘एक भारत श्रेष्‍ठ भारत’ के सपनों के लिए हमारा चौथा प्रण है. और पांचवां प्रण, पांचवां प्रण है नागरिकों का कर्तव्‍य, नागरिकों का कर्तव्‍य, जिसमें प्रधानमंत्री भी बाहर नहीं होता, मुख्‍यमंत्री भी बाहर नहीं होता वो भी नागरिक है. नागरिकों का कर्तव्‍य. ये हमारे आने वाले 25 साल के सपनों को पूरा करने के लिए एक बहुत बड़ी प्रण शक्ति है.मैं देशवासियों से आग्रह करते हुए नई संभावनाओं को संजोते हुए, नए संकल्‍पों को पार करते हुए आगे बढ़ने का विश्‍वास लेकर आज अमृतकाल का आरंभ करते हैं. आजादी का अमृत महोत्‍सव, अब अमृतकाल की दिशा में पलट चुका है, आगे बढ़ चुका है, तब इस अमृतकाल में सबका प्रयास अनिवार्य है. सबका प्रयास ये परिणाम लाने वाला है. टीम इंडिया की भावना ही देश को आगे बढ़ाने वाली है. 130 करोड़ देश‍वासियों की ये टीम इंडिया एक टीम के रूप में आगे बढ़कर के सारे सपनों को साकार करेगी. इसी पूरे विश्‍वास के सा‍थ मेरे साथ बोलिये जय हिन्‍द.

जय हिन्‍द.

जय हिन्‍द.

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय

वंदे मातरम,

वंदे मातरम,

वंदे मातरम,

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!
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