कृष्णा सोबती का लेखन महाकाव्यात्मक विन्यास की हैं मिसाल: सैयद मोहम्मद अशरफ

in #amu6 months ago

Prof M Ashiq Ali addressing the programme at during the programme on Krishna Sobti at dept of Hindi.JPG
अलीगढ़: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कला संकाय सभागार में हिन्दी विभाग द्वारा दो दिवसीय ‘कृष्णा सोबती' संगोष्ठी का आयोजन किया गया।दो दिवसीय ‘कृष्णा सोबती के आयोजन में उर्दू के मशहूर कथाकार सैयद मोहम्मद अशरफ ने कहा कि कृष्णा सोबती का लेखन महाकाव्यात्मक विन्यास की मिसाल है। वह लेखिका के बजाय लेखक कहना पसन्द करती थीं।

‘कृष्णा सोबती की सर्जनात्मकता के विविध आयाम’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में उद्घाटन वक्तव्य देते हुए बादे सबा का इंतजार सा कुछ कृति के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित और पूर्व आयकर आयुक्त सैयद मोहम्मद अशरफ ने कृष्णा सोबती के बारे में विस्तार से व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए कहा कि वह जब जब कृष्णा सोबती को पढ़ते हें तो उन्हें उर्दू की कथाकार वाजिदा असद कुर्रतुल ऐन हैदर इस्मत चुगताई की याद आती है। उन्होंने अपना एक व्यक्तिगत अनुभव बताते हुए कहा कि उनकी एक कहानी का शीर्षक है ‘डार से बिछुड़ा’ जबकि कृष्णा सोबती के एक उपन्यास का शीर्षक है ‘डार से बिछुड़ी’ जिसके बारे में उनके साथियों ने कहा कि कृष्णा सोबती इस वजह से बहुत नाराज है और वह उनसे मिलना चाहती हैं। बहरहाल वह कृष्णा सोबती से मिले और बहुत अच्छा अनुभव रहा।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के हिन्दी विभाग के पूर्व प्रोफेसर और अधिष्ठाता प्रो. कुमार पंकज ने कहा कि कृष्णा सोबती के साहित्य का पुर्नः पाठ करना चाहिये। उन्होंने कहा कि कृष्णा सोबती पर लिखना बहत चुनौतीपूर्ण है। उन्होंने कहा कि साब्दिक पैतरों से लोहा लेना बहुत मुश्किल था, उनको दुशमन के बगैर जीने का आदत नहीं थीं।

उद्घाटन सत्र में अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो. आरिफ नजीर ने कहा कि कृष्णा सोबती का सांस्कृतिक परिवेश बहुत विस्तृत है, जिन्दी नामा में गुरू गोविन्द सिंह की पंक्ति को उद्धृत करते हुए उन्होंने कृष्णा सोबती के साहित्य पर प्रकाश डाला। उद्घा सत्र के शुरू में अतिथियों का स्वागत हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. आशिक अली ने किया। इस सत्र में हिन्दी विभाग के दो अध्यापकों डा. गुलाम फरीद साबरी और डा. नीलोफर उस्मानी की पुस्तक और कृष्णा सोबती पर केन्द्रित हिन्दी विभाग की पत्रिका अभिनव भारती के नये अंक का विमोचन हुआ। जबकि इस संगोष्ठी की संयोजिका प्रो. तसनीम सुहैल ने इस संगोष्ठी की रूपरेखा पर विस्तार रूप से प्रकाश डाला। इस सत्र का संचालन हिन्दी विभाग के प्रो. शंभुनाथ तिवारी ने किया और धन्यवाद ज्ञापन प्रो. इफ्फत असगर ने किया।

पहले अकादमिक सत्र में प्रो. मैराज अहमद ने विभाजन के संदर्भ में कृष्णा सोबती के साहित्य का मूल्यांकन प्रस्तुत किया और उनके उपन्यास के साथ-साथ उनकी कहानियों में आये लोक जीवन के सम्बन्ध में विश्लेषण किया। जबकि डा. पंकज पराशर ने जिन्दगी नामा के साथ-साथ उनके पूरे रचनात्मक अवधान पर विस्तार से अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि कृष्णा सोबती की मानसिक बनावट जिस तरह की थी उसमें किसी तरह की साम्प्रदायिकता का संकीर्णता की कोई जगह नहीं। इस सत्र में वीमेन्स कालिज की डा.. शगुफ्ता नियाज़ और नाजिश बेगम ने भी अपने पेपर प्रस्तुत किया। जबकि हिन्दी विभाग से डा. सना फातिमा ने अपना पत्र प्रस्तुत किया।

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सर जी आपकी कल तक की सभी लाइक की 2000 कॉइन से और आपके हाथ ठहर गए मेरी तीन खबर पर, कुछ होने वाला यहां है ऐसा कुछ लगता नही