आगरा: देशभक्त मुस्लिम युवा ने दी अनोखी बकरा की कुर्बानी, बकरे की केक काटकर दिया संदेश

in #agra2 years ago

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अपने अंदर छिपी हुई बुराइयों को त्याग कर भी दी जा सकती है कुर्बानी - शेरवानी

बकरी के चित्र वाला केक काटकर की शेरवानी ने अनोखी कुर्बानी

आगरा। देश में पशु प्रेमियों की कोई कमी नहीं है। लेकिन इस जैसे बड़े त्यौहार पर बकरे की कुर्बानी ना करके एक मिसाल देना यह निश्चित रूप से एक बड़ी बात है। आगरा के गुल चमन शेरवानी एक ऐसे मुस्लिम है जो पिछले कुछ वर्षों से मुस्लिम समाज में राष्ट्रीय भावना को जगाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने इस ईद के त्यौहार पर जीव हत्या को रोकने का एक अनुकरणीय उदाहरण पेश किया है।। फूल चमन शेरवानी के परिवार ने बकरे की आकृति का केक बनवाकर उसे काटा और अपना ईद उल जुहा का त्योहार मनाया।।

राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम तथा तिरंगा प्रेम के चलते सुर्खियों में आए शाहगंज के आजम पाड़ा निवासी मुस्लिम देशभक्त युवक नवाब गुल चमन शेरवानी के राष्ट्रवादी मुस्लिम तिरंगा परिवार ने बकरे की चित्र वाला केक काटकर अनोखी कुर्बानी करते हुए जीव हत्या रोके जाने का संदेश दिया ।।

विगत दिनों शेरवानी के तिरंगा परिवार ने छोटा सा बकरी का बच्चा पाला था जिससे शेरवानी परिवार को काफी लगाव हो गया और बकरा ईद आते-आते शेरवानी परिवार का कुर्बानी करने का इरादा बदल गया।। शेरवानी ने कुर्बानी करने का इरादा बनाया था इसलिए मुस्लिम होने के नाते कुर्बानी करना भी बेहद जरूरी था और बकरी की जान बचाना भी इसलिए उन्होंने बीच का रास्ता निकालते हुए बकरे के चित्र वाला केक काटकर ईद मनाई।। पिछले 5 बरस से मुस्लिम तिरंगा परिवार बकरे के चित्र वाला केक काटकर ईद मनाता है ।।
परिवार के मुखिया नवाब गुल चमन शेरवानी ने बताया कि बकरा ईद का त्यौहार गरीब लोगों की मदद करने के उद्देश्य से मनाया जाता है जिससे कि गरीब लोग अच्छा खाना खा सकें जिनकी पहुंच से बकरे का खाना काफी दूर है लेकिन लोग सही तरीके से कुर्बानी ना करते हुए अपने अमीर रिश्तेदारों और दोस्तों को बकरे का गोश्त पहुंचाते हैं बकरा ईद पर भी तमाम गरीब लोग बकरे के गोश्त को तरसते हैं।। इस्लाम मजहब में भी कुर्बानी से पहले नमाज खैरात और जकात पूरी करनी होती है लेकिन लोग नमाज खैरात और जकात पर ध्यान ना देते हुए कुर्बानी करते हैं जो की कुर्बानी नहीं बल्कि अपनी दौलत की नुमाइश करना जैसा है।। शेरवानी ने बताया कि हजरत इब्राहिम ने अल्लाह की राह में अपने बेटे की कुर्बानी दी थी जो कि उन्हें बहुत ही अजीज थे जिस बकरे को 2 दिन पहले खरीद कर लाया जाता है क्या उससे लगाव हो सकता है।। कुर्बानी एक एहसास है जब तक अपने से जुदा होने का दर्द दिल में ना हो उसे कुर्बानी का नाम नहीं दिया जा सकता ।।

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शेरवानी ने कहा कि या तो लोग बचपन से बकरा पालें लाड प्यार से उसे रखें जिससे कुर्बानी देते समय उन्हें एहसास हो या फिर जो लोग बकरा नहीं पाल सकते हैं उन्हें बकरे की कीमत का गरीब लोगों को अच्छा खाना खिला देना चाहिए जरूरी नहीं है कि जीव हत्या की जाए

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