जो जागरूक है, वह मुनिःजैन मुनि मणिभद्र महाराज
समता से ही मिलता है आत्मिक सुख जैन भवन, राजामंडी में बह रही अमृतमयी धारा
आगरा।नेपाल केसरी व मानव मिलन संगठन के संस्थापक जैन मुनि मणिभद्र महाराज ने शुक्रवार को साधक की विवेचना की और कहा कि जो हर क्षण, हर पल जागरूक है, वही मुनि है। केवल वस्त्र धारण करने से ही व्यक्ति मुनि नहीं हो जाता।
जैन भवन, स्थानक, राजामंडी पर प्रवचन करते हुए मुनिवर ने कहा कि एक बार किसी ने भगवान महावीर से पूछा कि साधु कौन है। उन्होंने बहुत ही सरल, सहज उत्तर दिया। कहा कि श्वेत वस्त्र पहनने, मुख पर पट्टिका लगाने से अथवा दिगंबर होने से ही व्यक्ति साधु नहीं होता, साधु या मुनि वह है जो जागरूक है। वह जो भी काम करता है, सोच, समझ कर करता है। प्रत्येक क्षण होश में रहता है।
जैन मुनि ने कहा कि भगवान महावीर ने अपने जीवन में साढे़ बारह साल तक साधना की। इस दौरान वे केवल 48 मिनट ही सोये। यानि साधना काल में हर पल वे जाग्रत अवस्था में रहे। वहीं दूसरी ओर हम लोग हैं, जो नींद नहीं आती तो परेशान रहते हैं। लेकिन नींद न आने पर माला का जाप करना भी उचित नहीं समझते।
महाराज श्री ने सामायिक के विषय में भी विस्तृत चर्चा की। कहा कि आत्मा को धर्म में लगाना ही सामायिक होता है। सामायिक में समता और समभाव के भाव जाग्रत होते हैं। उसी से परम सुख मिलता है। क्यों कि विषमता ही हमें दुखी करती है। इस संसार में कोई भी महापुरुष एसे नहीं हुए, जिन्हें संकट नहीं झेलना पड़ा हो, लेकिन समता पूर्वक संकट झेलना ही सामायिक है। जो सुख और दुख में समान भाव रखें, वह सामायिक से सीखा जाता है।
इस सामायिक के लिए पूजन सामग्री, पुस्तिका, मुख पट्टिका होनी चाहिए। स्वच्छ व सुरक्षित क्षेत्र हो। सामायिक प्रातःकाल अथवा संध्या काल में करें। उन्होंने कहा कि धर्म का प्रचार व उसका हिसाब देने का चलन बहुत बढ़ गया है । उन्होंने पूछा, क्या हम अपने भोजन का हिसाब रखते हैं कि अपने जीवन में कितना भोजन खा चुके। क्या हम अपने पापों का हिसाब रखते हुए उसका जिक्र करते हैं। तब फिर छोटे से धर्म का हिसाब क्यों रखा जाता है।
मुनिवर ने धर्म के आशय को बहुत ही सरलता के साथ बताया। कहा कि जिसमें क्षमा, विनम्रता, सरलता और संतोष हो, वही व्यक्ति धार्मिक है। जिसमें क्रोध, मान, माया और लोभ के दुर्गुण हों, वह पापी की श्रेणी में आता है।
किसी की निंदा करना भी पाप कहलाता है। हमारी वाणी भी इतनी पवित्र व शीतल हो कि किसी को दुख न पहुंचाए। वाणी से किसी को कष्ट हो, उससे भी पाप लगता है। उन्होंने कहा कि न तो धर्म कभी दुख देता है, न धार्मिक व्यक्ति कभी दुखी होता है। जिसके जीवन में समता के भाव होंगे, वह सुखी ही रहेगा।
इससे पूर्व स्वाध्याय प्रेमी विराग मुनि ने प्रवचन दिए। कहा कि हर व्यक्ति को अपनी आत्मा को निर्मल, पवित्र बनाना होगा, तभी जीवन सुखी और सार्थक होगा। इस मौके पर पुनीत मुनि भी मौजूद रहे।
इस चातुर्मास पर्व में सरिता सुराना द्वारा नौवें दिन के उपवास के बाद पारणा किया गया वही नेपाल से आए पदम सुवेदी का पांचवें दिन का उपवास जारी है।आयंबिल की तपस्या की लड़ी दीक्षा सकलेचा ने आगे बढ़ाई। मंगलवार के नवकार मंत्र के जाप का लाभ दीपा एवम मंजू सुराना परिवार ने लिया।
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