पॉलीथीन के उपयोग पर जिम्मेदार मौंन

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  • प्रतिबंधात्मक आदेश सिर्फ कागजों तक सिमटा

मंडला. शासन के 90 प्रतिशत आदेश एवं निर्देश महज कागजों एवं फोटो सेशन तक सिमट कर रह जाते हैं। ऐसा ही प्रतिबंधात्मक आदेश पॉलीथिन का है, जिसमें स्थानीय प्रशासन द्वारा कागजों एवं एनाउंसमेंट कराकर और फोटो सेशन के साथ ही अभियान का समापन हो गया। अब कोई देखने वाला नहीं है, उनके इस आदेश का लेस मात्र भी असर हुआ है कि नहीं।

जानकारी अनुसार शहरी एवं ग्रामीण अंचल में पॉलीथीन के उपयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है। जबकि सिंगल यूज पॉलीथीन पर रोक के साथ जागरूकता अभियान भी चलाया जा रहा है। बावजूद इसके ग्राहक व दुकानदार इसके उपयोग से बाज नहीं आ रहे हैं। पॉलीथीन हमारे लिए कितना घातक है यह बात जानते हुए भी लोग पॉलीथीन का अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं। पॉलीथीन ने अपना दबदबा घर के प्रत्येक कोने में बना लिया है, चाहे पूजा घर हो या रसोई घर। हर जगह पॉलीथीन विद्यमान है।

बता दे कि एक समय ऐसा था जब कागज, कपड़े, जूट इत्यादि से बने थैलों का प्रयोग होता था जो पर्यावरण के अनुकूल थे। पॉलीथीन निर्मित वस्तुओं का पर्यावरण से विलय नहीं हो सकता है, क्योंकि यह नॉनबायो डिग्रेडेबल पदार्थ हैं, इससे भूमि को बंजर बनाने का महत्वपूर्ण कार्य करने के साथ पानी निकासी के बनाई गई नालियों को जाम करने की जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है। पॉलीथीन का कचरा जलाने से निकलने वाला धुंआ ओजोन परत को नुकसान पहुंचा रहा है, जो ग्लोबल वार्मिंग का कारण बना हुआ है। इसको जलाने से निकलने वाली कार्बन डाइआक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड, डॉई आक्साइड जैसी विषैली गैंसे उत्सर्जित होती हैं, जिससे सांस व त्वचा के रोग उत्पन्न होने की आशंका बढ़ गई है।

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  • सारी कोशिशें नाकाम :
    बताया गया कि गायों की मृत्यु पॉलीथीन खाने की वजह से हो रही है। प्रदेश सरकार ने पॉलीथीन से होने वाली हानि को मद्देनजर रखते हुए विगत वर्ष की एक मई से पॉलीथीन पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया था। केंद्र सरकार एक ओर स्वच्छ भारत मिशन की दुहाई दे रहा है और दूसरी ओर पॉलीथीन केंद्र सरकार की योजना को सफल होने नहीं दे रहा है। दुकानदार बेखौफ होकर पॉलीथीन के भंडारण के साथ ही बिक्री कर रहें हैं, इन पर नकेल कसने की सारी सरकारी कोशिशें नाकाम हो रही है।

  • आगे आकर सहयोग की आवश्यकता :
    बता दे कि पॉलीथीन के हो रहे अंधाधुंध प्रयोग के लिए जिम्मेदार किसी एक पहलू को दोषी ठहराना कतिपय उचित नहीं होगा। इसके लिए आम आदमी, व्यापारी और सरकार तीनों जिम्मेदार हैं। अब देखना होगा कि प्रशासन पॉलीथीन को प्रतिबंधित करने क्या प्रयास करता है। समाज सेवियों व स्वैच्छिक संगठनों को भी पॉलीथीन मुक्त भार, सशक्त भारत निर्माण में आगे आकर सहयोग करने की आवश्यकता है जिससे पर्यावरण को सुरक्षित किया जा सके।

  • यह दावे किए थे नगर पालिका ने:
    पॉलीथिन के उपयोग पर पूरी तरह प्रतिबंध विगत 2 अक्टूबर को लगा दिया गया था। इसका बाकायदा प्रचार-प्रसार भी खूब किया गया था। जागरुकता फैलाई गई थी, दुकानों पर पहुंचकर पॉलीथिन दान करने का आग्रह भी किया था। अगले दिन से कार्रवाई शुरु होनी थी, लेकिन नगर पालिका ने कोई कदम नहीं उठाया। जागरुकता के समय दावे किए थे कि अगर कहीं पर भी यह दिखाई दी तो सीधे कार्रवाई होगी। 5 हजार रुपए तक का जुर्माना लगेगा, वहीं कोर्ट में परिवाद भेजा जाएगा। इसमें 1 माह की सजा तक का प्रावधान है। लेकिन नपा द्वारा कार्रवाई के नाम पर खाना पूर्ति की गई। दिखावा के लिए छुटपुट कार्रवाई की गई। जिसका पॉलीथिन प्रतिबंध पर कोई असर नहीं पड़ा।

  • पॉलिथीन को निवाला बना रहे बेजुबान:

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शहर में सड़क के किनारे लगे कूड़े का ढेर और राह चलते लोगों के द्वारा खाने की सामग्री का प्रयोग करने के बाद फेंक देना छुट्टा पशुओं के लिए घातक साबित हो रहा है। चारे की तलाश में जब पशु इधर-उधर भटकते हैं तब खाद्य पदार्थों का पॉलिथीन में होना उनके मौत का कारण बन जाता है। शहर में लोगों की माने तो गली-गली एक बार यूज का पॉलिथीन फेंक दिया जाता है।