आशा पर विपत्ति
आशा पर विपत्ति
आशा के मुकाबले में आशा हो जब खडी
और किसी का कायर निर्णय
नकारता है किसी का लाजमी हक,
नकली सहानुभूति की करतूदों से
खिलवाड होता है चेतना के होश उडने का,
और बंद होता है विवेक की आहट का हर दरवाजा,
तब बन जाती है आशा, एक बरबाद लाश