आजादी की दास्तां: छात्रों के विद्रोह ने पैदा की आजादी की लड़ाई के लिए नई पौध

in #punjab2 years ago

महान दार्शनिक खलील जिब्रान ने कहा था, 'स्वतंत्रता के बिना जीवन आत्माविहीन शरीर के सामान है। स्वतंत्रता के लिए कोई भी क्रांति युवाओं के बिना संभव नहीं।' भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास भी इस बात की गवाही भरता है। असहयोग आंदोलन (1920) से भारत छोड़ो आंदोलन (1942) तक और इसके बाद भी विद्यार्थियों ने क्रांति की मशाल को जलाए रखने में अहम योगदान दिया।
अमृतसर के खालसा कालेज, जालंधर के डीएवी कालेज और रावलपिंडी (अब पाकिस्तान में) के फोरमैन क्रिश्चियन कालेज के अलावा कई सरकारी व सरकार से सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थियों ने असहयोग आंदोलन के दौरान कक्षाओं का बहिष्कार कर दिया। शिक्षण संस्थानों के राष्ट्रीयकरण तक हड़ताल की गई। खालसा कालेज अमृतसर का प्रबंधन 1908 से डिप्टी कमिश्नर के हाथ में था। विद्यार्थियों ने इसका प्रबंधन सिख संस्थाओं को सौंपने के लिए आंदोलन शुरू किया। सरदार हरबंस सिंह अटारी ने प्रबंधक कमेटी से इस्तीफा देकर इसे और हवा दी।
मास्टर सुंदर सिंह ने खालसा कालेज के प्रबंधन पर एक लेख लिखा, जिसमें कालेज पर सरकारी नियंत्रण के औचित्य पर सवाल उठाया। गवर्निग काउंसिल ने भी सरकारी सहायता के तौर पर ग्रांट लेने के विरुद्ध प्रस्ताव पास कर दिया। इसके बाद सरकार का कालेज की गतिविधियों पर नियंत्रण रखने का कोई अधिकार नहीं रह जाता था। ऐसे में डिप्टी कमिश्नर के पास कालेज की प्रबंधक कमेटी का अध्यक्ष बने रहने का आधार भी छिन गया। इस तरह 1920 में कालेज का प्रबंधन सिख संस्थाओं के हाथों में सौंप दिया गया।10_08_2022-punjab_22968752.jpg