किंग मेकर से पहले और बाद में भी एक शिक्षक थे चाणक्य: प्रो. योगेश सिंह

in #delhi2 years ago

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दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि चाणक्य को एक किंग मेकर और विचारक के रूप में जाना जाता है, लेकिन इस सबसे पहले और बाद में भी वह एक शिक्षक थे. प्रो. योगेश सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय में ‘चाणक्य' नाटक के मंचन से पूर्व मुख्यातिथि के रूप में बोल रहे थे. गौरतलब है कि दिल्ली विश्वविद्यालय शताब्दी वर्ष समारोह की कड़ी में ‘चाणक्य' का मंचन “धर्माजम” टीम द्वारा मनोज जोशी के निर्देशन में दिल्ली विश्वविद्यालय सांस्कृतिक परिषद द्वारा करवाया गया था.
इस अवसर पर कुलपति ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में चाणक्य के शिक्षा में महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शिक्षक का कार्य नई पीढ़ी के निर्माण का होता है. यह नाटक इसी के मूल को बताता है. उन्होने चाणक्य के संवादों से उदाहरण देते हुए कहा कि शिक्षक कभी साधारण नहीं होता, सृजन एवं प्रलय उसकी गोद में पलते हैं. कुलपति ने ‘चाणक्य’ नाटक के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि चाणक्य की प्रासंगिकता जितनी पहले थी, आज उससे भी अधिक है. इसीलिए विश्वविद्यालयों में भी चाणक्य की आवश्यकता जितनी पहले थी, उससे बहुत ज्यादा आज है. उन्होने कहा कि एक शिक्षक को कैसा होना चाहिए? उसकी प्राथमिकताएँ क्या होनी चाहियें? राष्ट्र प्रेम और राष्ट्र की चिंता के भाव का निर्माण कैसे करना चाहिए? ये प्रश्न प्राध्यापकों के मनों में आने ही चाहियें. प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि नई पीढ़ी के निर्माण का दायित्व हमारे ऊपर है और इन्हीं बातों को सोचने के लिए ‘चाणक्य’ नाटक मजबूर करता है. उन्होने चाणक्य के शब्दों के माध्यम से कहा कि शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है. शिक्षित व्यक्ति सब जगह सम्मान पाता है. कुलपति ने कहा कि चाणक्य को समझना और उसे विश्वविद्यालयों में जिंदा करना आवश्यक है. ये जिम्मेवारी शिक्षकों की है. उन्होने नाटक के निर्देशक मनोज जोशी को दिल्ली विश्वविद्यालय में इस नाटक के 1780वें शो की बधाई भी दी.
करीब 2400 वर्ष पहले सिकंदर (अलेक्जेंडर) को रोकने और भारतीय संस्कृति को बचाने के साथ-साथ खंड-खंड हो चुके भारत को अखंड एवं सचेत तथा बलशाली और वैभवशाली राष्ट्र बनाने के लिए चाणक्य ने जो कार्य किया था, प्रख्यात रंगकर्मी पद्मश्री मनोज जोशी ने नाटक के मंचन के दौरान इसे बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया. नाटक में पात्रों के संवाद बड़े ही रोचक रहे. मनोज जोशी ने चाणक्य की भूमिका में राज्य के साथ सत्य के संबंधों की व्याख्या अपने संवादों से कुछ इस प्रकार की, “सत्य राज्य द्रोही नहीं होता महामात्य; किन्तु जो राज्य सत्ता से विपरीत होता है, वो राज्य सत्य द्रोही है”. अखंड भारत के गठन में चाणक्य विष्णुगुप्त की सोच को उनके इस संवाद में स्पष्ट देखा जा सकता है, “ब्राह्मणों का अधिकार होता है दान मांगने का मंत्री श्रेष्ठ, दान देने का नहीं; किन्तु मैं विष्णुगुप्त चाणक्य उस नियम को यहाँ पर भंग कर रहा हूँ..... हाँ चन्द्रगुप्त! यदि तुम में पात्रता है तो मैं आर्य विष्णुगुप्त चाणक्य तुम्हें केवल मगध नहीं, ये सम्पूर्ण भारत वर्ष का चक्रवर्ती पद देने के लिए तत्पर हूँ”. नाटक के दौरान चंद्रगुप्त और चाणक्य संवाद ने तो महाभारत में कृष्ण-अर्जुन संवाद का सा दृश्य प्रस्तुत कर दिया. मनोज जोशी ने चाणक्य के पात्र में अनेकों बार अपने संवादों के व्यंग्य बाणों से इस गंभीर नाटक के दौरान भी दर्शकों के लिए हास्य के अवसर पैदा किये. विषय की रोचकता और कलाकारों के सराहनीय अभिनय के चलते नाटक ने दर्शकों को करीब ढाई घंटे तक बांधे रखा.
नाटक के मंचन से पूर्व ‘चाणक्य’ ने निर्देशक मनोज जोशी ने कहा कि चाणक्य केवल एक पात्र नहीं, अपितु एक विचारधारा और एक आंदोलन है. उन्होने कहा कि हमारा दुर्भाग्य यह रहा कि इतने सारे वर्षों में चाणक्य को पढ़ाया नहीं गया. समारोह के आरंभ में दिल्ली विश्वविद्यालय कल्चर काउंसिल के चेयरपर्सन अनूप लाठर ने कलाकारों और सभी अतिथियों का स्वागत किया और कार्यक्रम के समापन अवसर पर डीन कल्चर काउंसिल प्रो. रविन्द्र कुमार ने धन्यवाद प्रस्ताव ज्ञपित किया. समारोह के दौरान मंच संचालन ज्वाइंट डीन कल्चर काउंसिल डॉ. डिप्टी तनेजा द्वारा किया गया. इस अवसर पर केंद्रीय सूचना आयुक्त उदय महुरकर, राष्ट्रीय कवि संगम के अध्यक्ष जगदीश मित्तल, डीन ऑफ कॉलेजेज़ प्रो. बलराम पाणी, दक्षिणी दिल्ली परिसर के निदेशक प्रो. श्री प्रकाश, कल्चर काउंसिल के चेयरपर्सन अनूप लाठर, दिल्ली टीचर्स यूनिवर्सिटी के कुलपति धनंजय जोशी, रजिस्ट्रार डॉ. विकास गुप्ता, शताब्दी समारोह समिति की कनवीनर प्रो. नीरा अग्निमित्रा, डीन कल्चर प्रो. रविन्द्र कुमार, एसओएल की निदेशक प्रो. पायल मागो, प्रोक्टर प्रो. रजनी अब्बी, डीएसडबल्यू प्रो. पंकज अरोड़ा, अंबेडकर विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार नितिन मलिक तथा दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़े अनेकों शिक्षक एवं गैर शिक्षक अधिकारियों, कर्मचारियों और विद्यार्थियों सहित करीब 5 हजार लोग उपस्थित रहे.
नाटक के मंचन में इन कलाकारों का रहा अहम योगदान
कटिका की भूमिका में नाटक की निर्मात्री चारु जोशी और चाणक्य की मुख्य भूमिका में नाटक के निर्देशक पद्मश्री मनोज जोशी ने अभिनय किया. मिहिर भूता द्वारा लिखित इस नाटक की लाइट डिजाइन, सेट डिजाइन और एसोसिएट डायरेक्टर का कार्य आशुतोष आप्टे ने देखा. नाटक की मंच सज्जा और नेपथ्य के लिए कलाकार ओमकार ठक्कर, कार्तिक हरावड़े, सुनील हरावड़े, किशोर वेल्ये और न्यनदेव रायकर ने योगदान दिया. कलाकार संजय जाधव और राहुल ने वेश भूषा सहायक का काम निभाया. इनके अलावा रंग भूषा के लिए मंगेश भोसले और मेकअप मैन शकतार के अलावा सैनिक की भूमिका में उल्लेश कंधारे ने सरहनीय भूमिका निभाई. नाटक के दौरान ध्वनि और संगीत कुलदीप गोर द्वारा दिया गया. मंच पर विभिन्न पात्रों की भूमिका में कलाकार कुछ इस प्रकार रहे: गोपालक और साथ ही मंच सज्जा में तीर्थ भाटिया, धर्मज और पर्वतक मंत्री की भूमिका में राजन जोशी, आर्यधन, सनिधत्ता और आत्विक के पात्रों में दिनेश कांडे, धनानंद, सेनाध्यक्ष और सेनापति की भूमिका में सुनील शिंदे, सुमोहा के पात्र में कविता राठौड़, पौरस, वक्रनास और पर्वतक के पात्रों में संजय भाटिया, चंद्रगुप्त के पात्र में राजीव भारद्वाज तथा अमात्य राक्षसाचार्य की भूमिका अशोक बांठिया ने निभाई.