आज के दिन गाबिंद सागर झील में डूब गए थे 205 गांव

in #wortheum2 years ago

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पहली मानव निर्मित कृत्रिम झील गोबिंद सागर से बेघर हुए बिलासपुर के 205 गांवों के लोगों को अभी तक राहत नहीं मिल पाई है। 61 वर्ष बीत जाने के बावजूद भी यह लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। प्रदेश में हिमाचल गठन के 75 वर्ष पूरे होने पर कार्यक्रम हो रहे हों लेकिन 9 अगस्त 1961 को अस्तित्व में आई झील के लिए अपने घर और जमीन छोड़ने वाले आज भी अपने हकों के लिए भटक रहे हैं। झील की वजह से विस्थापित हुए लोगों से बसा बिलासपुर पहला ऐसा शहर है जो 999 साल की लीज पर है। सब कुछ होते हुए भी इन्हें इस शहर में अपनी ही संपत्ति का मालिकाना हक नहीं मिला है। 61 साल के लंबे अरसे बाद भी लोगों को सुविधाओं के नाम पर केवल कोरे आश्वासन मिले। हर पांच वर्ष बाद होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के समय नेताओं को विस्थापितों की याद जरूर आती है और सत्ता मिलने पर विस्थापितों की समस्याओं को प्राथमिकता के आधार पर हल करने के दावे किए जाते हैं।

लेकिन सत्ता मिलने के बाद विस्थापितों को भूल जाते हैं। इस कारण आज भी विस्थापितों का पूरी तरह बसाव नहीं हो पाया है। भाखड़ा से बिलासपुर तक बनी इस झील की लंबाई करीब 70 किलोमीटर है। देश के विकास के लिए इस बांध में जिले की करीब 41 हजार एकड़ भूमि झील की भेंट चढ़ गई थी। तत्कालीन समय 11 हजार 777 परिवार जिला के बेघर हुए थे। इस समय केंद्र और प्रदेश सरकार द्वारा विस्थापितों के लिए किसी भी नीति का निर्धारण नहीं किया गया। इस कारण कुछ लोग आसपास के जंगलों में बस गए तो करीब 3 हजार 600 परिवारों को हरियाणा के सिरसा, हिसार और फरीदाबाद में जमीन दी गई। इनमें से कुछ लोग वापस बिलासपुर आ गए थे।

विस्थापितों का पहला शहर जो 999 साल की लीज पर
बिलासपुर विस्थापितों का पहला शहर है जो 999 साल की लीज पर है। यहां रहने वाले लोग अपनी ही संपत्ति के मालिक नहीं है। बिजली पानी के कनेक्शन लेने के लिए नगर परिषद से एनओसी लेनी पड़ती है। जरूरत पड़ने पर अपनी ही संपत्ति पर लोन लेने के लिए उपायुक्त कार्यालय से अनुमति लेनी पड़ती है। 1971 में साल 1971 को पुनर्वास के नियम बनाए गए। इसमें बिलासपुर शहर और गांव के लिए अलग-अलग नियम तय किए गए। विस्थापन के 12 वर्ष बाद 1973 को कुछेक ग्रामीण विस्थापितों को जमीन दी गई लेकिन निशानदेही सही तरीके से न होने के कारण लोगों ने अपने आशियाने तो बना लिए लेकिन जमीन कहीं और पर थी। इस कारण इन लोगों पर दोबारा विस्थापित होने की तलवार लटक गई है।

450 लोगों के कट चुके हैं बिजली-पानी के कनेक्शन
विस्थापितों की जमीनों को अवैध करार देकर करीब 450 लोगों के बिजली-पानी के कनेक्शन काटे जा चुके हैं। बिलासपुर शहर में भी करीब 246 लोगों को प्लॉट नहीं मिल पाए हैं। इन लोगों को प्लॉट के लिए जमीन तक चिन्हित नहीं हुई है। कुछ वर्ष पहले एचआरटीसी वर्कशॉप के पास जमीन चिन्हित की थी लेकिन वहां भी प्लॉट आवंटन नहीं हुआ।

विस्थापितों की मांगें की अभी तक नहीं हुई पूरी
जिला ग्रामीण भाखड़ा विस्थापित सुधार समिति के अध्यक्ष देशराज शर्मा ने मांग की कि विस्थापित क्षेत्र का बंदोबस्त करवाया जाए और विस्थापितों की कब्जे वाली जमीन का मालिकाना हक प्रदान किया जाए। इसके अतिरिक्त जिन विस्थापितों के बिजली और पानी के कनेक्शन काटे गए हैं उन्हें बहाल किया जाए। विस्थापितों को मुफ्त में बिजली दी जाए, विस्थापितों के बच्चों को बीबीएमबी में नौकरियों में आरक्षण दिया जाए। रायल्टी के रूप में मिलने वाली राशि में से 25 प्रतिशत विस्थापितों की मूलभूत सुविधाएं पर खर्च किए जाएं। इसके अलावा जिन विस्थापितों को प्लाट नहीं मिले हैं उन्हें प्लॉट दिए जाएं। गोबिंद सागर झील पर भजवाणी में पुल बनाया जाए जोकि राजाओं के समय बना था लेकिन झील के अस्तित्व में आने के बाद डूब गया था।

विस्थापन दंश झेलकर देश को दी उन्नति
बिलासपुर हिमाचल का एक जिला ऐसा भी है, जिसने अपना सर्वस्व खोकर कभी आंखें नम नहीं की। देश के विकास के लिए हर समय बलिदान करने को तैयार खड़ा रहा। आजादी से पहले तक उन्नत रियासतों में से एक मानी जाने वाली कहलूर रियासत का अपना ही बोलबाला था। बिलासपुर के पुराने शहर और रंगमहल के चर्चे आज भी लोगों की जुबान पर सुनने को मिलते हैं। लेकिन वक्त बदला और धीरे-धीरे पुराने बिलासपुर ने अपना अस्तित्व खो दिया। खेत खलिहान, आस पड़ोस तो खोया ही विकास के लिए देवी-देवता के स्थान तक खो दिए। बिलासपुर पास्ट एंड प्रजेंट, बिलासपुर गजेटियर और गणेश सिंह की पुस्तक चंद्रवंश शशिवंश विनोद से पुष्टि होती है कि कहलूर रियासत की नींव बीरचंद ने 697 ईस्वी में रखी। वहीं डॉ. हचिसन एंडवोगल हिस्ट्री की पुस्तक ऑफ पंजाब हिल स्टेट के अनुसार बीरचंद ने 900 ई. में कहलूर रियासत की स्थापना की थी।

1650 में बसा था पुराना बिलासपुर शहर
1650 में कहलूर रियासत के राजा दीपचंद बने। कहलूर रियासत की पुरानी राजधानी सुन्हाणी होती थी लेकिन राजा दीपचंद को यह नापसंद थी। उन्होंने नई राजधानी के लिए जगह तलाशी और अंत में सतलुज नदी के र्बाइं ओर व्यास गुफा को चुना जो महर्षि व्यास की तपो स्थली थी, इसी जगह पर सतुलज नदी के तट पर एक शहर बसाया और उसका नाम महर्षि व्यास के नाम पर व्यासपुर रखा जो बाद में बिलासपुर हुआ। तब से रियासत के विलय तक व्यासपुर ही कहलूर की राजधानी रही। इसे चंदेरी राजवंश ने बसाया था वह शहर बाद में गोबिंद सागर में डूब गया। पुराने शहर के ऊपरी तरफ एक नया शहर बस गया है जोकि समुद्र तल से 673 मीटर ऊंचा है। भारत और पाकिस्तान के टुकड़े होने के बाद जब बिलासपुर 12 अक्तूबर 1948 को अलग राज्य बना तो राजा आनंद चंद इसके मुख्यायुक्त बने। बिलासपुर भारत की आजादी के पश्चात एक अलग राज्य के रूप में स्थापित रहा, भारतीय संसद के एक एक्ट द्वारा पहली जुलाई 1954 को हिमाचल प्रदेश में बिलासपुर का विलय कर दिया और राजा आनंद चंद के स्वतंत्र कहलूर राज्य का सपना टूट गया। इस तरह से बिलासपुर भी हिमाचल प्रदेश का पांचवां जिला बन गया।

नौ अगस्त 1961 को डूब गई बिलासपुर की धरोहर
भाखड़ा बांध के निर्माण की योजना संयुक्त पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर लुईस डान के समय 1918 में बनाई गई। इसका निर्माण 1948 में शुरू हुआ और 1963 में इसे पूरा किया गया। इसका उद्घाटन करते हुए भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि इस बांध का निर्माण आश्चर्यजनक तथा अद्वितीय है। बांध के निर्माण से बिलासपुर बुरी तरह से प्रभावित हुआ। सुप्रसिद्ध सांडू मैदान, यहां स्थित बाजार, मंदिर, प्राचीन महल, दो सौ के करीब गांव, चौंटा घाटी का उपजाऊ क्षेत्र सहित सब जलमग्न हो गया। अब यहां उन स्थानों पर विश्व की सबसे बड़ी मानव निर्मित गोविंद सागर झील बनी हुई है। इसमें मत्स्य पालन, नौकायान, जल क्रीड़ा सहित अनेक रोजगार के साधन उपलब्ध हो रहे हैं। राजा आनंद चंद ने जब भाखड़ा में पुराने शहर के जलमग्न होने का मसला भारत सरकार से उठाया था तो उस समय भारत सरकार के चीफ आर्केटेक्ट जुगलेकर ने नए शहर का नक्शा बनाया था। नगर का निर्माण 1956 में शुरू हुआ था और 1963 में बनकर तैयार हुआ था। सबसे पहले इसे रौड़ा, डियारा और चंगर तीन सेक्टर के प्रारूप से पहचाना गया। इसके बाद लोगों ने अपनी मर्जी से भवन बनाना शुरू कर दिया और आर्केटेक्ट के मुताबिक यह शहर विकसित नहीं हो सका। वर्तमान में इसके 11 सेक्टर हैं।

सतधार के नाम से जाना जाता है जिला
जिले की स्थापना के बाद 1954 में केवल दो तहसीलें और 12 परगने थे लेकिन 24 जनवरी 1980 में बिलासपुर और घुमारवीं दो उपमंडल बनाए गए। इसके बाद दो तहसीलों के साथ नयना देवी में एक उपतहसील बनाई गई। 31 मार्च 1999 को झंडूता में एक तहसील स्थापित की गई। वर्तमान में जिले के चार उपमंडल, सदर, घुमारवीं, झंडूता और स्वारघाट हैं। बिलासपुर विशुद्ध रूप से पर्वतीय क्षेत्र है और इसे सात धारों के नाम से देशभर में जाना जाता था। इन सात धारों में धार नयना देवी, कोटधार, धार झंजियार, धार तियूण और धार सरयून, धार बंदला और बहादुरपुर धार शामिल हैं। 1952 में जब हिमाचल प्रदेश में चुनाव हुए तो बिलासपुर एक अलग राज्य था। उस समय यहां पांच विधानसभा क्षेत्र थे जो अब चार हैं। हिमाचल में बिलासपुर का विलय हुआ तो सभी चुने हुए प्रतिनिधियों को विधानसभा में सदस्य माना गया। वर्ष 1963 तक बिलासपुर के पांच विधानसभा क्षेत्र रहे लेकिन 1967 में इन्हें घटाकर तीन कर दिया, इसके बाद 1972 में हुए पुनर्सीमांकन के दौरान यहां घुमारवीं, गेहड़वीं, सदर और कोट कहलूर चार विधानसभा में बांटा गया। जिला में अब चार विधायक मौजूद हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से बिलासपुर में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान कोठीपुरा का कार्य लगभग पूरा होने जा रहा है। जिले में रेलवे लाइन पहुंचाने का कार्य प्रगति पर है। फोरलेन के प्रोजेक्ट प्रगति पर हैं। शिक्षा के क्षेत्र में हाइड्रो इंजीनियरिंग कॉलेज बंदला अपनी अलग पहचान बना रहा है।

बिलासपुर की मुख्य हस्तियां
वर्तमान में बिलासपुर की पहचान दुनियाभर में है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा आज दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं। वहीं बॉलीवुड की अभिनेत्री यामी गौतम ने भी अपनी प्रतिभा का डंका देश-दुनिया में बजाया है। बहादुरी का तमगा विक्टोरिया क्रॉस विजेता रणबांकुरे वीर जनरल जोरावर सिंह कहलूरिया, विक्टोरिया क्रॉस विजेता कप्तान वीर भंडारी राम, परमवीर चक्र विजेता सूबेदार मेजर संजय कुमार। बिलासपुर से फूलां चंदेल, गंभरी देवी, यामी गौतम (बॉलीबुड अभिनेत्री) मनसा पंडित, विजय राज उपाध्याय और सूबेदार वीर सिंह चंदेल मुख्य कलाकारों में शामिल हैं। साहित्यकारों में देवराज शर्मा, बंशी राम शर्मा, कन्हैया लाल दबड़ा, रूप शर्मा, कुलदीप चंदेल शामिल हैं। जिला बिलासपुर में सबसे बड़ा पावन स्थल नयना देवी मंदिर माना जाता है। यह मंदिर हिंदुओं और सिखों की पावन स्थली है। दसवीं पातशाही गुरु गोविंद सिंह की माता नयना देवी के प्रति असीम विश्वास और श्रद्धा थी। इसके साथ ही नाहर सिंह मंदिर, व्यास गुफा, मार्कंडेय ऋषि मंदिर सहित अन्य धार्मिक स्थल हैं।