अस्पतालों के वार्डों में लिखी गई राजनैतिक उठापटक की पटकथा ! पढ़ें पर्दे के पीछे की कहानी

in #lalu2 years ago

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दिन बुधवार और तारीख थी छह जुलाई। यही कोई सुबह 11:00 बजे का वक्त था। पटना के पारस अस्पताल के बाहर अचानक सुरक्षा इंतजाम चाक-चौबंद होने लगे। पुलिस प्रशासन से लेकर सुरक्षा एजेंसियों का पूरा अमला चंद मिनट में अस्पताल को अपने घेरे में ले चुका था। इतनी सतर्कता के बीच अचानक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पारस अस्पताल के ग्राउंड फ्लोर पर बने वीवीआइपी वार्ड में लालू यादव से मिलने पहुंचते हैं। वार्ड में ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पूछा जाता है कि क्या लालू यादव को सरकारी खर्चे पर दिल्ली भेजा जाएगा। सवाल सुनते ही नीतीश कुमार ने कहा...यह कोई पूछने वाली बात है। लालू जी को तो सिंगापुर लेकर जाना था इलाज के लिए। फिलहाल दिल्ली एम्स में उनकी सभी जाचें होंगी और इलाज होगा। उसके बाद डॉक्टर तय करेंगे कि आगे क्या किया जाना है।

नीतीश कुमार की लालू यादव के प्रति आत्मीयता न सिर्फ लालू के पूरे परिवार को भा गई, बल्कि बिहार की राजनीति में अस्पताल के इसी परिसर से सियासी समीकरणों की एक बार फिर से नई इबारत लिखे जाने की शुरुआत होने लगी। फिर पटना से लेकर दिल्ली तक जेडीयू और आरजेडी के नेताओं का जो मिलना-जुलना शुरू हुआ, उसके बाद ही चर्चा होने लगी कि बिहार में जल्द ही कोई बड़ा राजनैतिक घटनाक्रम होने वाला है।

राजनीति में न कोई स्थाई दुश्मन ने दोस्त

सूत्रों के मुताबिक बीते कुछ दिनों में ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन कुमार समेत कई बड़े पार्टी के ओहदेदारों से आरजेडी के नेताओं की पटना से लेकर दिल्ली के बड़े दरबारों और एम्स जैसे अस्पताल के परिसरों में मुलाकातों का सिलसिला शुरू हुआ। सूत्रों का कहना है कि इस दौरान बिहार में सरकार के फेरबदल को लेकर के भी चर्चाएं हुईं। हालांकि इसे लेकर नीतीश कुमार और उनकी पार्टी ने कभी खुलकर यह तो नहीं कहा कि वह लालू यादव के साथ मिलकर सरकार बनाएंगे। लेकिन जिस तरीके के संकेत बीमारी के दौरान लालू यादव की देखरेख में जदयू की ओर से दिखे, उससे यह तो स्पष्ट हो गया था कि अब आरजेडी और जेडीयू का झुकाव एक-दूसरे के प्रति बढ़ रहा है। जेडीयू के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि राजनीति में कुछ भी संभव है। उनका कहना है राजनीति में न किसी से स्थाई दुश्मनी होती है और न किसी से स्थाई दोस्ती। क्योंकि अभी राजनीतिक हालातों पर कुछ भी बोलना उनके लिए मुनासिब नहीं है, लेकिन जो कयास लगाए जा रहे हैं उस में दम तो निश्चित है।
जानकारों का कहना है कि लालू यादव को जिस तरीके से नीतीश कुमार के अपनेपन वाले प्रयासों की वजह से एम्स में दाखिल कराया गया, उससे न सिर्फ जेडीयू के नेता बल्कि आरजेडी के नेताओं की मुलाकातों का सिलसिला भी दिल्ली में शुरू हुआ। बिहार की राजनीति को करीब समझने वालों का तो यहां तक कहना है कि जिस दौरान लालू यादव एम्स में भर्ती थे, उसी दौरान जदयू के वरिष्ठ नेता वशिष्ठ नारायण सिंह भी पटना से दिल्ली इलाज के लिए आए थे। सूत्रों का कहना है कि इसी दौरान वशिष्ठ नारायण सिंह को देखने के लिए पटना से जेडीयू और आरजेडी के बड़े-बड़े रणनीतिकारों का दिल्ली एम्स में आना-जाना बना हुआ था। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अस्पताल के इस परिसर में ही बिहार के बदलते सियासी समीकरणों ने जमकर जोर पकड़ा। क्योंकि यहां पर राजनीतिक दलों के नेताओं का मिलना न सिर्फ आसान था, बल्कि सियासी समीकरणों को साधते हुए बातचीत के सिलसिले को आगे बढ़ाना भी बहुत सरल हो चुका था। लालू यादव के दिल्ली एम्स में दाखिल रहते हुए कांग्रेस के नेता राहुल गांधी भी उनसे मिलने के लिए पहुंचे थे। चर्चाएं तभी तेज होने लगी थीं कि बिहार कि राजनीति में जल्द ही बहुत कुछ बड़ा होने वाला है।
सूत्र के मुताबिक लालू यादव की बीमारी के दौरान जिस तरीके से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और खुद उनके कई मंत्री लालू यादव का हालचाल ले रहे थे, उससे दोनों नेताओं के बीच की दूरियां कम हो रही थीं। जानकारों का कहना है कि लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव के नीतीश कुमार और उनके पार्टी के नेताओं के बीच में बिहार के राजनीतिक समीकरणों पर खुलकर के चर्चा हुई। क्योंकि नीतीश कुमार लगातार भारतीय जनता पार्टी के कार्यक्रमों समेत दिल्ली या अन्य जगहों पर होने वाले बड़े आयोजनों से दूरी बनाए हुए थे। उससे जेडीयू और आरजेडी के बीच में आपसी तालमेल को लेकर मजबूत बल मिलता रहा।

अगले 48 घंटे बहुत अहम

बिहार की राजनीति को करीब से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार सुमित कुमार कहते हैं कि यह बात तो सच है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जिस तरीके से लालू यादव से मिलकर उन्हें और उनके परिवार समेत पार्टी को आत्मीय बल दिया, उससे राजनैतिक गलियारों में तमाम तरीके की चर्चाओं का बाजार तो गर्म होने लग गया था। उनका कहना है निश्चित तौर पर जेडीयू और आरजेडी के बीच बीते कुछ दिनों में जो नज़दीकियां बढ़ी हैं वह बिहार में आज के बदले समीकरण में एक नई कहानी कह रही हैं। सुमित कहते हैं कि बिहार की राजनीति में अगले 48 घंटे बहुत अहम माने जा रहे हैं। क्योंकि जेडीयू और आरजेडी अपने विधायकों की सांसदों की बैठक कर रहा है। निश्चित तौर पर अचानक बुलाई गई इन बैठकों में बिहार बिहार को लेकर कोई बड़ा राजनीतिक उठापटक वाला फैसला भी हो सकता है।
कहने को तो नीतीश कुमार और भाजपा नेताओं के बीच में मतभेद लगातार बने हुए थे। कई बड़े मौकों पर यह न सिर्फ खुलकर सामने आए बल्कि इसी वजह से तमाम तरीके की राजनीतिक चर्चाओं को भी बल मिलने लगा। बावजूद इसके दो साल साल से ज्यादा से भाजपा और जेडीयू की सरकार बिहार में बनी हुई है। लेकिन पिछले कुछ समय से यह तल्खी ज्यादा बढ़ गई है। बिहार के राजनीतिक विश्लेषण अनिमेष रंजन कहते हैं कि यह तल्खी सबसे ज्यादा तब बढ़ी जब आरसीपी सिंह को पार्टी ने किनारे करना शुरू किया। वह कहते हैं कि जेडीयू, भाजपा से पहले से इस बात से नाराज थी कि चिराग मॉडल से उनका बड़ा नुकसान हुआ था। अब आरसीपी मॉडल से पार्टी को भितरघाती तौर पर बड़ा नुकसान पहुंचाने की तैयारी चल रही थी। बिहार के राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2020 के चुनावों में जेडीयू पहले से ही वहां पर राष्ट्रीय जनता दल और भारतीय जनता पार्टी की तुलना में बहुत कम सीटों पर विजयी हुई थी। ऐसे में पार्टी को इस बात का अंदाजा था कि अगर आरसीपी मॉडल सक्रिय हो गया, तो आने वाले विधानसभा के चुनावों से लेकर लोकसभा के चुनावों में पार्टी के नीचे जमीन खिसक सकती है। यही वजह है कि जेडीयू ने अपना भविष्य देखते हुए बिहार में विकल्प तलाशने शुरू कर दिए।