नए साल पर क्या करना है स्वयं सोचिए?

in #newyear9 months ago

बूढ़े हो गए सभी को मना मना कर। बीबी हों ,बच्चे हों ,बॉस हो ,कोई मानने को राज़ी ही नही। निरंतर अनमने प्राणी। ज़िंदगी कट गई इन्हें मनाते मनाते। एक को मनाओ तो दूसरा फैल जाता है।ऐसे में नए साल को भी मनाएँ। काहे भाई ? बीबी और बॉस को मनाना को समझ लीजिए मजबूरी। पापी पेट का सवाल है वो तो ,पर इस नए साल में ऐसे कौन से सुर्खाब के पर लगे हैं जिसकी वजह से इसे मनाया जाए।

अब कोई हमें यही बता दें कि भैया इकतीस दिसंबर और एक जनवरी में अंतर क्या है ? जहाँ इकतीस को सूखा था वहाँ एक को भी कड़की है।जो पिछले साल तर थे वो नए साल में भी मलाई खाएँगे। तुम अपनी देख लो ,तुम कहाँ खड़े हो ? तीन चौथाई बोतल पी कर आधी रात तक ठिठुरती सड़कों पर कूदना फाँदना है ,दांत किटकिटाते पुलिस वाले भैया को ही मुँह सूंघने का मौक़ा देना है तो इकतीस दिसंबर की रात का इंतज़ार करने की क्या ज़रूरत है ?

और फिर एक की सुबह सर फटेगा ,हैंग ओवर होगा। तुम्हारा ख़ाली पर्स तुम्हें बद्दुआएँ देगा ,सो अलग। अलग कुछ और होगा नहीं तुम्हारी ज़िंदगी में।वही तुमसे पीछा छुड़ाने को आतुर प्रेमिका। वही नाराज़ बीबी। वही खूसट बॉस।ख़ाली जेब और भन्नाता दिमाग़ देख कर ये और भी विकराल रूप धारण कर लेते हैं।नया साल इन प्राकृतिक आपदाओं से निपटने मे टेका नही लगा पाता।ऐसे में आप घुटनों पर आते है।इन्हें मनाते हैं।मनाते ही रहते है और फिर इकतीस दिसंबर चला आता है।

मनाएँ हम उसे जो अपना हो।जिससे लगाव हो।जिसके छोड़ कर चले जाने से,अनमने होने से नुक़सान होने का ,अकेले रह जाने का खतरा हो।नए साल की उछल-कूद इनमें से किसी मापदंड पर खरी नही उतरती।आप मनाए या न मनाएँ ये तो आकर रहेगा।इसके आने पर झूमने गाने से आपको लड्डू पेड़े मिलेंगे ऐसा भी नही।आप चाहें कि इससे जल्दी पीछा छूट जाए ये भी मुमकिन नही।तो फिर इसके आने पर धमाचौकड़ी मचाने का क्या मतलब है ये मेरी समझ से बाहर है।

सो बेटा ,छोड़ो चोंचले ये नए साल के । इन फिरगियों की नक़ल में कुछ नही धरा । भारतीय संस्कृति का सम्मान करो। मंदिर हो आओ पड़ोस के।मनाना ज़रूरी हो तो होली दिवाली मना लो। ईद पर गले मिल लो नाराज पड़ौसी से।अपने अनमने बाप के हाल-चाल पूछ लो।वक्त पर सो जाओ। वक्त पर उठो। मन लगाए रहो अपने काम में। जो मनाने लायक़ हो उन्हें ही मनाओ। राज़ी रखो बीबी और बॉस को। कहीं इनने तुम्हारा पत्ता काट दिया तो न घर के रहोगे न घाट के। ये नया साल फिर हथेली लगा नहीं पाएगा। अब हम तो बाल सफ़ेद कर चुके ये ग़लतियाँ कर कर के। ऐसे में ज्ञान बांटने की पात्रता आ चुकी हमें। सो वही कर भी चुके। आगे की सूचना ये कि हम तो नहीं मना रहे नए साल को। अब आप अपनी देख लो ,क्या करना है।