यूजीसी के चार साल पहले जातीय आधारित सर्कुलर को विश्वविद्यालयों में आज तक लागू नहीं किया गया

in #delhiuniversity2 years ago (edited)

दिल्ली, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ( यूजीसी ) की अवर सचिव ने विश्वविद्यालयों के कुलसचिवों को चार साल पहले ( 4 जून 2018 ) विश्वविद्यालयों/उच्च शिक्षण संस्थानों / कॉलेजों में जातीय आधारित किसी भी तरह के भेदभाव की निगरानी करने के लिए एक सर्कुलर जारी करते हुए भेदभाव संबंधी शिकायत दर्ज करने के लिए अपना वेबसाइट पेज निमित्त करने को कहा था लेकिन विश्वविद्यालयों /कॉलेजों ने आज तक इस पर कोई कार्यवाही नहीं की परिणाम , लगातार कॉलेज/ विश्वविद्यालय में एससी/एसटी वर्गों पर जातीय आधारित भेदभाव की घटनाएं घटित हो रही है ।
यूजीसी ने यह सर्कुलर दिल्ली विश्वविद्यालय, इलाहबाद विश्वविद्यालय, डॉ आंबेडकर विश्वविद्यालय ,बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, जेएनयू, जामिया मिलिया इस्लामिया, इग्नू, एमडीयू, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, आईपी यूनिवर्सिटी, अम्बेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली समेत देशभर के विश्वविद्यालयों के कुलसचिवों को सर्कुलर जारी करते हुए कहा था कि यूजीसी उच्च शिक्षण संस्थानों में जातीय आधारित किसी भी भेदभाव की निगरानी कर रहा है। यूजीसी ने यह सर्कुलर उन विश्वविद्यालयों/संस्थानों को भेजा था जो यूजीसी की लिस्ट में है और जो उससे अनुदान प्राप्त करती है । उन्हें यूजीसी के द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करना अनिवार्य है ।
आम आदमी पार्टी के शिक्षक संगठन दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन ( डीटीए ) के अध्यक्ष डॉ. हंसराज सुमन ने दिल्ली विश्वविद्यालय से सम्बद्ध विभागों/ कॉलेजों में एससी/एसटी/ ओबीसी के शिक्षकों, कर्मचारियों और छात्रों के साथ हो रही जातीय आधारित घटनाओं पर चिंता व्यक्त की है और कहा है कि पिछले चार साल से जातीय आधारित किसी भी तरह के भेदभाव की निगरानी संबंधी कमेटी डीयू के कॉलेजों व उच्च शिक्षण संस्थानों में नहीं बनी है जबकि यूजीसी सर्कुलर जारी हुए चार साल व्यतीत हो चुके है । उन्होंने जल्द से जल्द विश्वविद्यालय व कॉलेज स्तर पर जातीय उत्पीड़न रोकने के लिए जातीय उत्पीड़न निवारण सैल की स्थापना किए जाने की मांग की है । उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश कुमार सिंह से यह भी मांग की है कि डीयू के विभागों, कॉलेजों में जातीय आधारित किसी भी भेदभाव की निगरानी करने के लिए विश्वविद्यालय व कॉलेज स्तर पर जातीय उत्पीड़न सुरक्षा कमेटी गठित की जाए । कमेटी में एससी/एसटी और ओबीसी के शिक्षकों व कर्मचारियों को ही रखा जाए । उन्होंने यूजीसी की अवर सचिव द्वारा विश्वविद्यालयों को भेजे गए सर्कुलर में याद दिलाया है कि यूजीसी ने 19/7/2011 ,2/7/2013 ,1/3/2016, 5/9/2016 और 15/5/2017 को इस संदर्भ में उचित कार्यवाही करने हेतु पत्र जारी किए हैं किंतु इस पर कोई कार्यवाही ना होने पर उन्होंने गहरी चिंता जताई है ।
डॉ. सुमन ने बताया है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के अधिकांश ऐसे कॉलेज है जहाँ एससी/एसटी ,ओबीसी के शिक्षकों/कर्मचारियों के साथ जातीय भेदभाव की घटनाएं घटित हुई है। डीयू के भीमराव अंबेडकर कॉलेज , महाराजा अग्रसेन कॉलेज , स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज , लक्ष्मीबाई कॉलेज , हिंदू कॉलेज , भगनी निवेदिता कॉलेज , अदिति महिला कॉलेज , दौलतराम कॉलेज के अलावा बहुत से कॉलेज है जिनके मामले राष्ट्रीय अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग में दर्ज है । दोनों आयोगों द्वारा कार्यवाही करने के लिए कॉलेज प्रशासन व विश्वविद्यालय को लिखा जाता है लेकिन समाधान नहीं हो पाता । उन्होंने बताया है कि सबसे ज्यादा मामले शिक्षकों की नियुक्ति में रोस्टर व आरक्षण का सही ढंग से पालन न करना है , इसी तरह से कर्मचारियों की नियुक्ति व पदोन्नति के मामले आयोग में पंजीकृत है । उनका कहना है कि जातीय भेदभाव के आधार कर्मचारियों के मामले ज्यादा है । उन्होंने कुलपति को तथा अपने विद्वत परिषद के सदस्य के समय ये मामले उठाएं थे लेकिन उनका समाधान आज तक नहीं हो पाया । पिछले दिनों दो महिला कॉलेजों में इस तरह की घटना हुई है ,विश्वविद्यालय ने इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया ।
डीटीए के अध्यक्ष डॉ. हंसराज सुमन ने बताया है कि उच्च शिक्षण संस्थानों में दलित छात्रों के साथ जातीय भेदभाव की शिकायतों को लेकर वर्ष -2015 में भी चर्चा हुई थीं ।हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में शोधरत दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के मामले ने फिर से सोचने को मजबूर कर दिया था कि उच्च शिक्षा में दलित छात्रों को कैसे रोका जाए । सरकार चाहती है कि अन्य विश्वविद्यालयों में रोहित की आत्महत्या की तरह पुनरावृति ना हो इसके लिए इन विश्वविद्यालयों में एससी /एसटी ग्रीवेंस सेल की स्थापना हो। उन्होंने बताया है कि यूजीसी ने उच्च शिक्षण संस्थानों में जातीय भेदभाव को लेकर 19 जुलाई 2011को सभी विश्वविद्यालों के कुलसचिव को पत्र भेजा था जिसमें उन्होंने लिखा था कि किसी भी संकाय/विश्वविद्यालय/संस्थान के कर्मचारी/अधिकारी दलित विद्यार्थियों के साथ हो रहे भेदभाव का आधार उनका दलित परिवार में जन्म लेना ना बनाएं।
डॉ सुमन का कहना है कि इस को यू जी सी में बिदुवार इस तरह से रखा है और कहा है कि कर्मचारी, शिक्षक और एससी, एसटी के छात्रों के प्रति सामाजिक आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव करने से बचें।उन्होंने आगे लिखा है कि विश्वविद्यालय/संस्थान/कॉलेज अपनी वेबसाइट पर एससी/एसटी के छात्रों के भेदभाव संबंधी शिकायतें दर्ज करने के लिए अपनी वेबसाइटों पर पेज निर्मित करे और साथ ही इसी उद्देश्य के लिए रजिस्ट्रार व प्रिंसिपल ऑफिस में एक शिकायती रजिस्टर रखें । यदि इस तरह की कोई भी घटना अधिकारियों की नजर में आती है तो तुरंत इसके खिलाफ कर्मचारियों और शिक्षकों सदस्यों के विरुद्ध कार्यवाही की जाएं।
उन्होंने बताया है कि विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों को भेजे गए सर्कुलर में यह भी कहा गया है कि विश्वविद्यालय और कॉलेज इस बात का आश्वासन दे कि इस वर्ग से आने वाले किसी भी समूह या छात्र के खिलाफ कोई भेदभाव ना किया जाएं। इसके अलावा एससी/एसटी/ओबीसी शिक्षक और छात्र , नॉन टीचिंग स्टॉफ यदि किसी के भी खिलाफ हुए भेदभाव की शिकायत सुनने के लिए इस संदर्भ में विश्वविद्यालय एक कमेटी गठित करें। उनका कहना है कि कॉलेजों में अभी तक इस तरह की कोई कमेटी गठित नहीं हुई है।
डॉ. सुमन ने बताया है कि यूजीसी के इस सर्कुलर में अनुरोध किया गया है कि अपने विश्वविद्यालय/ संस्थान के कर्मचारियों और फैकल्टी सदस्यों को सलाह दे कि इस तरह की किसी भी (जातीय आधारित भेदभाव) घटना को सुलझाने के समय अत्यंत संवेदनशील होना आवश्यक है और इस संदर्भ में एक सुनिश्चित प्रारूप में कार्यवाही करने हेतु रिपोर्ट दर्ज करके यूजीसी को 2017 --2018 में निर्मित फॉरमेट के अनुसार भेजे और ईमेल पर भी कर सकते हैं जिसका ईमेल आईडी--sctsection@gmail. com है। इन निर्देशों को विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त कॉलेजों में प्रसारित करें और विश्वविद्यालय को इस संदर्भ में क्या कार्यवाही हुई है ,को सूचित करे।
डॉ. सुमन ने बताया है कि यूजीसी सर्कुलर के साथ विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार और संस्थांनो को एक एक्शन टेकन रिपोर्ट के लिए फॉर्मेट भी भेजा गया है जिसमें--एससी, एसटी, ओबीसी के खिलाफ हुए भेदभाव संबंधी शिकायत दर्ज करने हेतु एक वेबसाइट तैयार करें । साथ ही 2017--2018 के दौरान हुई शिकायतों में संख्या दर्ज करें। दर्ज हुई शिकायतों में से कितनी समस्याओं को सुलझाया गया और कितनी को नहीं उनकी संख्या भेजे । उन्होंने यह भी पूछा है क्या कोई आत्महत्या जैसा कार्य होने पर कार्यवाही हुई या शिकायत हुई है, उसकी संख्या दर्ज करें, कर्मचारियों और शिक्षकों द्वारा हुए भेदभाव के संदर्भ में की गई कार्यवाही की सूचना को भी सक्ष्म अधिकारियों को भेजे । साथ ही यह पता लगाया जाए कि क्या कॉलेज/विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त है हां/ नहीं में उत्तर दे।
डॉ. सुमन ने बताया है कि इसके अतिरिक्त फॉर्मेट में पूछा गया है कि कॉलेजों की समस्याओं को सुलझाने के तरीके के विषय में लिखे। 2017 --2018 के दौरान सुनी गई शिकायतें और सुलझाई गई शिकायतों को दर्ज करें। इतना ही नहीं यदि कोई आत्महत्या जैसी घटना शिकायत में दर्ज की गई हो तो उसकी संख्या लिखें । डॉ. सुमन का कहना है कि यूजीसी के इस सर्कुलर पर विश्वविद्यालयों/संस्थानों/कॉलेजों को इस पर वर्कशॉप करानी चाहिए ताकि जातीय आधारित भेदभाव के विषय में छात्रों, कर्मचारियों और शिक्षकों को अवगत कराया जा सके । साथ ही उन्होंने बताया है कि सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों विशेषकर दलित छात्रों के साथ विश्वविद्यालयों और कॉलेजों /कैम्पस में भेदभाव को समाप्त करने को लेकर केंद्र सरकार विशेष जोर दे क्योंकि उच्च शिक्षा में कमजोर वर्गों के साथ भेदभाव और घटते नामांकन की वास्तविक स्थिति और भी भयावह है, इसमें तब तक सुधार संभव नहीं है जब तक इस दिशा में कॉलेज/विश्वविद्यालय सकारात्मक सोच नहीं अपनाते।

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