आधुनिकता की चकाचौंध में घरों से गायब हो रहे मिट्टी के दीपक

in #festival2 years ago

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झाँसी। आधुनिकता की चकाचौंध में सदियों पुरानी परम्पराओं को बुंदेलखण्ड वासी धीरे-धीरे छोड़ते चले जा रहे है। लोगो ने पश्चिमी सभ्यता को अपनाना शुरू कर दिया है। दीपावली पर्व आते ही कुम्हार जाति के लोगो के चेहरे खुद ब खुद खिलने लगते थे और कुम्हारों द्वारा बनाये जाने वाले दीपों को लोग खरीदकर अपने अपने घरों में जलाकर छटा बिखेरा करते थे। आज बदलते परिवेश में आम जनमानस विद्युत झालरे खरीदकर घरो, की सजावट करते देखे जा सकते है। यही वजह है कि कुम्हारों का धंधा मंद्दा हो गया है और अब उनके समक्ष अपना व अपने परिवार का भरण पोषण की समस्या आ खड़ी हुई है। दीपावली त्यौहार का इंतजार खासकर कुम्हार जाति के लोगों को बेसब्री से रहता था, क्योंकि यह पर्व उनके लिये पूरी साल की भरपाई कर जाता था। कुम्हार जाति के लोगों द्वारा दीपावली पर्व से पांच माह पूर्व से ही मिट्टी को एकत्र करना प्रारम्भ कर दिया जाता था। पहले दीपावली पर्व पर मिटटी से निर्मित दीपों की बिक्री इतनी हो जाती थी कि यह लोग अपना सालाना खर्च निकाल लेते थे, लेकिन यहां विगत कुछ वर्षों से देखने में आया है कि दीपावली पर्व पर मिट्टी से निर्मित दीपों की जगह रंग बिरंगी विद्युत झालरों ने ले ली है। अब दीपावली पर्व पर जलने वाले दीपक मात्र सगुन बनकर रह गये है। इस बदलते परिवेश में कुछ लोग मोमबत्तियों को जलाकर दीपावली पर्व मनाने की रस्म निभा रहे है। आधुनिकता की मार सिर्फ मुम्हारों को ही नही, बल्कि उन्हें भी पड़ रही है जो लोग दीपावली पर्व पर लक्ष्मी गणेश की प्रतिमायें बनाकर भारी भरकम राशि कमा लेते थे। आज इन मूर्तियों की जगह प्लास्टिक एवं अन्य धातुओं की मूर्तियों ने ले ली है। दीपावली पर्व पर नगर के प्रमुख चौराहों, प्रत्येक गलियों में कुम्हारों द्वारा निर्मित दीपों की बिक्री जमकर हुआ करती थी और कुम्हार भी अपने धंधे से संतुष्ट दिखाई दिया करता था, लेकिन इधर पिछले कुछ वर्षों से कुम्हार अपनी किस्मत पर आंसू बहाता दिखाई दे पड़ रहा है। आज की युवा पीढी दीपों के महत्व को समझने की कोशिश भी नहीं करते। उन्हें शायद यह भी नहीं पता कि आखिर प्रकाश पर्व पर दीपों को क्यों जलाया जाता है। यह बिजली की चकाचौंध और रंग बिरंगी झालरों के बाजार में आने से इसके महत्व को भूलते चल रहे है। दीपावली पर्व नजदीक होने से यहां की दुकानें दिल्ली, कलकत्ता, से आने वाली डिजायनदार झालरों से भरी पड़ी है। खास बात तो यह है कि इन्हीं दुकानों के इर्द गिर्द कुम्हारों द्वारा मिट्टी निर्मित दीपक बनाकर बेंचे जा रहे है, लेकिन उन्हें ग्राहक का इंतजार है और वह हाथ पर हाथ धरे बैठे है। इस बदलते परिवेश में दीपक खरीद रहे है, जो दीपावली पर्व के महत्व को समझते है, लेकिन इनकी संख्या भी अब बहुत कम रह गयी है।