दो गांवों ने एक-दूसरे पर बरसाए पत्थरN

in #two2 years ago

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200 घायल छिंदवाड़ा के गोटमार मेले में 2 गंभीर
जानिए इस परंपरा के पीछे की अधूरी प्रेम कहानी

छिंदवाड़ा के पांढुर्णा में परंपरा के नाम पर फिर खूनी खेल खेला गया। गोटमार मेले में हुई पत्थरबाजी में इस बार करीब 200 लोग घायल हो गए। इनमें से दो की हालत गंभीर होने पर नागपुर रेफर किया गया है। परंपरा के नाम पर हुई इस पत्थरबाजी के दौरान पुलिस और प्रशासन की टीम भी मौजूद थी, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी वो पत्थर फेंकते लोगों के सामने बेबस नजर आए।
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विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेला शनिवार को मां चंडी की पूजा अर्चना के साथ शुरू हुआ। यहां सुबह 7 बजे पांढुर्णा और साबर गांव के लोगों ने मां चंडी देवी की पूजा की। इसके बाद नदी में पेड़ पर झंडा लगाया। फिर शुरू हुआ खूनी खेल गोटमार मेला । जाम नदी के दोनों ओर लोगों हुजूम उमड़ पड़ा। ढोल-बाजे के साथ दोनों गांव के लोग एक-दूसरे पर पत्थर बरसाने लगे। पत्थरबाजी में अब तक करीब 200 लोग घायल हुए हैं। इनमें से 2 की हालत गंभीर बताई जा रही है, जिन्हें नागपुर रेफर किया गया है।
पुलिस गोटमार पर प्रतिबंध लगाने के लिए लगातार लोगों को सचेत करती रहती है, लेकिन वे मानने को तैयार नहीं है। वर्षों से चली आ रही इस परंपरा में अब तक 13 लोगों की जान जा चुकी है। हजारों की संख्या लोग घायल हो चुके हैं। पोला पर्व के साथ ही पांढुर्णा में गोटमार शुक्रवार को देर शाम ही शुरू हो गया था। जिसमें कुछ लोग पत्थर मारते नजर आए। हर साल जिद और जुनून के साथ हजारों लोग इस खेल में शामिल होते हैं। ग्रामीण खुद यहां पत्थर एकत्रित करते हैं ताकि एक-दूसरे पर फेंक सके।
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अब तक जा चुकी है 13 लोगों की जान

गोटमार के दौरान अब तक हुई मौतों की जानकारी यहां के बड़े-बुजुर्ग बड़ी सहजता के साथ देते हैं। उनका आंकड़ा प्रशासनिक रिकॉर्ड के आंकड़े से काफी अधिक है। प्रशासनिक रिकॉर्ड के अनुसार वर्ष 1995 से लेकर वर्ष 2019 तक इस खूनी खेल में 13 लोग काल के गाल में समा चुके हैं। इन मृतकों के परिजन आज भी गोटमार देखकर सहम जाते हैं। इस परंपरा को निभाने में कुछ ने अपनी जिंदगी खो दी तो कईयों ने हाथ-पैर, आंख खो दिए। इन आंकड़ों के बाद भी हर साल दोगुने उमंग और उत्साह के साथ गोटमार मेले का आयोजन होता है।

इस परंपरा के पीछे है अधूरी प्रेम कहानी

पांदुर्णा और साबर गांव के बीच गोटमार की परंपरा कब शुरू हुई, इसकी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है। यहां के लोगों का दावा है कि पांदुर्णा का एक युवक साबर गांव की लड़की से प्रेम करता था। वह लड़की को भगाकर पांदुर्णा लेकर आने लगा। लेकिन रास्ते में नदी में बाढ़ थी, इस कारण दोनों नदी पार नहीं कर पाए। इसी दौरान लड़की पक्ष के लोगों को खबर लगी तो उन्होंने पथराव शुरू कर दिया, जिसके विरोध में पांदुर्णा के पक्ष ने भी पथराव कर दिया। पांदुर्णा और साबर गांव के बीच पत्थरों की बौछारों से दोनों प्रेमियों की मौत जाम नदी के बीच ही हो गई। उनकी मौत के बाद लोगों को शर्मिंदगी हुई। दोनों के शवों को उठाकर किले पर मां चंडिका के दरबार में रखा गया। पूजा-अर्चना करने के बाद अंतिम संस्कार कर दिया गया। इसी घटना की याद में मां चंडिका की पूजा कर गोटमार मेले का आयोजन किया जाता है।
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1978 और 1987 में चली थीं गोलियां

तीन सितंबर 1978 और 27 अगस्त 1987 को जिला प्रशासन ने इस मेले को बंद करने का प्रयास किया। मेले में पत्थरबाजी कर रहे लोगों को हटाने के लिए पहले लाठी चार्ज किया गया और आंसू गैस के गोले भी छोड़े। इन प्रयासों की वजह से ग्रामीण भड़क गए और पुलिस पर हमला कर दिया, जिसके बाद पुलिस को गोली भी चलानी पड़ी। इस दौरान ब्राम्हणी वार्ड के देवराव सरकड़े और जाटवा वार्ड के कोठीराम संभारे की आंख में गोली लगी, जिससे उनकी मौत हो गई। इसके बाद पांदुर्णा में कर्फ्यू लगाना पड़ा था।

ना गेंद मंजूर की, ना सांकेतिक गोटमार

हर साल प्रशासन और पुलिस एक सप्ताह पहले से गोटमार की तैयारी में जुट जाती है। प्रयास होते हैं कि गोटमार को सांकेतिक रूप से मनाया जाए। पिछले साल कोविड काल के बाद भी उत्साही युवकों ने गोटमार खेला, हालांकि ये बात अलग रही कि वक्त से पहले नदी में लगा झंडा उतारकर खेल को विराम दे दिया गया। वर्ष 2001 में कलेक्टर ने पत्थर हटवाकर प्लास्टिक की गेंद भी डलवा दी, लेकिन इसके बाद भी खेल हुआ। हर बार रोकने के प्रयास में खेल के साथ जमकर उत्पात भी हुआ।

1955 से शुरू हुआ मौत का सिलसिला

गोटमार के दौरान मौत का सिलसिला वर्ष 1955 से शुरू हुआ था। 22 अगस्त 1955 को साबर गांव के महादेव संभारे की मौत हुई थी। इसके बाद 1978 की तीन सितंबर को देवराव सरकड़े, 29 अगस्त 1979 को लक्ष्मण तायवाड़े को अपनी जान गवानी पड़ी। इसके बाद कोठीराम संभारे, विठ्ठल तायवाडे, योगीराज चौरे, गोपाल चन्ने, सुधाकर हापसे, रवि गाठकी, जनार्धन संभारे, गजानन घुपुसकर और देवानंद बघाले अभी तक अपनी जान गवां चुके हैं। बड़ी बात तो ये है कि सिर्फ संभारे परिवार के तीन सदस्य अब तक इस खूनी खेल में अपनी जान गवां चुके हैं।

प्रशासन ने लागू की धारा-144

कलेक्टर सौरभ कुमार सुमन द्वारा पांदुर्णा में गोटमार मेले के दौरान शांति-व्यवस्था बनाए रखने के लिए धारा 144 लागू की गई है। जिले के पांदुर्णा में 26 अगस्त की प्रातः 8 बजे से 28 अगस्त को प्रातः 8 बजे तक के लिए प्रतिबंधात्मक आदेश जारी किए गए हैं। इसके तहत हथियारों के प्रदर्शन, पत्थर और गोफन चलाना प्रतिबंधित किया गया है। इसी प्रकार ग्राम सांवरगांव और पर्णा के बीच मेला स्थल के दोनों ओर के 500 मीटर के दायरे में पांदुर्णा और सांवरगांव क्षेत्र के अम्बेडकर वार्ड, भवानी वार्ड, अम्बा वार्ड, सुभाष वार्ड, राधाकृष्ण वार्ड व हनुमंती वार्ड में निषेधाज्ञा लागू की गई है।