40 साल बाद बंद करना होगा परमाणु ऊर्जा संयत्र परियोजना

in #nuclear16 days ago
  • 40 साल बाद बंद करना होगा परमाणु ऊर्जा संयत्र परियोजना
  • उत्पादित बिजली मिलेगी महंगी, पहले से ही करोड़ो के कर्ज में डूबी है बिजली कंपनी
  • चुटका परमाणु निर्माण के सवालों पर व्यापक विचार विमर्श की जरूरत

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मंडला:- नर्मदा घाटी के फॉल्ट जोन और इंडियन प्लेट्स के लगातार मूवमेंट के कारण बीते तीन साल में नर्मदा और सोन नदी घाटी के जिलों में धरती के नीचे 37 बार भूकंप आ चुका है। नर्मदा घाटी में प्रस्तावित चुटका परमाणु संयंत्र के निर्माण में भी भारी तीव्रता का विस्फोट किया जाएगा। जिसके कारण भूगर्भीय हलचल होगी। आपदा प्रबंधन संस्थान भोपाल की एक रिपोर्ट के अनुसार मंडला जिले की टिकरिया नारायणगंज भूकंप संवेदी क्षेत्रों की सूची में दर्शाया गया है।
इन्हींं सब बातों को लेकर चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति के दादु लाल कुङापे और मीरा बाई मरावी तथा बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ के राज कुमार सिन्हा ने संयुक्त बयान जारी करते हुए कहा है कि चुटका परमाणु संयत्र निर्माण में तेजी लाने की खबर से क्षेत्र में हलचल शुरू हो गई है। परियोजना को लेकर संगठन और विशेषज्ञों द्वारा उठाये गये सवालों का जबाब अभी तक नहीं मिला है।

जानकारी अनुसार वर्ष 1997 में नर्मदा किनारे के इस क्षेत्र में 6.4 रेक्टर स्केल का विनाशकारी भूकंप आ चुका है। यदि दुर्घटना होती है तो आसपास के दर्जनों आदिवासी बाहुल्य गांव की आबादी को तत्काल क्षेत्र खाली कराने की क्या योजना है। परियोजना से आस्था की नदी नर्मदा के जैव विविधता, जलीय जीव और पानी की गुणवत्ता पर पडऩे वाले असर को कैसे संतुलित किया जाएगा। बताया गया कि परमाणु परियोजना को सघन सुरक्षा दायरे में रखा जाता है। इसलिए इसके बड़े दायरे में किसी का भी आना जाना प्रतिबंधित रहेगा। इस स्थिति में बरगी जलाशय से मत्स्याखेट और डूब से खुलने वाली भूमि पर खेती कर आजीविका चलाने वाले परिवारों को रोजगार देने की क्या योजना है? क्योंकि चुटका को छोड़कर कुंडा और टाटीघाट की आधी आबादी और आसपास के दर्जनों गांव को वहीं निवास करेंगे। जिसमें नर्मदा उस पार सिवनी जिले का विस्थापित गांव भी शामिल है।

बरगी बांध से उजडऩे के बाद विस्थापित परिवार आसपास के जंगलों और सरकारी भूमि पर खेती व बसाहट कर अपनी आजीविका चला रहा है। बहुत से ऐसे परिवार हैं जिसे उक्त भूमि का अधिकार पत्र नहीं मिलने से मुआवजा नहीं मिला है या अन्यत्र कोई जमीन के बदले जमीन देने की योजना भी नहीं है। परियोजना के लिए अधिग्रहित जमीन का मुआवजा 3.83 लाख रुपये हेक्टेयर की दर से दिया गया है जो वर्तमान दौर में नगण्य है। इसके साथ ही परमाणु बिजली बनाने वाली इस परियोजना की वर्तमान लागत 21 हजार करोड़ रुपये है। 40 साल बाद इस परियोजना को बंद करना होता है। जिसमें स्थापना खर्च के लागत के बराबर खर्च आता है। सभी खर्चे को जोड़ लिया जाए तो 1 मेगावाट बिजली उत्पादन की लागत 20 करोड़ रुपये आती है, जो अन्य बिजली उत्पादन के तरीके से काफी महंगी है। इसका मतलब यह है कि उत्पादित बिजली महंगी दर पर मिलेगी। इस संयत्र से उत्पादित बिजली का 50 प्रतिशत हिस्सा मध्यप्रदेश सरकार को खरीदना है।

अभी तक मध्यप्रदेश विधुत मेनेजमेंट कम्पनी और न्यूक्लियर पावर कार्पोरेशन आफ इंडिया के बीच बिजली खरीदी अनुबंध नहीं हुआ है। प्रदेश की बिजली कम्पनी लगभग 37 हजार करोड़ के घाटे और 50 हजार करोड़ रुपये के कर्ज में डूबा हुआ है। इसलिए प्रत्येक साल विधुत कम्पनी घाटे का हवाला देकर विधुत नियामक आयोग से बिजली दर बढ़ाते रहती है। जिससे प्रदेश की 1.50 करोड़ बिजली उपभोक्ता बिजली बिल भरने को लेकर परेशान है। अगर विधुत कम्पनी मंहगी बिजली खरीदी अनुबंध करेगी तो उसका बोझ भी आम उपभोक्ताओं को ही उठाना होगा। चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति ने मांग की है कि चुटका सयंत्र से उत्पादित बिजली का दर सार्वजनिक किया जाए, स्थानीय प्रभावित होने वाले आदिवासी समुदायों की चिंताओं को केन्द्र में रखा जाए और इस परियोजना के खतरों पर नागरिक समाज के बीच व्यापक विमर्श किया जाए।