ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई से भूमि की बढ़ती है जल धारण क्षमता

संत कबीर नगर । मई एवं जून माह में खेतों की ग्रीष्मकालीन जुताई करना आवश्यक होता है । इससे भूमि की संरचना में सुधार होता है और भूमि की जल धारण की क्षमता बढ़ जाती है । खरीफ की फसल के लिए धान की नर्सरी डालने से पहले बीज शोधन एवं भूमि शोधन किया जाना भी जरूरी है ।
जिलाधिकारी दिव्या मित्तल के निर्देश के क्रम में जिला कृषि रक्षा अधिकारी पी.सी. विश्वकर्मा ने बताया कि ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई माह मई-जून में करना आवश्यक होता है । इससे मृदा में उपस्थित कीट पतंगे एवं अपरिपक्व अवस्था तथा खर पतवार भी नष्ट हो जाते हैं । जिससे बुवाई की लागत में कमी एव॔ उत्पादन में वृद्धि होती है ।

जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने किसानों को बताया कि खरीफ में धान की नर्सरी डालने से पूर्व बीज शोधन एवं भूमि शोधन अवश्य कर लेना चाहिए । इसके लिये जीवाणु झुलसा एवं जीवाणुधारी रोग तथा फाल्स स्मट रोग के नियंत्रण हेतु 25 किग्रा बीज के लिये 4 ग्राम स्ट्रेप्टोसाक्लिन या 40 ग्राम प्लान्टोमाइसीन अथवा 75 ग्राम थीरम या 50 ग्राम कार्बेण्डाजिम 50 प्रति डब्लूपी को 8-10 लीटर पानी में भिगोकर दूसरे दिन छाया में सुखाकर नर्सरी डालना चाहिए । बीज शोधन हेतु ट्राइकोडर्मा की 100 ग्राम मात्रा 25 किग्रा बीज की दर से प्रयोग किया जा सकता है । उन्होंने बताया कि भूमि शोधन की प्रक्रिया हेतु भूमि जनित कीट रोगों के नियंत्रण हेतु ट्राइकोडर्मा एवं ब्यूबैरिया वैसियाना बायोपेस्टीसाइड की 2.5 से 3 किग्रा मात्रा अथवा क्लोरोपाइरीफास 20 प्रति ई.सी. 2.5 से 3 लीटर मात्र प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए । इससे बीज एवं भूमि जनित रोगों से बचाव होता है और बीज का जमाव प्ररतिशत भी बढ़ जाता है । जिला कृषि अधिकारी ने कहा कि फसल में लगने वाले रोग तथा कीट का विवरण सहभागी फसल निगरानी एवं निदान प्रणाली (पीसीएसआरएस) के नम्बर 9452257111, 9452247111 पर व्हाट्सएप करें । जिसका 24 से 48 घण्टे में निदान किया जाएगा ।IMG_20220527_065428.jpg

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