ऐतिहासिक धरोहरों का कोई नही पूछने वाला*

in #bilgram2 years ago

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बिलग्राम हरदोई।। बिलग्राम के इतिहास में जहां बहुत महत्वपूर्ण बातों का वर्णन मिलता है वहीं सहजन कुआं बिलग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। सहजन बिलग्राम में एक छोटा सा मोहल्ला है जो एक बड़े मोहल्ले कासुपेट से संलग्न है। ईस कुएं के बारे में विभिन्न प्रकार की बातों के लिए मशहूर है।
कहा जाता है कि बिलग्राम के प्रसिद्ध कलावंत और गायक मीर मधनायक इसी कुएं का पानी पीकर कुशल गायक एवम अद्वितीय कलावंत हुए।सहजन कुएं का पानी पीने के बाद अपनी काव्य के माध्यम से उन्होने इस कुएं की प्रशंसा की।
'अति पवित्र जल गंग सम,मान सरोवर रूप।
तीरथ है खठ दरस को,कूप ताड़ग अनूप।।
बिलग्राम के मुसलमान हिंदी कवि में मधनायक सिंगार से सहजन कुएं से संबंधित बिलग्राम में बहुत आए किस्से मशहूर हैं।होश बिलग्रामी ने अपनी किताब "उरूसे अदब" में एक किस्सा यूं लिखा है।
बिलग्राम में मैन बड़े व बूढ़ों से सुना है और यह बात सीना ब सीना चलती आ रही है और करीना संभावनाएं इसे नही झुठलाता। तानसेन के कानों में जब मधनायक कि सुरीली औरर पाटदार आवाज़ें पहुंचने लगीं तो उनको इस कदर प्रभावित किया कि ग्वालियर से पैदल सफर किया तमाम तरह का कष्ट बर्दाश्त कर के जब बिलग्राम की सर ज़मीन पर कदम रखा और सहजन कुएं के करीब दम लेने और पानी पीने के लिए ठहरा तो देखता कि कुएँ पर मर्द और औरतें पानी भर रहे हैं उसमें से एक औरत ने कुएं के अंदर घड़े को जब डाला तो वो घड़ा धीरे धीरे डूबकर अपनी खाकी जिस्म को सैराब करने लगा और डूबने के वक़्त जो बुदक बुदक कि एक बेइख़्तियार आवाज़ उस घड़े से पैदा हुई तो उस औरत की इस वजह से नागवार गुजरी की बेवक्त का राग अलापता है और यह कहकर उसे तोड़ डालती है। यह आवाज़ तानसेन के कानों में पड़ती है वो हैरान होकर पूछता है तो मधनायक के घर नौकरानी बताती है।तनसेंकी हैरत की कोई इन्तहा नही रहती है बतो वो दिल में जिसके यहां की नौकरानी इस कदर संगीत को जानने वाली हो तो खुद उसका मालिक यानी मधनायक कि महारत की यौगिता का क्या आलम होगा जिससे में प्रभावित होकर इतनी दूर आया हूं।कनीज़ अपनी उंगलियों की हरकत और रस्सी के सहारे से उस घड़े में संगीत की मधुर ध्वनि पैदा करना चाहती थी।इत्तेफाक़ से वो दिलकशी कर्कशता बदल गयी।
तानसेन ने निश्चय किया कि मधनायक से मिलने की आरज़ू लिए वापस चला जाऊं चुनाचे उल्टे पांव वापस होता है।मधनायक को इत्तला दी जाती है वो आने महमान को इस तरह वापस जाते सुनकर बेताब हो जाता है और खुद ले जाकर ले आता है।
इस संबंध में डॉ शैलेश जैदी अपनी पुस्तक बिलग्राम के मुसलमान हिंदी कवि में लिखते हैं। होश बिलग्रामी द्वारा दी गयी कथा जन शतियों में सत्य का अंश हित है किंतु साथ ही नमक मिर्च का समावेश भी पाया जाता है।अकबरनामा में स्पष्ट रूप से मिलता है है कि तानसेन की मृत्यु 26 अप्रेल सन 1589 में हुई थी।उस समय तक तो मधनायक का जन्म भी नही हुआ था।संभव है की मधनायक के समय तक तो मधनायक का जन्म भी नही हुआ था सम्भव है मधनायक के समय का कोई प्रसिद्ध कलावंत उनसे मिलने आया रहा हो औ यह घटना घटी हो।आगे चलकर इसका संबंध सीधे तानसेन से जोड़ दिया गया हो
:::::: बिलग्राम के मुसलमान हिंदी कवि डॉ0 शैलेश ने उसकी प्रशंसा गीत लिखे। खैराबाद के मोहल्ला माखुरपुर के फारसी के कवि बसई राम "आक़िफ़" ने सहजन कुएं की प्रशंसा में एक कविता फारसी भाषा में लिखी थी।जिसका हिंदी अनुवाद यह है।

:::: यह कुंआ हसीनों को सरक्षण देता है और आशिकों को आराम पहुंचाता है इस कुएं का पानी जमजम और कौसर के पानी के समान है इस कुएं ने नक्शब का चांद बाहर निकलता है।स कुएं से मिस्र के यूसुफ बरामद होता है बिलग्राम कब इस हसीन कुएं से अपना मतलब पाते हैं आशिकों के लिए यह कुआं किसी चमन से कम नही जो उनके दामन को उम्मीदों और आरजुओं के फूलों से भर देता है। इस कुएं पर आशिकों के वादे पूरे होते हैं यह कुआं दिलबरों के लिए एक फ़ैज़ की जगह है। इलाही यह कुआं हमेशा आबाद रहे और हर बिलग्रामी इस कुएं से एक चहतबकी राह पाता हैं।
इसके अतिरिक्त कुछ ऐतिहासिक किताबों में सहजन कुएं का वर्णन मिलता है। जैसे; भरतीय इतिहास से संबंधित एक फारसी पुस्तक का "आराइशे महफ़िल" में लिखा है कि बिलग्राम में एक कुंआ है जो 40 दिन तक रोज़ उसका पानी पिये उसकी आवाज़ सुरीली हो जाती है।
आईने अकबरी में लिखा है बिलग्राम में एक कुंआ है जो40 रोज़ तक इसका पानी पिये वो ख़ुशगुलु हो जाता है।