अर्चना चतुर्वेदी का व्यंग्य “डिजिटल वीर”

in #wortheum2 years ago

: इस डिजिटल क्रांति युग में जिस तरह वर्क फ्रॉम होम की शानदार सुविधा तो शुरू हुई ही है, आजकल इंसान लड़ाइयां भी क्लेस फ्रॉम होम की तर्ज पर ही निपटाने में विश्वास करते हैं. वे जमाने गए जब लोग गलियों और सड़कों पर लठ लेकर लड़ते थे. औरतें आंगन और नल पर एक दूसरे के बाल खींचती थीं. बीच-बचाव कराने वाले की भी स्पेशल भूमिका होती थी.

आजकल बड़ा सिम्पल है लड़ना…घर बैठकर फेसबुक और वॉट्सऐप से ही बड़ी-बड़ी लड़ाइयां लड़ी जा रही हैं. डिजिटल लट्ठ से लेकर बंदूकें तक चल जाती हैं. स्वार्थ और निजी आराम को तवज्जो देते लोगों के खून का टेंपरेचर माइनस से नीचे पर चल रहा है.

कितनी भी बड़ी मुसीबत आए खून में उबाल आना नामुमकिन हो चुका है. बहुत असहनीय मुद्दा हो तो भी इन वीरों का खून हल्का गुनगुना ही हो पाता है. एडवांस टैक्नोलॉजी का पदार्पण के साथ गलियों में और मुहल्लों में होने वाला मनोरंजन बैडरूम तक जा पहुंचा. सो आज का इंसान बिस्तर पर पड़े-पड़े ही एके-47 चला कर दुश्मन को ढेर कर देता है.90D5DF50-8AE8-4C76-B0B7-263E28D614DD.jpeg