संभल के विलालपत शरीफ में अकीदत के साथ निकाला गया मोहर्रम का जुलूस
लोकेशन संभल
WORTHEUM NEWS
संभल! कोरोना काल के 2 साल बाद संभल के असमोली थाना क्षेत्र विलालपत शरीफ में मोहर्रम का जुलूस अकीदत के साथ निकाला गया जिसमें काफी संख्या में भीड़ जुटी रही मंगलवार को विलालपत शरीफ में जुलूस निकाला गया विलालपत शरीफ में चौक वाली मस्जिद से अशरा मोहर्रम का जुलूस प्रारंभ हुआ जो की विलालपत के विभिन्न 8 गांवों से आने वाले ताज़ियों के साथ कर्बला में संपन्न हुआ इसमें काफी संख्या में महिला पुरुष शामिल हुए जुलूस में सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद रही अमन सांति के साथ जुलूस के साथ कर्बला में ताज़ियों को दफनाया गया पुलिस के जवान पूरी तरह तैनात रहे
क्यों मनाया जाता है मुहर्रम?
वी/ओ इस्लाम धर्म की मान्यता के मुताबिक, हजरत इमाम हुसैन अपने 72 साथियों के साथ मोहर्रम माह के 10वें दिन कर्बला के मैदान में शहीद हो गए थे। उनकी शहादत और कुर्बानी के तौर पर इस दिन को याद किया जाता है। कहा जाता है कि इराक में यजीद नाम का जालिम बादशाह था, जो इंसानियत का दुश्मन था। यजीद को अल्लाह पर विश्वास नहीं था। यजीद चाहता था कि हजरत इमाम हुसैन भी उनके खेमे में शामिल हो जाएं। हालांकि इमाम साहब को यह मंजूर न था। उन्होंने बादशाह यजीद के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया। इस जंग में वह अपने बेटे, घरवाले और अन्य साथियों के साथ शहीद हो गए।
आशूरा मोहर्रम का ऐतिहासिक महत्व
पैगंबर हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत मुहर्रम के 10वें दिन यानि आशूरा को हुई थी. करीब 1400 साल पहले इस्लाम की रक्षा के लिए हजरत इमाम हुसैन ने अपने परिवार और 72 साथियों के साथ शहादत दे दी थी. हजरत इमाम हुसैन और यजीद की सेना के बीच यह जंग इराक के शहर कर्बला में हुई थी.
उन ताजियों को कर्बला की जंग के शहीदों का प्रतीक माना जाता है. जुलूस का प्रारंभ इमामबाड़े से होता है और समापन कर्बला पर होता है. वहां पर सभी ताजिए दफन कर दिए जाते हैं.
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