जब स्टॉक मार्केट के बादशाह ने अपने घोटाले से पूरे देश को हिला डाला था, पढ़िए पूरा किस्सा

in #stock2 years ago

एक जमाने में हर्षद मेहता मशहूर स्टॉक ब्रोकर हुआ करता था और लोग बड़ी इज्जत के साथ उसका नाम लेते थे। लेकिन जब घोटाले का धब्बा लगा तो हर्षद मेहता जैसे मशहूर नाम को बदनाम होने में भी ज्यादा वक्त नहीं लगा।

Harshad Mehta, share market scam 1992, Harshad Mehta scam 1992
तस्वीर का इस्तेमाल प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है।
देश में 80-90 के दशक के दौरान एक शख्स ने भारतीय शेयर बाजार को अपनी उंगलियों पर नचाना शुरू किया। स्टॉक मार्केट में निवेश करने वाले लोग उसे अपना मसीहा मान बैठे लेकिन उसी शख्स ने लोगों को बर्बादी की कगार पर पहुंचा दिया। इस शख्स का नाम हर्षद मेहता था, जिसने उस वक्त देश के सबसे बड़े घोटाले से पूरे देश को सन्न कर दिया था। उस पर करीब 5 हजार करोड़ रुपयों के गबन का आरोप लगा था।

गुजरात के राजकोट में साल 1954 में जन्मा हर्षद मेहता छोटे-मोटे कारोबारी खानदान से था। बचपन मुंबई के कांदिवली में बीता और फिर बड़े होकर बी.कॉम की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद आठ साल कई छोटी-मोटी नौकरियां की। थोड़े दिनों में उसकी उत्सुकता शेयर बाजार की ओर हुई तो एक ब्रोक्रेज फर्म में बतौर जॉबर नौकरी शुरू की। यहीं पर उसने प्रसन्न परिजीवनदास को गुरु मानकर शेयर बाजार के सारे दांव-पेंच सीखे।

इसके बाद साल 1984 में हर्षद मेहता ने अपनी कंपनी खोली, जिसका नाम ग्रो मोर एंड असेट मैनेजमेंट रखा। फिर वह बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में ब्रोकर बन गया और कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। यही हर्षद मेहता आगे चलकर शेयर बाजार का अमिताभ बच्चन कहलाया। 1990 आते-आते हर्षद मेहता की कंपनी ग्रो मोर में कई लोगों ने निवेश किया लेकिन उसके सितारे तब बदले जब उसने एसीसी (सीमेंट कंपनी) में पैसा लगाया।b782884ffcb1cde5d5da8baadfa4fcd6a036df6bbef7866aeb47db48d5c0196c.0.JPG

जहां कभी एसीसी का एक शेयर 200 रुपये के भाव में था, तीन महीने में ही उसकी कीमत नौ हजार के करीब पहुंच गई। दूसरे निवेशक हर्षद की राय पर कंपनियों में पैसा डालने लगे। कुछ ही सालों में ब्रोकर हर्षद की इमेज बिजनेस टाइकून में बदल गई और वह करोड़ों कमाने लगा। इन सबके बीच एक सवाल था कि आखिर वह इतने कम समय में इतना पैसा कैसे कमा रहा था। साल 1992 आया और नामी पत्रकार सुचेता दलाल ने हर्षद मेहता के कारोबार के बारे में भंडाफोड़ कर दिया।

सुचेता के मुताबिक, हर्षद पहले बैंक रसीद (बीआर) बनवाता और बैंक से पैसा उठाकर शेयर मार्केट में डाल देता। जब उसे दूसरे शेयर से मुनाफा होता तो बैंकों को पैसा लौटा देता था। इसके अलावा उसने कई सारी तकनीकी खामियों का फायदा उठाकर बैंकों की जमा पूंजी शेयर बाजार में लगा दी, इस पूरी प्रक्रिया में कुछ बैंक कर्मचारियों की भी मिलीभगत थी। जब खुलासा हुआ तो सभी बैंकों ने हर्षद से पैसा वापस मांग लिया और शेयर मार्केट बुरी तरह टूट गया।

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कई सारे बैंकों से ली गई भारी रकम तय समय पर वापस नहीं हो पाई तो कई सारे वित्तीय हेर-फेर के मुकदमें दर्ज हुए। इसी बीच हर्षद ने अखबार में कॉलम लिखना शुरू किया और फाइनेंस सलाहकार बन गया। पता चला कि वह लोगों को उन्ही कंपनियों में पैसा लगाने के लिए कहता जिनमें उसका पैसा लगा होता था।

इस मामले में मोड़ तब आया जब साल 1993 में उसने प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव को 1 करोड़ की घूस देने का आरोप लगाया। हालांकि, इस पूरे मसले को सरकार और बाद में सीबीआई जांच ने भी सिरे से नकार दिया। इसके बाद उसे एक केस में सुप्रीम कोर्ट ने 5 साल की सजा सुनाई और 25 हजार का जुर्माना लगाया। थाणे जेल में बंद हर्षद मेहता को 31 दिसंबर, 2001 को अचानक सीने में दर्द उठा और जब उसे सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया तो वहां उसकी मौत हो गई।