भेद भाव नहीं भेद विज्ञान करना सीखें--आर्यिका रत्न श्रीआदर्श मति माताजी

in #mp2 years ago

सेमिनार में हों रहा है वर्गीकरण
अशोक नगर--एक राजा हाथी पर वैठ कर नगर भ्रमण के लिए निकला रास्ते में एक लकड़हारा राजा से कहता है कि क्यों वे राजा हाथी वेचेगा इसपर राजा ने लकड़हारे को जेल भिजवा दिया सुबह राज दरबार में लकड़हारे से राजा ने कहा कि क्यों हाथी खरीदेगा तो वह लकड़हारा राजा का वहुत सम्मान करते हुए कहता है कि हे राजन मुझ गरीब की क्या औकात जो हमारे राजा सहाब के हाथी की तरफ आंख उठाकर देखें ये तो राजा सहाब की शौभा वड़ाने वाला है तव मंत्री कहते हैं कि राजन कल ये नहीं इसका नशा वोल रहा था व्यक्ति नशें में चूर हो कर सब भूल जाता है इसी प्रकार आचार्य कहते हैं कि मोह के नशें में चूर व्यक्ति अपने पराये को भी नहीं छोड़ता यहां मोह के कारण ज्ञान ढक गया है उक्त आशय के उद्गार सुभाष गंज में प्रतिभा स्थली वर्गीकरण सेमिनार को संबोधित करते हुए आर्यिकारत्न श्रीआदर्श मति माताजी ने व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि संसारी जीव के लिए यह कहां है मोह के कारण हमारा ज्ञान भ्रमित हो गया है आज से नहीं अनादि काल से अनंत काल से मोह के नशे के कारण हम संकल्प विकल्पों में पड़े हैं अज्ञान के कारण कल्पना परिकल्पना में डूब कर संकल्प विकल्प करते रहते हैं एक पल के लिए भी सुख नहीं मिलता फिर भी यह मेरा है यह तेरा है इसी में उलझा रहता है जिसका मोह संयम की चरित्र की खटाई से कम हुआ है वह इससे बच जाता है जो इसमें उलझा है वह उलझता ही चला जाता है यह संयोग संबंध नहीं है यह संश्लेषण है जैसे केले के छिलकों को निकाल कर अलग कर सकते हैं लेकिन कर्म को आत्मा से अलग नहीं कर सकते यह तो वैसी प्रक्रिया है जैसे स्वर्ण पाषाण से सोने को एक विशेष प्रक्रिया के माध्यम से पृथक कर देता है उसी तरह वस्तु स्वरूप को जानकर वेद विज्ञान के द्वारा कर्मों से वचा जा सकता है ।
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भेदभाव तो हर घर में चल रहा है भेद विज्ञान करें
उन्होंने कहा कि भेदभाव तो हर घर में हर परिवार में हर दिल में चल रहा है एक बच्चा दूसरे बच्चे को मां की गोद में देख नहीं सकता एक ही मां के है दोनों वच्चे फिर भी दूसरे बच्चे को मां की गोद में नहीं देख सकता वह अभी बहुत छोटा है अभी उसे संसार के विषय में कुछ भी पता नहीं है फिर भी फिर भेद कर रहा है भेदभाव सारे इसी मोहे के इर्द-गिर्द घूमते रहते हैं जो नहीं है और जो हो नहीं सकता उसके लिए भी उसके लिए भी यह व्यक्ति अथक प्रयास कर रहा है मतलब थकता नहीं है थकता है तो भी थकान महसूस नहीं होती थोड़ी थकान लगती है तो भी वह आराम नहीं करता आचार्य श्री आचार्य श्री कहते हैं कि संसारी प्राणी को क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए इसका विचार करना चाहिए और छोड़ने योग्य वस्तु को का त्याग करना चाहिए।IMG-20220521-WA0007.jpg