बुलंदशहर: देश के लिए कांवड़ लाए परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र यादव

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बुलंदशहर, जागरण संवाददाता। कारगिल युद्ध के हीरो परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र यादव अपने दोनों पुत्रों व भतीजे के साथ हरिद्वार से कांवड़ लेकर आए है। योगेंद्र यादव ने बताया कि उनकी यह कांवड़ देश के लिए समर्पित है।वह मंगलवार को अपने पैतृक गांव में स्थित मंदिर में जलाभिषेक करेंगे।

सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद कांवड़ लाए

गुलावठी ब्लाक के गांव औरंगाबाद अहीर निवासी योगेंद्र यादव दिसंबर 2021 में सेना से आनरेरी कैप्टन से सेवानिवृत्त हुए। कारगिल युद्ध में योगेंद्र की बहादुरी को देखते हुए उन्हें सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया जा चुका है। योगेंद्र यादव ने बताया कि उन्होंने सेना में रहकर 25 वर्ष राष्ट्र की सेवा की है। राष्ट्र सेवा के दौरान राष्ट्र व भगवान भोले नाथ ने भी उन्हें बहुत कुछ दिया है। इसलिए इस बार यानी 25 वर्ष बाद वे अपने दोनों पुत्र प्रशांत यादव व विशांत यादव तथा भतीजे योगेश यादव के साथ कांवड़ यात्रा पर निकले। 21 जुलाई को हरिद्वार से कांवड़ में गंगाजल लेकर वह पैतृक गांव की ओर चल दिए है। योगेंद्र ने बताया कि सेना में भर्ती से पहले वर्ष 1995 में कांवड़ लाए थे और अब सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद कांवड़ लाए है।

15 गोलियां लगने के बाद भी पाक सैनिकों को ढेर करते रहे योगेंद्र

गुलावठी : कारगिल युद्ध के दौरान 15 गोलियां लगने के बाद भी परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र यादव ने पाक सैनिकों को ढेर कर अपनी बहादुरी से टाइगर हिल पर तिरंगा झंडा फहराया था। योगेंद्र यादव की इस बहादुरी के लिए उन्हें को 19 साल की उम्र में सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा गया ।गुलावठी ब्लाक के गांव औरंगाबाद अहीर निवासी फौजी परिवार में जन्मे योगेंद्र यादव 1996 में सेना में भर्ती हुए। 1999 में सीमा पर कारगिल युद्ध छिड़ गया। युद्ध के दौरान योगेंद्र यादव को टाइगर हिल के तीन सबसे खास बंकरों पर कब्जा करने का टास्क दिया गया। योगेंद्र अपनी कमांडो प्लाटून के साथ आगे बढ़े। पाकिस्तानी सैनिकों ने गोलीबारी शुरू कर दी इसमें कई भारतीय जवान गंभीर रूप से जख्मी हो गए। योगेंद्र अपने सात साथियों के साथ डटे रहें। पाक सैनिक कोई भारतीय सैनिक जिंदा तो नहीं बचा देखने नीचे उतरे तो योगेंद्र की टुकड़ी ने उन पर हमला कर दिया। हमले में कुछ पाकिस्तानी सैनिक भागने में सफल रहे। इन्होंने ऊपर जाकर भारतीय सेना के बारे में अपने साथियों को बताया। वहीं भारतीय सैनिक तेजी से ऊपर की तरफ चढ़े और सुबह होते-होते टाइगर हिल की चोटी के नजदीक पहुंचने में सफल हो गए। असंभव सी लगनी वाली इस चढ़ाई के लिए उन्होंने रस्सियों का सहारा लिया। बंदूकें उनकी पीठ से बंधी हुई थीं। प्लान सफल होते दिख रहा था तभी पाकिस्तानी सेना ने अपने साथियों की सूचना की मदद से योगेंद्र की टुकड़ी को चारों तरफ़ से घेरते हुए हमला बोल दिया। योगेंद्र के सभी सैनिक शहीद गए। योगेंद्र के शरीर में भी करीब 15 गोलियां लगी थी, मगर उनकी सांसें चल रही थीं। योगेंद्र ने अपनी जेब में रखे ग्रेनेड की पिन हटाई और आगे जा रहे पाकिस्तानी सैनिकों पर फेंक दिया। जोरदार धमाके के साथ कई पाकिस्तानी सैनिकों के चीथड़े उड़ गए। इस बीच योगेंद्र ने पास में पड़ी बंदूक उठा शेष पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया। इसके बाद योगेंद्र ने टाइगर हिल पर भारतीय तिरंगा लहरा दिया।