भगवान की कृपा से बनता है भगवत चर्चा का संयोग

in #wertheum2 years ago

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संतकबीरनगर जिले के मुख्यालय के जूनियर हाईस्कूल परिसर में आयोजित श्रीराम कथा में कथावाचक प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि भगवान जब जीव पर कृपा करते हैं तो भगवत चर्चा का संयोग बनता है। भगवान कृपा करते हैं तो अपने में लगाते हैं। धरती पर तीन प्रकार के पुरुष हैं, उत्तम, मध्यम और निम्न। निम्न पुरुष समस्या आएगी ऐसा विचार करके कोई कार्य प्रारम्भ ही नहीं करता। मध्यम पुरुष काम प्रारम्भ तो कर देता है, लेकिन जैसे समस्या आती है वैसे ही मध्य में छोड़ देता है। समस्या आ रही है, इसका अर्थ है कि कार्य की सफलता अवश्य होगी, लगे रहो। समस्याएं बताती हैं कि ठीक रास्ते पर जा रहे हैं। समस्या और सफलता का शरीर और वस्त्र का संबंध है। बधाओं के बार-बार भी आने पर उत्तम पुरुष जब तक कार्य को पूर्ण नहीं कर लेता तब तक रुकता नहीं है।
उन्होंने कहा कि कार्य प्रारंभ कर दो तो रुको नहीं। कार्य सात्विक हो, झूठ का काम नहीं, झमेले का काम नहीं होना चाहिए। बाबा तामेश्वरनाथ की धरती पर वर्षों बाद कथा कहने का संयोग मिला है। जीवन की पहली कथा भी हमने तामेश्वरनाथ में वर्ष 1992 में पुरुषोत्तम मास के महीने में की थी। मंगला चरण शुरू ही किए तो इतनी बरसात हुई की पांडाल ही बैठ गया था। तब से अब संयोग बना है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति, संस्था, राष्ट्र और संगठन के जीवन में एक परंपरा अनिवार्य है, उसे संस्कार कहते हैं।
उन्होंने कबीर की पंक्ति ‘और कहे सो लेखा- लेखी, कबीरा बोले आंखन देखी’ को उद्धृत करने के बाद कथा का प्रारम्भ बाल कांड के दोहा क्रमांक 30 से प्रारंभ किया। ‘शम्भू कीन्हि यह चरित्र सुहावन...।’ भगवान शिव ने श्रीराम चरित मानस की कथा को लिखा था। सबसे पहले माता पार्वती को सुनाया। शिव जी से ही ऋषिवर काग भुसुन्डि ने पाई। उनसे महर्षि याज्ञवल्क ने प्राप्त किया, उनसे ऋषिवर भारद्वाज जी ने पाया। उन्होंने कहा कि शिष्य उतना ही ग्रहण कर पाता है जितना उसके पात्र की धारण शक्ति है। गुरुतत्व मतलब विराट तत्व, विशालतम। अंधकार को भी प्रकाशमान बना देने वाले तत्व का नाम गुरु है। जीव को संसार की कथा का सहज ही स्मरण हो जाता है, लेकिन भगवान की कथा का स्मरण हो पाना ही कठिन है। हर आदमी दूसरे के बारे में सत्य कहने का अविनाशी है लेकिन अपने बारे में नहीं। सत्य कहने में अच्छा लगता है, सुनने में अच्छा नहीं लगता है।
उन्होंने कहा कि इस युग का नाम कलियुग है। यह तामस प्रधान युग है। कलियुग के प्राणियों की इन्द्रियां भी अपने वश में नहीं है। कान, आंख भी अपने वश में नहीं है। आंख को जो अच्छा लगता है बार-बार देखना चाहती है। हर व्यक्ति अपना सत्य कह रहा है। साश्वत सत्य नहीं कह रहा है। अवसर भर मिल जाए मनुष्य को फिसलते देर नहीं लगती है। इस दौरान पुष्पा चतुर्वेदी, विनय चतुर्वेदी, वैभव चतुर्वेदी, विष्णु जी महाराज, गुड्डू उपाध्याय, राजेश पांडेय, विवेकानन्द वर्मा, अदिती चतुर्वेदी सहित बड़ी संख्या में भक्त मौजूद रहे।