अपने दृढ़ संकल्प और बाधाओं से लड़कर सफल बनी सुशीला
- स्व-सहायता समूह से जुड़कर महिलाएं लिख रही हैं कामयाबी की नई इबारत
मंडला. ना परिवेश समर्थन करता था और ना अच्छी पढ़ाई मिली थी, बावजूद इसके गांव की गलियों से निकलकर महिलाएं कामयाबी की इबारत लिख रही हैं। सामाजिक बंधन होने के उपरांत भी आगे बढऩे के जज्बे ने मण्डला जिले के बीजाडांडी विकासखण्ड निवासी सुशीला बरकड़े को सरस्वती आजीविका स्व-सहायता समूह से जुड़कर स्वावलंबी बनने की दिशा प्रदान की। सुशीला बताती है कि उनका जन्म गरीब आदिवासी परिवार में हुआ था। परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण मैं अपनी पढ़ाई सिर्फ 10वी कक्षा तक ही कर पाई। मेरा विवाह जमुनिया निवासी विजय वरकड़े के साथ हुआ था, जो कि एक गरीब आदिवासी किसान है।
परिवार की आय का साधन सिर्फ खेती था वो भी वर्षा के पानी पर निर्भर था जिसके कारण परिवार के साल भर के भरण-पोषण में बहुत परेशानी होती थी। सुशीला के परिवार को ग्राम के समाज के द्वारा अंधविश्वास के चलते बहिस्कृत कर दिया गया था, जिस कारण भी परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब थी, छोटी-छोटी आवश्यकताओं के लिये भी वह बहुत परेशान होती थी।
सुशीला ने बताया कि वर्ष 2013 में सरस्वती स्व-सहायता समूह से जुड़ी और आपनी बचत शुरू करने लगी। फिर ग्राम में संगठन का गठन हुआ तो ग्राम संगठन में दस्तावेजीकरण कर मेरा चयन हुआ। सुशीला ने समूह से 10 हजार रुपये का ऋण लेकर सिलाई का कार्य करने लगी। साथ ही कुछ समय बाद अपना पूरा ऋण वापस भी कर दिया। सुशीला ने सीसीएल की राशि 50 हजार रूपए ऋण लेकर गांव में ही एक किराना दुकान खोली। साथ ही इसी दुकान में ही गल्ला खरीदी एवं विक्रय का कार्य शुरू किया। सुशीला बरकडे कहती है कि मैं अपने काम के प्रति पूर्णनिष्ठावान रही और पर मेरे काम में आने वाली अनेकों बाधा भी आई। आजीविका गतिविधि से जुड़कर सुशीला ने एक आटा चक्की भी गांव में लगाई जिससे उसके परिवार की मासिक आय लगभग 15 हजार रूपए हो गई।
वर्तमान में सुशीला के परिवार की स्थिति में परिवर्तन आया है एवं समाज में भी सुशीला का प्रभाव बढ़ा है। सुशीला की बेटी वर्तमान में स्नातक की पढ़ाई कर रही है। सुशीला का कहना है कि मैं अगर समूह से नहीं जुड़ी होती तो आज इस स्थिति में नहीं पहुच पाती। आजीविका मिशन से उनके परिवार की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति में जो सुधार आया है उसके लिए वह मध्यप्रदेश सरकार को धन्यवाद करती हैं।