दस महा विद्याओं का एक रूप है माता छिन्नमस्ता

in #mata2 years ago

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  • ग्राम दिवारा में है माता का दरबार, भक्तों की होती है मुरादें पूरी

मंडला . मुख्यालय से करीब 15 किलो मीटर की दूरी पर ग्राम दिवारा में महाविद्या का रूप छिन्नमस्ता का मंदिर है। ग्राम के दस्तावेजों के अनुसार लगभग 1700 ईसवीं में बिहार से निजाम शाह मंडला आए तो उनके साथ पिण्डी ग्राम के तिवारी भी आए। जिन्होंने माता की मूर्ति को बिहार शक्ति पीठ से साथ लेकर मंडला के ग्राम दिवारा पहुंचकर यहां स्थापित किया। उन तिवारियों को मंडला में ज्योतिषी की उपाधि दी गई।

माता का रूप अद्वितीय है। जिनका मस्तष्क कटा हुआ है जो स्वयं के हाथ पर है। माता के आजू बाजू उनकी सेविका जया, विजिया है। धड़ से जो तीन खून की धार निकल रही है। दो धार जया, विजिया के मुख में और एक धार माता के मुख में जा रही है। माता रति व काम देव के ऊपर खड़ी है। बताया गया कि माता का यह रूप अपनी सेविका की तृष्णा मिटाने के लिए उन्हें अपना रक्तपान कराया। माता साधकों की साधना व तंत्र विद्या में महारथ देती है।

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पूर्व में यहां बलि का विधान था। उस समय माता के सेवक भड़ीश्वर महाराज व खड़ेश्वर दत्त प्रखंड तांत्रिक थे। उनके बाद 1960 से यहां बलि प्रथा माता की आज्ञा अनुसार बंद कर दी गई। मंदिर में दूर दूर से लोग अपनी मनोकामनाएं लेकर आते है। ऐसे हजारों लोग है जिनके कार्य माता की इच्छा से ही पूरे हुए है। आज भी जो श्रृद्धालु यहां सच्चे हद्य से प्रार्थना, वंदना करता है, उसके कार्य सफलता पूर्वक होते है।
पंडित जगदीश ज्योतिषी ने बताया कि छिन्नमस्ता माता का मंदिर बिहार में शक्तिपीठ के रूप में है और दूसरा मंदिर दिवारा में है।

स्थापना के विषय में बताया गया कि जिस गांव में उत्तर दिशा में होली जलती है या दक्षिण दिशा में शमशान होता है और दो नदियों के मिलने से बीच की जगह त्रिभुजा आकार का योनि मंडल बनता है। वहीं माता की स्थापना का विधान है। यह सब योग जिले के ग्राम दिवारा में मिले। जिसके बाद यहां माता छिन्नमस्ता की स्थापना की गई। नवरात्रि में यहां जवारे बोए जाते है व कलश रखे जाते है। पूरे वर्ष भर सुबह शाम की आरती में पूरा गांव एकत्र होता है। माता के आशीर्वाद से गांव में आज तक किसी भी प्रकार की विपत्ति नहीं आई।

  • इनका कहना है

दस महा विद्याओं में देवी छिन्नमस्ता का अपना एक प्रमुख स्थान है। कबन्ध शिव की महाशक्ति छिन्नमस्ता है। सृष्टि का मूल यज्ञ-पाक हविर्यज्ञ, महायज्ञ, अतियज्ञ, शिरोयज्ञ पांच भागों में विभक्त है। स्मार्तयज्ञ, पाक यज्ञ है, इसी को गृहयज्ञ, एकाग्रि यज्ञ भी कहते है। भूतयज्ञ, मनुष्य यज्ञ, पितृ यज्ञ, देवयज्ञ और ब्रहयज्ञ यह पांच महा यज्ञ होते है। छिन्नमस्ता माता महामाया बनकर संसार की सृष्टि करती है। भुवनेश्वरी बनकर पालन करती है, वे ही शिरोयज्ञ के अभाव में छिन्नमस्ता बनकर अंत समय में संहार भी करती है।
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आचार्य संतोष महाराज, हिरदेनगर

छिन्नमस्ता माता की पूजा, उपासना विशेष रूप से की जाती है। इनकी पूजा और उपासना से दरिद्रता का नाश होता है, संतान प्राप्त होती है, वाचन शक्ति बढ़ती है, लेखन सिद्धि के लिये, वक्य सिद्धि के लिये इनकी पूजा आराधना करके माता को प्रसन्न कर मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।
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पंडित जगदीश ज्योतिषी , ग्राम दिवारा