एक जुलाई से सिंगल प्लास्टिक यूज पूर्ण रुप से बंद, इंडस्ट्री को होगा तीन हजार करोड़ का नुकसान

in #agra2 years ago

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आगरा/नई दिल्ली। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार देश के लोगों से अपील करते दिखाई देते हैं कि वह प्लास्टिक का कम से कम उपयोग करें। भारत सरकार और राज्य सरकारों द्वारा समय-समय पर कई अभियान भी चलाए गए हैं बावजूद इसके लोग हैं कि प्लास्टिक का उपयोग करने से बाज नहीं आते। अब केंद्र ने निर्णय लिया है कि सिंगल प्लास्टिक के उपयोग को पूर्ण रुप से बंद किया जाए। इसके लिए केंद्र सरकार ने पूरी रूपरेखा तैयार कर ली है सिंगल प्लास्टिक यूज को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। सिंगल यूज प्लास्टिक पर्यावरण के लिए बेहद घाटक है। ये प्लास्टिक उत्पाद लंबे समय तक पर्यावरण को हानि पहुंचाते हैं। यही वजह है कि सरकार इन पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा रही है।
एक जुलाई से सिंगल यूज यानी कि एक बार इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक पर बैन की तैयारी है। जैसे कि जूस आदि के टेट्रापैक के साथ आने वाला स्ट्रॉ. सरकार की इस योजना से कंपनियों के हाथ-पैर फूल गए हैं. उन्होंने PM मोदी से इस डेडलाइन को बढ़ाने की मांग की है. उनका तर्क है कि यदि ऐसा नहीं किया गया, तो उन्हें करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ेगा. कोका-कोला इंडिया, पेप्सिको इंडिया, पारले एग्रो, डाबर, डियाजियो और रेडिको खेतान का प्रतिनिधित्व करने वाले ग्रुप एक्शन एलायंस फॉर रिसाइक्लिंग बेवरेज कार्टन (एएआरसी) का कहना है कि इंडस्ट्री को करीब तीन हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है।

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बेवरेज कंपनियां का यह भी कहना है कि प्लास्टिक स्ट्रॉ बैन होने की सूरत में उन्हें विदेशों से स्ट्रॉ आयात करना होगा, क्योंकि भारत में पर्याप्त उत्पादन की व्यवस्था नहीं है। अमूल को प्रतिदिन लगभग 10 लाख प्लास्टिक स्ट्रॉ की जरूरत होती है, इतने बड़े पैमाने पर पेपर स्ट्रॉ देश में फ़िलहाल तैयार नहीं किया जा सकता। इसलिए कंपनी ने उत्पादन सुविधाएं विकसित करने के लिए एक साल का अतिरिक्त समय मांगा है. इसी तरह परले एग्रो ने भी सरकार से गुहार लगाई है। Frooti और Appy Fizz बनाने वाली इस कंपनी का कहना है कि छोटे पैक उसकी सेल में 40% हिस्सेदारी रखते हैं। ऐसे में सिंगल यूज प्लास्टिक बैन से उसे बड़ा नुकसान होगा।

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देश में जूस और डेयरी प्रॉडक्ट्स के छोटे पैक्स के साथ स्ट्रॉ आता है। एक अनुमान के मुताबिक, हर साल छह अरब छोटे टेट्रापैक की बिक्री होती है। देश में 10 से 30 रुपए तक की कीमत वाले जूस और डेयरी प्रॉडक्ट्स काफी लोकप्रिय हैं। कुछ कंपनियों ने पेपर स्ट्रॉ विदेशों से ऑर्डर भी किये हैं, परले एग्रो भी उसमें शामिल है। लेकिन खपत के अनुसार डिलीवरी मुश्किल है, इसलिए कंपनियों को भारी नुकसान का डर सता रहा है।

यदि सरकार एक महीने पहले अधिसूचना जारी करती, तो कंपनियों की इन दलीलों को स्वीकार जा सकता था। मगर सरकार ने सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने के लिए पिछले साल अगस्त में यह अधिसूचना जारी की थी। अधिसूचना में एक जुलाई से इस तरह के तमाम आइटमों पर पाबंदी लगाने को कहा गया था। इसके बाद केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी )ने सभी संबंधित पक्षों को एक नोटिस जारी करते हुए उन्हें 30 जून तक सिंगल यूज प्लास्टिक पर पाबंदी के लिए सारी तैयारी पूरी करने को कहा था। यानी कंपनियों के पास पूरे 10 महीने का समय था, इसके बावजूद यह सभी कंपनियां वैकल्पिक व्यवस्था करने में नाकाम रहीं या फिर उन्होंने इसे गंभीरता से नहीं लिया। ऐसे में उनकी मांग पर सरकार गौर करेगी इसकी संभावना बेहद कम है।

अमेज़न और फ्लिपकार्ट जैसी कुछ कंपनियों ने सिंगल यूज प्लास्टिक इस्तेमाल न करने की दिशा में कदम उठाए हैं. पैकेजिंग में बहुत ज्यादा प्लास्टिक और थर्माकॉल के इस्तेमाल को लेकर अमेजन की निंदा होती रही है। अब कंपनी पर्यावरण के लिए सुरक्षित पैकेजिंग सामग्री पर जोर दे रही है। तो फिर अन्य कंपनियां इस मुद्दे पर ज्यादा गंभीर क्यों नहीं हैं? इसकी मुख्य वजह है लागत। प्लास्टिक के स्ट्रॉ की जगह पेपर स्ट्रॉ इस्तेमाल करने के लिए कंपनियों को ज्यादा खर्च करना होगा. जब तक देश में पूरी व्यवस्था नहीं हो जाती, उन्हें विदेशों से इसे आयात करना होगा. इम्पोर्ट की लागत, डिलीवरी में संभावित देरी, पेपर स्ट्रॉ की शेल्फ लाइफ आदि मुद्दे कंपनियों को इस पर अमल से पीछे हटा रहे हैं।

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हालांकि, कंपनियां अपनी बढ़ी कास्ट, ग्राहक से वसूलकर अपनी लागत और मुनाफे के अंतर को काफी हद तक पाट लेंगी, लेकिन प्रोडक्ट की कीमत बढ़ने से उसकी सेल में कमी की आशंका भी बनी रहेगी, जिससे कंपनी की आय में कमी आ सकती है. परले एग्रो के अनुसार, उदाहरण के तौर पर एक प्लास्टिक स्ट्रॉ की लागत कंपनी को 15 पैसे पड़ती है, जबकि पेपर स्ट्रॉ के लिए उसे 40 पैसे देने होंगे। एक्शन एलायंस फॉर रिसाइक्लिंग बेवरेज कार्टन (AARC) का कहना है कि पेपर स्ट्रॉ आयात करने से कंपनियों की लागत बढ़ जाएगी और उन्हें अपने सस्ते लोकप्रिय पैक महंगे करने पड़ेंगे। इससे महंगाई की मार झेल रहे लोगों की मुश्किल ही बढ़ेगी।