तालाब में 7 फुट का मगरमच्छ मिलने से मचा हड़कंप , वाइल्डलाइफ, एसओएस और वन विभाग में किया रेस्क्यू

in #wildlifelast year

आगरा। वाइल्डलाइफ एसओएस और उत्तर प्रदेश वन विभाग ने संयुक्त रूप से चलाए अभियान में हाथरस के नरई गांव से 7 फुट लंबे मगरमच्छ को सफलतापूर्वक पकड़ा। मगरमच्छ स्वस्थ पाया गया, जिसे बाद में उसे उपयुक्त प्राकृतिक आवास में छोड़ दिया गया। देर रात चलाये गए रेस्क्यू ऑपरेशन में, वाइल्डलाइफ एस.ओ.एस रैपिड रिस्पांस यूनिट ने उत्तर प्रदेश वन विभाग के सहयोग से हाथरस के नरई गांव से 7 फुट लंबे मगरमच्छ को पकड़ा। गांव के तालाब में मगरमच्छ देखे जाने की सूचना प्राप्त होते ही वन विभाग और वाइल्डलाइफ एस.ओ.एस की टीम हरकत में आ गई। स्थान पर पहुंचकर, वन्यजीव संरक्षण संस्था की टीम ने तालाब के पास पिंजरा लगाया। काफी देर इंतज़ार करने के बाद मगरमच्छ पानी से बाहर निकला और पिंजरे में घुस गया। एनजीओ की पशु चिकित्सा टीम द्वारा साइट पर किए गए चिकित्सा जाँच से पता चला की उसे कोई चोट नहीं आई थी, जिसके बाद उसे उसके प्राकृतिक आवास में वापस छोड़ दिया गया।

दिलीप कुमार, वनक्षेत्राधिकारी, सिकंदराराऊ, हाथरस ने कहा, “हम मगरमच्छ को पकड़ने में त्वरित सहायता के लिए वाइल्डलाइफ एस.ओ.एस टीम को आभार व्यक्त करते हैं। सफल बचाव अभियान एनजीओ और वन विभाग की कुशल टीम के बीच असाधारण सहयोग का परिणाम है।” वाइल्डलाइफ एस.ओ.एस के सह-संस्थापक और सी.ई.ओ, कार्तिक सत्यनारायण ने कहा, “गांववासियों के समय रहते हस्तक्षेप से, जिन्होंने वन अधिकारियों को सतर्क किया, यह ऑपरेशन संभव हो पाया। हम जंगली जानवरों की सुरक्षा के प्रति सार्वजनिक जागरूकता में वृद्धि देखकर खुश हैं। सरीसृपों की रक्षा करने की तत्काल आवश्यकता है, जो अक्सर मानव-वन्यजीव संघर्ष में फंस जाते हैं।” वाइल्डलाइफ एस.ओ.एस के डायरेक्टर कंज़रवेशन प्रोजेक्ट्स, बैजूराज एम.वी ने कहा, “रात भर चलाये गए ऑपरेशन में मगरमच्छ को बचाना एक चुनौतीपूर्ण काम था। हमारी टीम ने पिंजरे की निगरानी करते समय बहुत धैर्य दिखाया। हमारी अनुभवी टीम जानती है की इन कठिन बचाव ऑपरेशन को कैसे संभालना है। मगर क्रोकोडाइल जिसे मार्श क्रोकोडाइल के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप, श्रीलंका, बर्मा, पाकिस्तान और ईरान के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं। यह आमतौर पर मीठे पानी जैसे नदी, झील, पहाड़ी झरने, तालाब और मानव निर्मित जलाशयों में पाया जाता है और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत संरक्षित है।