यूपी के गुमनाम द्रोणाचार्य ओलंपिक के लिए विश्व स्तरीय खिलाड़ी तैयार कर रहे, आगरा बन रहा क्यूबा

in #agra2 years ago

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प्रदीप कुमार रावत
आगरा। भारत में बॉक्सिंग का सफर बेहद पुराना है। ओलंपिक 1948 में बाबूलाल की जीत के साथ शुरू हुआ सफऱ अखिल कुमार के 2008 में कांस्य पदक जीत के साथ आज भी जारी है। दो एशियन गेम्स में स्वर्ण जीतने वाले हवा सिंह को नहीं भूला जा सकता।। हम आखिर बॉक्सिंग की बात क्यों कर रहे हैँ तो बता दें कि निकहत जरीन ने बॉक्सिंग में सनसनी मचा दी है।। 52 किलो भार वर्ग की वह विश्व चैंपियन बन गई हैं।। इसके बाद भारत सहित पूरी दुनियां में उनकी चर्चा हो रही है।।
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अब बात करते हैं ताज नगरी आगरा की।। आज वैश्विक पर्यटन नगरी आगरा से राष्ट्रीय खिलाड़ी ही नहीं निकल रहे बल्कि यहाँ के एथलीट्स विश्व पटल पर अपना परचम लहरा रहे हैं यह हम नहीं कह रहे यह खिलाड़ियों की सफलता बता रही है।। पिछले दो दशकों की बात करें तो आगरा के खिलाड़ी लगातार राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अपना दम दिखा रहे हैं।। आगरा के खिलाड़ियों का बढ़ता दबदबा हरियाणा के भिवानी के लिए एक चुनौती बनता दिखाई दे रहा है।। आगरा के खिलाड़ी राष्ट्रीय स्पर्धाओं में स्वर्णिम सफलता अर्जित करने के बाद रेलवे, राजस्थान पुलिस व अन्य सरकारी सेवाओं में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।।
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मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर एक गांव है, गांव का नाम है गुतिला यहां के आसपास के युवाओं में स्पोर्ट्स ,खासकर बॉक्सिंग के प्रति ऐसी दीवानगी है कि उन्होंने खेत को ही बॉक्सिंग का मैदान बना दिया। बकायदा उन्होंने खेत में अपने खर्चे पर रिंग बनाई है और इस रिंग में वह दिन रात पसीना बहाते हैं।

आगरा के रहने वाले राहुल सिंह इस बॉक्सिंग अकेडमी को चलाते है।। राहुल खुद बॉक्सिंग के बेहतरीन खिलाड़ी रहे हैं। 8 साल तक यूपी चैंपियन रहे हैं ।। राहुल सिंह लगभग 30 साल से बॉक्सिंग के क्षेत्र में हैं।। वह आगरा के पहले बॉक्सिंग कोच हैं जो नेशनल इंस्ट्रक्टर ऑफ़ स्पोर्ट्स ( NIS ) हैं।। जब उन्होंने देखा कि उनके जैसा ही जुनून आगरा के कुछ युवा बॉक्सर में हैं तो उन्होंने अपने खर्चे पर बॉक्सिंग अकादमी शुरू की।। पहले उन्होंने शहर में ही बॉक्सिंग अकादमी संचालित की लेकिन जगह ना होने की वजह से उन्होंने इस एकेडमी को आगरा से बाहर गुतला गांव में शिफ्ट कर दिया और अपने ही खर्चे पर खेत को ही खेल का मैदान बना दिया।। इस मैदान में उन्होंने बकायदा पंचिंग बैग, बॉक्सिंग रिंग, ट्रेनिंग का पूरा सामान जुटा लिया।।
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प्रशिक्षु बॉक्सिंग खिलाड़ी

वरिष्ठ खिलाड़ी आशीष गौतम बताते हैं इस वक्त उनकी एकेडमी में लगभग 30 से ज्यादा किशोर हैं, जो नियमित रूप से बॉक्सिंग के गुण सीख रहे हैं। इनमें से कई ऐसे खिलाड़ी हैं जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है,लेकिन उनका बॉक्सिंग के प्रति जुनून कभी कम नहीं होता.।राहुल गुर्जर और योगेश गुप्ता जो कि शमशाबाद और उससे भी आगे के गांव के रहने वाले हैं।। जो रोजाना साइकिल से बॉक्सिंग सीखने के लिए 25 से 30 किलोमीटर का सफ़र साइकिल से तय करते हुए यहाँ पहुँचते हैं।।

दर्जनभर से अधिक ऐसे खिलाड़ी हैं जो स्पोर्ट्स कोटे से आज सरकारी विभागों में कार्यरत हैं। इनमें से सीनियर खिलाड़ी आशीष गौतम रेलवे में कार्यरत हैं। शैली सिंह जो फिलहाल राजस्थान पुलिस में दरोगा है।मनीष राठौर जो कि जूनियर व नेशनल चैंपियनशिप खेल चुके हैं साथ ही खेलो इंडिया में एक सिल्वर एक ब्राउन मैडल अपने नाम किया है।।

जनता टीवी से बात करते हुए इन युवा खिलाड़ियों ने बताया कि उनकी तमन्ना सिर्फ यही है कि वह अपने कोच के लिए ओलंपिक में पदक अर्जित कर उनका नाम गौरवान्वित करें।। अब देखना होगा कि किस तरीके से कोच राहुल सिंह अपने प्रशिक्षुओं को ओलंपिक का सफर तय कराते हैं