TWIN TOWER 9 सेकंड में ढही भ्रष्टाचार की नींव पर टीकी इमारत ध्वस्त करने में लगे 20 करोड़ रुपये

in #twin2 years ago

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(पवन डेहरिया)
लखनादौन/ नोएडा। करीब 11 साल से खड़ी भ्रष्टाचार की गगनचुंबी इमारत आज जमींदोज हो गई. रियल स्टेट जगत में संभवत: ये पहला केस होगा. नोएडा के सेक्टर 93A में सुपरटेक ट्विन टावर चंद सेकंड में ही धराशाई हो गया IIT-चेन्नई की टीम ट्विन टावर (Twin Tower) के आसपास कंपन मापने के लिए बीते गुरुवार को यंत्र लगा दिया था. इससे यह पता चलेगा कि अंतिम ब्लास्ट के दौरान कितना कंपन हुआ. एडिफिस इंजीनियरिंग के मुताबिक, पहले से किए गए विश्लेषण के मुताबिक ब्लास्ट के बाद इतना कंपन नहीं होगा, जिससे टावरों को कोई खतरा महसूस हो. ट्विन टावर को ध्वस्त करने के संबंध में गुरुवार को अंतिम बैठक हुई थी. जिसमें सभी स्टेकहोल्डर शामिल थे।

इमारत में 9 हजार से ज्यादा छेद

इस बहुमंजिली इमारत (Twin Tower) में 9 हजार 800 छेद किए गए हैं और हर छेद में 1.375 किलो बारूद डालकर विस्फोट किया गया. ट्विन टावर के सामने की सड़क को पूरी तरह से बंद कर दिया गया है. यहां सिर्फ पुलिस, एडिफिस और जेट डिमोलिशन कंपनी के लोग ही आ-जा सकेंगे. टावर को ध्वस्त करने के लिए जो विस्फोटक लगाया गया, उसमें 325 किलो सुपर पावर जैल, 63300 मीटर्स सोलर कार्ड, सॉफ्ट टयूब, जिलेटिन रॉड, 10990 नंबर सुप्रीम डिले नॉन इलेक्ट्रिक डेटोनेटर रैगिंग क्लास-6 और डिवीजन-2 शामिल थे. चार इंस्टेंटएनोयस एक्सप्लोसिव डिवाइस का प्रयोग किया गया. विस्फोटक लगाने का काम 60 लोगों ने किया।

क्यों गिराया गया ट्विन टावर ?

बता दें कि जिसे हम ट्विन टावर्स कह रहे हैं, उनमें से एक टावर का नाम सियान है और दूसरे का एपेक्स. ट्विन टावर को गिराने के पीछे का कारण पर्यावरण और नियमों के उल्लंघन से जुड़ा है. एमराल्ड सोसायटी में जिस जगह पर टावर बनाया गया है, वो असल में पहले ग्रीन जोन था. इसमें घर खरीदने वालों को भी यही बताया गया कि ये ग्रीन जोन है. वर्तमान में इस सोसायटी में 660 परिवार रहते हैं. इन्हें धोखे में रखकर टावर बनाने का काम शुरू किया गया. ये सारी बातें इस ओर इशारा करती हैं कि नियमों को ठेंगा दिखाते हुए, ग्राहकों को धोखा देकर ये बिल्डिंग बनाई गई है।

सोसायटी के लोगों ने ठानी थी लड़ाई

जब टावर बनना शुरू हुआ तब आसपास की सोसायटी में रहने वाले अन्य परिवारों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा. नतीजन साल 2009 में सोसायटी के लोगों ने बिल्डर खिलाफ लड़ाई लड़ने का फैसला लिया. साल 2010 में रेजिडेंट वेलफेयर सोसायटी की मदद से इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्विन टावर निर्माण के खिलाफ मामला दर्ज हुआ. 2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने टावर को गिराने का आदेश दिया. जिसके बाद सुपरटेक (निर्माण कंपनी) ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. यहां भी फैसला बिल्डर के खिलाफ आया और शीर्ष अदालत ने ट्विन टावर को गिराने का आदेश दिया।