शारीरिक सुख तक सिमट कर रह गया आधुनिक प्रेम

आज हम बात करेंगे आधुनिक प्रेम की। जहां डिजिटल प्रेम को एक नया आयाम देने से बाज नहीं आ रही हमारी आज की युवा पीढ़ी। ‘बदलती सोंच’ के स्लोगन के पीछे कुछ और ही कारनामे करने में आज की पीढ़ी जुटी हुई है।

प्रेम का अर्थ सिर्फ शारीरिक सुख तक सिमट कर रह गया है। बात चाहे किसी डिपार्टमेंट में कार्य करने की हो या फिर खुद को अत्यधिक स्मार्ट दिखाने की। युवा पीढ़ी सभी में खुद को येन केन प्रकारेण अब्बल साबित करने में लगी हुई है।
अब हम बात कर रहे हैं एक पवित्र बंधन की। जिसका नाम है – प्रेम। यह यात्रा शुरू तो आँखो से होती है लेकिन इसका अंतिम पड़ाव शायद अब शारीरिक आनंद की चरम सीमा तक ही सीमित हो गया है। माने, यदि प्रेम के रिश्ते में आपने शारीरिक सुख को प्राप्त नहीं किया तो आपने कुछ नहीं किया, आपज प्रेम निठल्ला साबित हो जाएगा, दुनिया की तो कोई बात नहीं लेकिन आप अपने दोस्तों के बीच निकम्मे साबित हो जाएंगे। इसी सोंच को अपना आराध्य मानकर आज की युवा पीढ़ी धोखा देने के भरकस प्रयास में लगी हुई है।
आजकल के जमाने में भी लड़कियां हृदय से कोमल होती हैं लेकिन इसका भरपूर फायदा आज के अत्यधिक युवा भरपूर उठाते हैं। आज के समय में यदि लड़के को किसी लड़की से प्रेम होता है और फिर फिर उन दोनों में एक गहरा रिश्ता कायम हो जाता फिर दोनों सोंचते हैं कि आखिर कहाँ तक इसे एक पवित्र रिश्ते की सीमा तक ही सीमित रखा जाए क्यों न कोई नई प्रकिया स्वरूप कोई प्रैक्टिकल किया जाए या फिर इस प्रेम को कोई नया आयाम दिया जाए।
इसी कुत्सित सोंच के चलते दोनों एक दूसरे की प्रेम से भरी आंखों के सहारे शारीरिक सुख के समुद्र में गोता लगाने की सोंच में डूब जाते हैं और फिर कोई मौका देखकर अपनी शारीरिक इच्छा को पूरा करते हैं और फिर उस लड़की को बताने लग जाते हैं कि यह हमारी एक्स है। फिर से एक नई लड़की को फंसाना शुरू करने में लग जाते हैं और शादी होते होते न जाने कितनी शारीरिक यात्राएं कर चुके होते हैं ये आज के हवशी।
अब बात करते हैं उन तथ्यों पर, जिन कारणों से यह स्थिति बनती है। इन सबके लिए जिम्मेदार है उनकी सोसाइटी और आज का सिनेमा। आज के युवाओं की कुंठित सोंच तो उन्हें इन कार्यों के लिए उत्साहित करती ही है। बाकी की कसर भारतीय सिनेमा पूरी कर देती है। उत्तेजक चित्र, फिल्में और शार्ट फिल्म्स आदि देखने की लत उन्हें इस ओर प्रेरित करती है।
अभिभावकों द्वारा अपनी संतानों को अपनी व्यस्तता के चलते समय न देना भी इसका एक बड़ा कारण है। संतानें खुद में अकेलापन महसूस करके मोबाइल का दुरुपयोग करना शुरू करती हैं और फिर वे उस रास्ते पर चलना शुरू कर देती हैं, जहां पर उन्हें कभी नहीं जाना चाहिए। फिर शुरू होती है प्रक्रिया अपने मोबाइल को प्राइवेसी देने के लिए, जिस पर भी उनके अभिभावक कोई खासा ध्यान नहीं देते हैं।

धीरे धीरे वे निचली मानसिकता के उस दलदल में गिरने लगती हैं, जहां से निकल पाना उनके लिए असंभव सा हो जाता है। माने, 20 साल की उम्र तक गहन शिक्षा को छोड़कर वे इधर उधर की सभी खुराफातों के सरताज बन बैठते हैं। जब वे अपनी फ्रेंड सर्किल में बैठते हैं तो वहां पर जिसने जितनी लड़कियों के साथ सबसे ज्यादा शारीरिक यात्राएं की होती हैं, वही सबसे होनहार और परिपक्व माना जाता है।

लेकिन इस पर भी अभिभावकों का ध्यान इस ओर नहीं रहता। अरे, आजकल की सन्तानें ही नहीं बल्कि आजकल के वयस्क और विवाहित पुरुष भी इस कुकृत्य से अछूते नहीं हैं तो फिर उनकी संतानों के बारे में क्या कहा जाए। कुल मिलाकर बेरोजगारी का सबसे बड़ा कारण यही है कि अत्यधिक युवा इसी अंधेर कोठरी में अपने भविष्य की अंधेरी चमक देख बैठते हैं। जब तक अभिभावक पूरी तरह से अपनी संतान पर पूरी तरह से कंट्रोल नहीं रखेंगे तब तक यह स्थिति नहीं सुधर सकेगी।

प्रेम की पूर्णता शारीरिक यात्रा को ही मान बैठने वाले युवाओं का भविष्य आखिर कैसे उज्ज्वल होगा। जब अभिभावकों को ही गंभीरता से नहीं सोंचना है इस विषय पर तो फिर कैसे नाम रोशन करेंगी उनकी सन्तानें।

चिंतन नाम की कोई चीज नहीं तो फिर हमारा देश अंधेरे में ही दर-ब-दर ठोकरें खाता रहेगा और एक समय ऐसा आएगा कि प्रतिभाएं जन्म लेना ही बन्द कर देंगी और फिर राक्षसी प्रवृत्तियां ही मनुष्यों पर भारी पड़ती रहेंगी। इससे समूचा देश अंधेरे की गर्त में चला जाएगा और बेरोजगारी व भ्रष्टाचार निगल जाएगा आज की युवा पीढ़ी को।

अगर इसे बचाना है तो गहन चिंतन कर इस पर काम करने की जरूरत है हम सभी को। क्योंकि हम बदलेंगे, युग बदलेगा और हम सुधरेंगे तो युग सुधरेगा।