तानों से बनी मिसाल: हुनर ने दिव्यांग कारीगरों को दी नई पहचान, संभाव उत्सव 2.0 में चमकी प्रतिभा

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DelhiNcr 29 July: (Desk)
तारिक अहमद मीर, जो कश्मीर की प्राचीन सोजनी कला को नया जीवन दे रहे हैं, ने जम्मू कश्मीर हाउस में 'संभाव उत्सव 2.0' में भाग लिया। यह उत्सव जम्मू कश्मीर रेजिडेंट कमीशन द्वारा आयोजित किया जा रहा है और यह सोमवार तक चलेगा।

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Image Credit: Amar Ujala

मीर, जो हाथों से दिव्यांग हैं, अपनी बारीकी से शॉल में धागा पिरोने की कला से सभी को प्रभावित करते हैं। उनके हाथों की महीन कारीगरी उत्सव में आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।

मीर ने कहा कि पहले ताने सुनने को मिलते थे, लेकिन अब उनकी कहानियां समाज के सामने मिसाल के रूप में हैं। वह कहते हैं कि लोग उन्हें दिव्यांगता से नहीं, बल्कि उनके हुनर से पहचानते हैं।

इस प्रकार, तारिक अहमद मीर अपनी कला और दृढ़ इच्छाशक्ति से कश्मीर की प्राचीन सोजनी कला को नई पहचान दे रहे हैं और दिव्यांगता को एक बाधा नहीं, बल्कि प्रेरणा का स्रोत मान रहे हैं।

तारिक अहमद मीर, जो बडगांम से हैं, ने जम्मू कश्मीर हाउस में 'संभाव उत्सव 2.0' में अपनी कला का प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा कि पहले ताने सुनने को मिलते थे, लेकिन अब उनकी कहानियां समाज के सामने मिसाल के रूप में हैं। मीर, जो हाथों से दिव्यांग हैं, अपनी बारीकी से शॉल में धागा पिरोने की कला से सभी को प्रभावित करते हैं, जिसमें कश्मीर की संस्कृति की झलक मिलती है।

यह उत्सव जम्मू कश्मीर रेजिडेंट कमीशन द्वारा आयोजित किया गया है और इसमें 40 कारीगर और 200 परिवार शामिल हैं, जो इस प्राचीन कला को संजोने का कार्य कर रहे हैं। मीर ने बताया कि एक शॉल बनाने में एक महीने से लेकर तीन साल तक का समय लग सकता है, और इसकी कीमत तीन से पांच लाख रुपये तक होती है।

मीर ने दिव्यांगता को एक बाधा नहीं, बल्कि प्रेरणा का स्रोत माना है। उन्होंने एक संस्था बनाई है जो केवल दिव्यांग कारीगरों को रोजगार प्रदान करती है। उनकी संस्था से हर साल लगभग दस लाख रुपये की आय होती है।

उत्सव में कश्मीरी संस्कृति, व्यंजन, और हस्तशिल्प का भी प्रदर्शन किया जा रहा है। कलाकार मीर मायूसी के साथ कहते हैं कि मौजूदा पीढ़ी इस दिशा में कम ध्यान दे रही है।

इस उत्सव में कश्मीरी पारंपरिक व्यंजनों की खुशबू भी लोगों को आकर्षित कर रही है। मसरत जन, जो पहले खेती करती थीं, अब एनजीओ से जुड़कर आत्मनिर्भर बन गई हैं और अपने गांव के लोगों को रोजगार दे रही हैं।

इस प्रकार, 'संभाव उत्सव 2.0' न केवल कश्मीर की सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करता है, बल्कि दिव्यांग कारीगरों को भी एक मंच प्रदान करता है।