निरंजन शर्मा का सफर दस्यूसुन्दरी के साथ

in #damoh2 years ago

Screenshot_20220601-214304_WhatsAppBusiness.jpgलेखक निरंजन शर्मा जी सतना मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार व समाजसेवी है IMG-20220531-WA0290.jpgदस्यूसुन्दरी फूलन तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के साथ आत्मसमर्पण के दौरान

टेृनमें एक रात ; फूलन देवी के साथ।

अनर्थ मत लगाइएगा ; बात सिर्फ इतनी है कि एक बार हम और फूलन देवी दिल्ली से देर शाम महाकौशल एक्सप्रेस के ए-1 डिब्बे में एक साथ बैठे और सुबह 7 बजे सतना में आकर उतरे।

फूलन उस समय संसद सदस्य थीं । हम और रामलाल सिंह पंजाबी उन्हें लेने दिल्ली गए और साथ में लेकर आए । असल में स्वर्गीय रामलाल सिंह को सन 1998 में सतना से विधायकी का चुनाव लड़ना था । बीएसपी की टिकट उनकी अंदर-अंदर तय हो चुकी थी उसी की भूमिका बनाने और अपने यहां दलित चेतना जगाने फूलन देवी का कार्यक्रम अपने यहां कराना चाहते थे हालांकि फूलन देवी समाजवादी पार्टी की सांसद थी। सतना में कार्यक्रम के आयोजक बुजुर्ग पार्षद लक्ष्मण मल्लाह बताये जा रहे थे मगर सच्चाई यह थी कि वे केवल दिखाने के दांत थे । खाने के दांत थे रामलाल सिंह जिन्होंने तीन-चार माह बाद होने वाला विधानसभा का चुनाव लड़ा और लगभग 30,000 वोट पाए।

निजामुद्दीन से जब हम दिल्ली से ट्रेन के एसी कोच में बैठे तो हमने पाया कि वहां सतना के तत्कालीन सांसद सुखलाल कुशवाहा व रीवा के एक नेता बी.डी. पटेल अपने कुछ साथियों के साथ बैठे हुए थे। इन सबको पता था कि कल सतना में फूलन देवी की सभा है और इसी डब्बे में ही दो बर्थ फूलन देवी और उनके तत्कालीन पति उम्मेद सिंह के नाम रिजर्व हैं मगर फिलहाल दोनों सीटें खाली पड़ी थीं।

गाड़ी चल दी । दो तीन छोटे स्टेशन पड़े मगर फूलन नहीं आईं । रामलाल जी थोड़ा चिंतित दिखाई पड़े । बोले- धोखा दे जाएगी क्या यार ? उनके पास मोटरोला का बड़ा सा मोबाइल था ! वो मीडिएटर से कुछ बात करते पर फोन नहीं लग रहा था !....लेकिन जल्दी सब के चेहरे खिल उठे क्योंकि दिल्ली और मथुरा के बीच पता नहीं किस स्टेशन से फूलन अपने तत्कालीन पति उम्मेद सिंह के साथ डिब्बे पर चढ़ीं । दो बड़े सूटकेसों के साथ पॉलिथीन की एक वजनी पुटरिया उनके सामान में थी । उन्हें छोड़ने आए लोगों ने नियत बर्थ पर उनका सामान रखा और उनके पैर छूकर उतर गए ।

डिब्बे में पहले से खबर थी कि फूलन को आना है लिहाजा उन्हें नजदीक से देखने के लिए दिखैया लग गए । महिलाएं भी झांक-झांक कर देख कर जाने लगीं । कुछ यूं ही बहाने से फूलन को देखते हुए इधर से उधर निकल जातीं । फूलन देवी, उम्मेद सिंह, सुखलाल कुशवाहा, बी.डी., रामलाल सिंह और हम एक ही जगह पर आमने-सामने बैठे थे हालांकि सबकी बर्थ अन्यत्र थी। फूलन देवी की आवाज पूरे डिब्बे में गूंज रही थी और उनका पति जैसे एकदम गूंगा था ! फूलन ने आते ही सब से पूछा कि तुम लोगों ने खाना खाया कि नहीं । बीडी पटेल ने कहा कि नहीं खाया, आप खिलाओगी क्या तो फूलन ने कहा कि जरूर खिलाऊंगी तभी तो पूंछ रही। यह कहकर फूलन ने उम्मेद सिंह से सीटों के बीच अपने और अन्य एक दो सूटकेस रखने को कहा । पति ने तीन चार सूटकेस ऊपर नीचे रखकर मेज जैसी बना दी और उसके ऊपर पॉलिथीन की बड़ी पोटली रखकर उसे खोला । उस पॉलिथीन में 10-12 किलो गरमागरम गोश्त था। पूरे डिब्बे में गंध फैल गई । पॉलिथीन खोलते हुए फूलन ने बताया- "एक शादी के प्रोग्राम में गई थी तो वहीं से भर लाई हूँ ! हमने उनसे कई कि गाड़ी को टाइम हो रहो है ! तुम तो ऐसो करो कि हमाए लाने बाँध दो ! गाड़ी में सबके साथ बैठ के खायेंगे।"

तंदूरी सुपर सॉफ्ट नॉन रोटी और मटन ! मुझे छोड़कर लगभग सभी मांसाहारी थे । टूट पड़े । फूलन और उनके पति ने भी कुछ पीस खाए । हम और रामलाल सिंह जी वहां से उठ गए और अपनी जगह पर जाकर बैठे। रामलाल जी दिल्ली में अपने रिश्तेदार के यहां से खाना लाए थे । हम लोगों ने वही खाया ! उस कम्पार्टमेंट में नागौद राजपरिवार के कुछ लोग भी सपरिवार यात्रा कर रहे थे जिन्हें बाँदा में उतरना था। वहां उन्होंने कार मंगाई हुई थी । उनमें से एक ने हमसे थोड़ी बात की और देश की ऐसी हालत पर अफ़सोस जताया कि हम लोग एक हत्यारिन डकैत के साथ ठहाके लगा रहे हैं । हम लोग फीकी हंसी हँसते हुए खाना खत्म होने के बाद फिर फूलन-दरबार में पहुँच गए। बी.डी. पटेल फूलन के ज्यादा मुंह लगा हुआ था । एक बार बोला – "जब आप अपने मिर्जापुर बाँध का गेट खोल देती हो तो हमारे रीवा में बाढ़ आ जाती है।" ठहाके पर ठहाके लग रहे थे और फूलन का ठहाका सबसे जबरदस्त होता था । सुखलाल उनके सामने बैठे थे पर वे थोड़ा संकुचाये लग रहे थे । रामलाल जी ने फूलन से उनका परिचय कराया कि आपने शायद हमारे सतना के सांसद महोदय को नहीं पहचाना- सुखलाल कुशवाहा !

“अरे हां, सुखलाल कुशवाहा । चीन्ह तो रही हूँ । पहले मिले ते तब तो दूबरो तो अब तो बहुत मुटानों लग रहो है ।”

इस पर किसी ने कहा कि दिल्ली का पानी लग गया है। सुखलाल सहित सब मुस्कुरा दिए । रात में लगभग दो बजे तक फूलन देवी का दरबार लगा रहा । बात करने की उसकी बुंदेली और ऊंची टोन अवश्य थी परंतु सोच समझकर ही बोल रही थी। रामलाल सिंह जी ने बीच में किसी बात पर मेरा परिचय उनसे कराया और कहा कि यह मामूली पत्रकार नहीं, बहुत पढ़े-लिखे हैं । वकील भी हैं तो फूलन मुझे देख कर बोली – “जरूर पढ़े होंगे भाई । पढ़ा लिखा आदमी अलग दिखता है । मैं भी पढ़ना सीख रही हूं । जेल में भी पढ़ाने वाले लगे थे तब मन नहीं लगता था कि क्या करना है पर अब सामने कुछ फ़ाइल या कागज़ आता है तो बड़ा बुरा लगता है। अब तो पढ़ने की लगन लग गई है । हिंदी तो जानती हूं पर अंग्रेजी में दिक्कत आती है। दिक्कत जा है कि सांसदी के जितने कागज़ आते हैं ज्यादातर अंग्रेजी में आते हैं ! अब अंग्रेजी की क्लास भी घर में खुलवा लूं क्या।” फिर जोर का ठहाका लगा।

ज्यादातर शुद्ध खड़ी बोली और बीच-बीच में कहीं-कहीं बुन्देली। जिस बात की समझ थी फूलन वही बोल रही थी, नहीं तो “अच्छा” कह कर चुप हो जाती । मुझे लगता है कि फूलन देवी यदि आज जिंदा होती तो वह देश में दलित प्रवक्ता के तौर पर मायावती से बड़ा चेहरा होती।

अंततः जब मैं अपनी बर्थ पर गया तो मैंने पास की बर्थ पर एक युवती को सिर पकड़ कर बैठे देखा। मुझे सुनाते हुए दांत भींचते हुए वह बुदबुदाई – “मेरा वश चले तो अभी जाकर इसका टेंटुआ दबा दूं।"

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