फसलों के साथ मनुष्य और पशुओं पर डालते है बुरा प्रभाव
- विदेशी खरपतवार के स्पर्श से खुजली एवं एलर्जी की होती है गंभीर समस्या
- यह 3-4 माह में ही अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है
- एक वर्ष में इसकी 3 से 4 पीढ़िया पूरी हो जाती हैं।
- यह हर प्रकार के वातावरण में तेजी से वृद्वि करता है
- इसके बीज अत्याधिक सूक्ष्म होते है जो अपनी दो स्पंजी की मदद से हवा तथा पानी द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से पहुंच जाते है
मंडला. कृषि विज्ञान केन्द्र के तत्वावधान में किसानों एवं आम जनता को गाजर घांस के दुस्प्रभाव के बारे में जागरूक किया जाएगा। इसके लिए गाजर घास जागरूकता उन्मूलन सप्ताह का आयोजन किया जा रहा है। जिसके प्रारंभ में कृषि विज्ञान केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ केवी सहारे, वैज्ञानिक डॉ प्रणय भारती, कार्यक्रम सहायक केतकी धूमकेती, किसानो एवं कृषि महाविद्यालय जबलपुर एवं कृषि महाविद्यालय बालाघाट की राबे छात्राओ की भागीदारी रही। केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख बताया कि गाजर घास या चटक चांदनी (पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस) एक घास है जो बड़े आक्रामक तरीके से फैलती है। यह एक वर्षीय पौधा है जो हर तरह के वातावरण में तेजी से उगकर फसलों के साथ-साथ मनुष्य और पशुओं के लिए भी गंभीर समस्या बन जाता है। इस खरपतवार का भारत में प्रवेश तीन दशक पूर्व अमेरिका या कनाडा से आयात किए गए गेहुं के साथ हुआ। एक से डेढ़ मीटर तक लम्बी गाजर घास के पौधे का तना रोयेदार अत्याधिक शाखा युक्त होता है, इसकी पत्तियां असामान्य रूप से गाजर की पत्ती की तरह होती है इसके फलों का रंग सफेद होता है, प्रत्येक पौधा लगभग 25000 बीज पैदा करता है जो शीघ्र ही जमीन में गिरने के बाद प्रकाश और अंधकार में नमी पाकर अंकुरित हो जाते है, यह पौधा 3-4 माह में ही अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है तथा एक वर्ष में इसकी 3 से 4 पीढ़िया पूरी हो जाती हैं। यह हर प्रकार के वातावरण में तेजी से वृद्वि करता है इसके बीज अत्याधिक सूक्ष्म होते है जो अपनी दो स्पंजी की मदद से हवा तथा पानी द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से पहुंच जाते है। केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ प्रणय भारती ने बताया कि इसका प्रकोप खाद्यान्न, फसलों जैसे धान, ज्वार, मक्का, सोयाबीन मटर, तिल, अरंडी, गन्ना, बाजरा, मूगंफली, सब्जियों एवं खाद्यान्न फसलों में भी देखा गया है। इस पौधा में पाए जाने वाला एक विषाक्त पदार्थ के कारण फसलों के अंकुरण एवं वृद्वि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पत्तियों में क्लोरोफिल की कमी एवं पुष्पशीर्षो में असामान्यता पैदा कर देते है। गाजरघांस का नियंत्रण फूल आने से पूर्व उखाड़कर इसका उपयोग कम्पोस्ट खाद बनाने के लिए किया जा सकता है। केन्द्र के कार्यक्रम सहायक केतकी धूमकेती ने गाजर घास को मनुष्य और पशुुओं के लिए भी एक गंभीर समस्या बताते हुए कहा कि इस विदेशी खरपतवार के स्पर्श मात्र से खुजली एवं एलर्जी की गंभीर समस्या तो पैदा ही होती है साथ ही इसके परागण दमा, अस्थमा एवं निमोनिया रोगों को बढ़ाने एवं घातक प्रभाव उत्पन्न करने वाले होते है। दलहनी फसलों में यह खरपतवार जड़ ग्रंथियाें के विकास को प्रभावित करता है तथा नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणुओं की क्रियाशीलता को भी कम करता है, इसके परागकण बैगन, मिर्च, टमाटर, आदि सब्जियों के पौधे पर एकत्रित होकर उनके परागण अंकुरण एवं फल विन्यास को प्रभावित करते है।
Rigth