GST में आते ही पेट्रोल 33 रुपए और बियर 17 रुपए सस्ती

in #news2 years ago (edited)

एक सीन की कल्पना कीजिए। 30 जून की सुबह आप पेट्रोल पंप जाते हैं। 100 रुपए का पेट्रोल भरवाते हैं। मशीन में देखते हैं कि सेल्समैन ने डेढ़ लीटर पेट्रोल भर दिया है। आप सेल्समैन को भूल की तरफ ध्यान दिलाते हैं, लेकिन वो कहता है कि अब से यही रेट है। उस वक्त आपके चेहरे के भाव की कल्पना कोई नहीं कर सकता।

सीन महज कोरी कल्पना नहीं, बल्कि ऐसा होने की संभावना है। भारत में GST लागू हुए पांच साल पूरे हो चुके हैं। 28 और 29 जून को चंडीगढ़ में GST काउंसिल की बैठक है। इस बैठक में कई बड़े फैसले लिए जा सकते हैं।

आज की मंडे मेगा स्टोरी में जानते हैं कि पेट्रोल-डीजल और शराब को GST में शामिल क्यों नहीं किया जाता है? ऐसा हुआ तो इससे आम लोगों के कितने पैसे बच जाएंगे? साथ ही दुनिया भर के टैक्स से जुड़ी कुछ रोचक बातें भी बताएंगे…

आइए अब इस पोल में हिस्सा लेते हैं...
अब सवाल यह है कि आखिर पेट्रोल और डीजल जीएसटी के दायरे में क्यों नहीं आ सकता? यहां हम आपको इस बारे में पूरी जानकारी देने जा रहे हैं. दरअसल इसकी तीन बड़ी वजह

पेट्रोल-डीजल की कीमतें जब जब भी भड़कती है, वही पुरानी बहस कि इस फ्यूल को जीएसटी के दायरे में लाया जाए और लोगों को महंगाई से बचाया जाए लौट आती है. हाल में जब पेट्रोल और डीजल ने सेंचुरी मारी तो फिर बहसों ने जोर मारा लेक‍िन केंद्र सरकार ने बिना देर लगाए बहस को ठंडा कर द‍िया. अब सवाल यह है कि आखिर पेट्रोल और डीजल जीएसटी के दायरे में क्यों नहीं आ सकता? यहां हम आपको इस बारे में पूरी जानकारी देने जा रहे हैं. दरअसल इसकी तीन बड़ी वजह है. पहली, केंद्र सरकार की मोटी कमाई दूसरा राज्यों की पेट्रोल डीजल के टैक्स पर निर्भरता और तीसरा पेंच है इनपुट टैक्स क्रेडिट का.

ऐसे समझिए…
सबसे पहले केंद्र सरकार का गणित समझिए. केंद्र सरकार पूरे साल में 1300 वस्तुओं और 500 सेवाओं पर जीएसटी लगाकर 11.41 लाख करोड़ कमाती है. यह आंकड़े है साल 2020-21 और उसी दौरान पेट्रोल डीजल से केंद्र सरकार ने कमाए 4.5 लाख करोड़ रुपए.

यानी पेट्रोल डीजल का टैक्स सरकार के कुल जीएसटी कलेक्शन का करीब 40 फीसदी बैठेगा. वहीं एक बात और समझिए जीएसटी की सबसे ऊंची दर है 28 फीसदी. सरकार इसे 28 फीसदी की कैटेगरी में लाकर भी इतनी वसूली नहीं कर पाएगी.

राज्‍यों का बजट समझिए
पहली बात तो यह जीएसटी आने के बाद राज्यों के पास टैक्स उगाही के संसाधन सीमित रह गए हैं. शराब और पेट्रोल-डीजल ही दरअसल अब राज्यों की कमाई के मुख्य जरिए हैं.

राज्यों ने साल 2020-21 में पेट्रोल डीजल से कुल 2 लाख करोड़ से ज्यादा की कमाई की है. राज्य सरकारें मनचाहे तरीके से टैक्स घटा बढ़ा भी सकती है. यही कारण है कि अलग अलग राज्यों में वैट की दर अलग अलग है.

इनपुट टैक्‍स क्रेडिट का पेंच जटिल
तीसरा पेंच थोड़ा जटिल है जो इनपुट टैक्स क्रेडिट का है. इसे ऐसे समझिए कि व्यापारी व्यवयास पर हुए खर्च में टैक्स का हिस्सा वापस ले लेता है.

यानी अगर किसी ने अपने व्यवसायिक इस्तेमाल के लिए लैपटॉप खरीदा तो उस पर लगी जीएसटी व्यापारी अपने जीएसटी बिल से कम कर देना पेट्रोल-डीजल तो हर व्यवसाय में जरूरी है, फिर सरकार कितना इनपुट टैक्स क्रेडिट देगी?

बिजली और जमीन का हाल
पेट्रोल डीजल की ही तरह बिजली और जमीन का भी यही हाल है. इसलिए ये भी जीएसटी के दायरे से बाहर हैं.

सरकारों की निर्भरता पेट्रोल-डीजल पर अधिक
तो कुल जमा बात यह है कि जब तक राज्य और केंद्र सरकारों की निर्भरता पेट्रोल डीजल पर अधिक रहेगी तब तक वजह चाहें जो हो लेकिन यह जीएसटी के दायरे में नहीं आ सकेगा. पेट्रोल डीजल को अगर जीएसटी के दायरे में लाना है तो इसकी शुरुआत सभी राज्यों में एक जैसी दर लागू करके शुरू करनी होगी.

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