युवाओं में बढ़ रही नेत्र रोग समस्या, रखना होगा ध्यान
वर्तमान में यह बात बहुत सामान्य तौर पर नजर आ रही है कि कई लोग नींद नहीं आने तक मोबाइल का उपयोग करते रहते हैं। कमरे की लाइट बंद होने के बावजूद वे मोबाइल का उपयोग करते हैं जो कि मन-मस्तिष्क के अलावा आंखों के लिए भी बहुत हानिकारक होता है। वैसे तो सोने से दो घंटे पहले ब्ल्यू स्क्रीन का उपयोग बंद कर देना चाहिए लेकिन यदि मोबाइल का उपयोग करना ही है तो अंधेरे कमरे में उपयोग न करें।
जैसे हम शरीर को डिटाक्स करते हैं वैसे ही डिजिटल डिटाक्स भी बहुत जरूरी है क्योंकि जब हम रात को सोते है तो जो स्क्रीन का नीला प्रकाश को-मेलाटोनिन हार्मोन के स्त्रावित होने में बाधक बनता है। इससे हमारी नींद में बाधा पहुंचती है। नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. अमित सोलंकी के अनुसार लगातार नजदीक से ब्ल्यू स्क्रीन देखने के कारण आंखों पर जोर पड़ता है और आंखों की मांसपेशियां कमजोर होती हैं। जितना ज्यादा वक्त मोबाइल, टैबलेट, लैपटाप, कम्प्यूटर, टीवी सक्रीन पर बिताएंगे, चश्मा लगने का जोखिम उतना ही बढ़ेगा। एक शोध में यह बात सामने आई है कि पूरे विश्व की एक चौथाई जनसंख्या विजुअल इंपेयरमेंट यानी दृष्टिहानि या दृष्टिदोष से ग्रसित है।
अगर आंखों के आम समस्या की बात करें तो वे हैं दूर की दृष्टि कमजोर होना। यह एक वैश्विक समस्या बन चुकी है क्योंकि यह युवाओं को भी प्रभावित कर रही है। उसकी वजह से न सिर्फ उनकी आंखे बल्कि मानसिक, सामाजिक, आर्थिक और विकास पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। अगर भारत की बात करें तो भारत की जनसंख्या का 41 प्रतिशत भाग 18 साल के कम उम्र का है अर्थात युवाओं की संख्या ज्यादा है। यदि इन्हें मायोपिया हुआ तो देश के भविष्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। डिजिटल आई सिंड्रोम भी नेत्र रोग की समस्या का बड़ा कारण है क्योंकि आजकल सभी का स्क्रीन टाइम बहुत बढ़ गया है।