लंपी स्कीन डिजीज की रोकथाम एवं बचाव के लिए एडवाजरी जारी*

in #ill2 years ago

रोगी गौवंश का समय पर पृथकीकरण करने से ही रोग के फैलाव को नियंत्रण किया जा सकता है

बाड़मेर, 07 अगस्त l लंपी स्किन डिजीज की रोकथाम एवं बचाव के लिए गोपालन निदेशालय ने एडवाजरी जारी की है।
एडवाजरी के मुताबिक पिछले कुछ समय से पशुओं में लंपी स्कीन डिजीज के मामले सामने आये है। चूंकि यह एक विषाणु जनित रोग है। अभी तक इसके इलाज के लिए कोई दवा सुनिश्चित नहीं है। ऐसे में इसकी रोकथाम एवं बचाव ही एकमात्र उपाय है जिससे इस रोग से होने वाली क्षति को न्यूनतम किया जा सके। गोपालकों एवं गौशालाओं में संधारित गौवंश मे इस रोग के रोकथाम एवं बचाव के लिए निदेशालय गोपालन ने सुझाव दिया है, इससे रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
रोग एवं लक्षण :लंपी स्कीन डिजीज एक विषाणु जनित, गौवंश तथा अन्य पशुओं में फैलने वाला संक्रामक रोग है। यह वेक्टर यानी मच्छरों, मक्खियों और चीचड आदि के जरिए तथा पशुओं की लार, स्त्राव तथा संकमित जल एवं चारा के माध्यम से एक से दूसरे पशु में फैलता है। इसके प्रमुख लक्षणों के रूप में गौवंश के त्वचा पर गोलाकार गांठदार संरचनाओं का उभरना प्रायः देखा जाता है। यह गांठे सामान्यतः 2 से 5 सेमी व्यास की होती है जो कि सिर, गर्दन एवं जननांगों के आसपास देखी जा सकती है। यह गांठे धीरे-धीरे बडी होने लगती हैं। अंततः घाव में परिवर्तित हो जाती है, तेज बुखार, आंख, नाक से लार का स्त्राव, कभी-कभी छाती एवं पेट के पास सूजन देखी जाती है और दूध का अचानक से कम हो जाता है।
रोग की रोकथाम के उपाय :
गौवंश के अनावश्यक आवागमन पर पूर्णतः प्रतिबंध लगाया जाए।, गौशाला प्रबंधक अपने गौवंश को गौशालाओं में ही रखे, यदि रोग का प्रकोप क्षेत्र में है तो चरने के लिए गौवंश को गौशाला से बाहर नहीं भेजे। गौशालाओं में आने वाले नए गौवंश को पृथक बाडें में रखे, उन्हें गौशाला के अन्य स्वस्थ पशुओं के साथ कम से कम 15 दिवस तक सम्मलित नही करें। गौशाला प्रबंधक एवं गोपालक गौवंश में रोग के प्रारंभिक लक्षण देखते ही तुरन्त पशु को अन्य गौवंश से अलग करे। रोगी गौवंश का समय पर पृथकीकरण करने से ही रोग के फैलाव को नियंत्रण किया जा सकता है। रोग प्रभावित, गौवंशों के चारा-पानी एवं इनकी देखभाल करने वाले व्यक्ति को स्वस्थ गौवंश रखे जाने वाले क्षेत्र में भ्रमण की अनुमति नहीं देवें। गौवंश की देखभाल करने वाले व्यक्ति लगातार अपने हाथ साबुन पानी से साफ करे अथवा सेनिटाइजर का उपयोग करे। गौशाला परिसर एवं गौवंश के बाड़े की प्रतिदिन समुचित साफ-सफाई रखे। गंदगी एवं गड्डों में पानी आदि एकत्रित नहीं होने दे। गौशाला परिसर में मच्छरों, मक्खियों और चीचड आदि के नियंत्रण के लिए मैलिथियोन,साईपरमैथ्रिन , डेल्टामैथिन,सोडियम हाईपोक्लोराईट का छिडकाव प्रतिदिन करे । स्थानीय स्तर पर गौशाला संचालक गोवर के कण्डे आदि जलाकर भी गौशाला परिसर में मच्छरों, मक्खियों को कम कर सकते है। स्वस्थ गौवंश को संतुलित पशु आहार एवं हरा चारा समुचित मात्रा में उपलब्ध कराये l ताकि उसकी सामान्य रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहे।
रोग का उपचार एवं टीकाकरण :रोग के प्रारंभिक लक्षण दिखते ही स्थानीय पशु चिकित्सा केन्द्र पर सूचित कर पशु चिकित्साधिकारी के निर्देशन में रोगी पशु की चिकित्सा एवं रोग के प्रबंधन की व्यवस्था सुनिश्चित करे।. यद्यपि इस रोग का वर्तमान में टीका उपलब्ध नही है फिर भी पशुपालन, मत्स्य एवं डेयरी मंत्रालय, भारत सरकार की ओर से अनुशंपित गॉट पॉक्स का टीका स्वस्थ गौवंश को रोग के बचाव के लिए लगवाया जा सकता है। यदि किसी गांव में इस रोग से प्रभावित गौवंश देखे जाते है तो उस गांव के 03 से 05 किमी के क्षेत्र के अंदर संधारित समस्त मवेशियों में बाहर से अन्दर की ओर रिंग वैक्सीनेशन करवाया जाना चाहिए। प्रभावित गौवंश की लक्षण के अनुरूप चिकित्सा करने तथा अन्य संक्रमण के होने से बचाव किया जाना चाहिए। शरीर पर हुई गाठों की नियमित एन्टीसेप्टिक ड्रेसिंग करना आवश्यकतानुसार 5-7 दिन एन्टीबॉयोटिक एवं मल्टीविटामिन तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने वाली औषधि दी जानी चाहिए। प्रभावित गौवंश पर मच्छरों, मक्खियों और चीथड़ आदि के नियंत्रण के लिए फ्लाई रिपलेन्ट ( विकर्षक) स्प्रे अथवा मलहम का नियमित उपयोग किया जाना चाहिए।
मृत गौवंश का निस्तारण:
गौशाला परिसर तथा क्षेत्र में रोग से प्रभावित होकर मृत गौवंश का समुचित निस्तारण किया जाना आवश्यक है ताकि रोग का फैलाव रोका जा सकें। संक्रामक रोग से मृत गौवंश एवं इससे संबंधित वस्तुओं को गांव के बाहर एवं किसी भी जलस्त्रोत से है । दूर लगभग 1.5 मी. गहरे गढ्डे में चूने या नमक के साथ वैज्ञानिक विधि से दफनाया जा सकता है। मृत गौवंश के संपर्क में रही वस्तुओं एवं स्थान को फिनाइल या लाल दवा अथवा सोडियमहाईपोक्लोराईट आदि से कीटाणु रहित करें। रोग प्रकोप की स्थिति में स्थानीय प्रशासन एवं संबंधित विभागों का सहायोग लिया जा कर उचित प्रबंधन सुनिश्चित किया जाएं।