जाड़े की धूप
कई दिनों की बेतहाशा ठंढ
धुंध और कोहरे के बाद
आज सुबह निकली तेज धूप के साथ
भरने लगी थी रगों में
एक जानी-पहचानी ऊष्मा
और एक ऐसी नरमी
जो बचपन के बाद पहली बार
महसूस हुआ था मुझे
पता नहीं वह धूप ही थी
या स्वर्ग से उतरी हुई
गर्म हथेलियां थीं मां की
जो देर तक सहलाती रही
कई दिनों की कठुआई मेरी देह
और मैं भागता चला जा रहा था
उस बचपन की ओर
जो मां के साथ ही चला गया था।
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