जाड़े की धूप

in #poem2 years ago

कई दिनों की बेतहाशा ठंढ
धुंध और कोहरे के बाद
आज सुबह निकली तेज धूप के साथ
भरने लगी थी रगों में
एक जानी-पहचानी ऊष्मा
और एक ऐसी नरमी
जो बचपन के बाद पहली बार
महसूस हुआ था मुझे

पता नहीं वह धूप ही थी
या स्वर्ग से उतरी हुई
गर्म हथेलियां थीं मां की
जो देर तक सहलाती रही
कई दिनों की कठुआई मेरी देह
और मैं भागता चला जा रहा था
उस बचपन की ओर
जो मां के साथ ही चला गया था।